राजस्थान की राजनीति में एक बार फिर जोरदार तूफान खड़ा हो गया है। मंगलवार को आयोजित "संविधान बचाओ" सभा में नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने भाजपा पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि हाल ही में उनके द्वारा दिए गए 'आदिवासियों का DNA टेस्ट' से जुड़े विवादित बयान ने पूरे राज्य में आक्रोश की लहर पैदा कर दी है। सभा में जूली ने कहा कि यह बयान आदिवासी समाज की अस्मिता और संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ है।
नेता प्रतिपक्ष ने सभा में जोर देकर कहा कि भाजपा की नीतियां केवल सत्ता की राजनीति तक सीमित हैं और संवैधानिक मूल्यों की अनदेखी करती हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि पार्टी की योजना आदिवासियों और कमजोर वर्गों के अधिकारों को कमजोर करने की है। जूली ने कहा, “हमारा संविधान सभी भारतीयों को समान अधिकार देता है। किसी की जाति, धर्म या समुदाय के आधार पर उन्हें आंकने का कोई अधिकार किसी को नहीं है। भाजपा का यह बयान लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।”
सभा में जूली ने अपने भाषण में यह भी कहा कि आदिवासियों की पहचान और उनके अधिकार किसी वैज्ञानिक परीक्षण या DNA टेस्ट से तय नहीं किए जा सकते। उन्होंने केंद्र और राज्य सरकार से अपील की कि ऐसे बयान और नीतियों से तुरंत परहेज किया जाए, ताकि सामाजिक तनाव और असुरक्षा की स्थिति उत्पन्न न हो।
भाजपा के इस विवादित बयान के बाद राजनीतिक गलियारों में तीखी प्रतिक्रियाएँ सामने आई हैं। कई विपक्षी दलों ने भी इसे आदिवासी समाज के खिलाफ संवेदनशीलता की कमी बताया। वहीं, भाजपा की ओर से इस पर अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि पार्टी इसे राजनीति का हिस्सा मान रही है और स्थिति को नियंत्रित करने की कोशिश में है।
टीकाराम जूली की सभा में हजारों लोगों की भीड़ मौजूद थी। उन्होंने सभा में यह स्पष्ट किया कि संविधान बचाने के लिए हर स्तर पर संघर्ष किया जाएगा। जूली ने कहा कि यदि जरूरत पड़ी तो वह संसद और विधानसभा दोनों स्तरों पर इस मुद्दे को उठाएंगे। इसके अलावा उन्होंने सामाजिक संगठनों और नागरिकों से अपील की कि वे भी संवैधानिक मूल्यों की रक्षा में सक्रिय भूमिका निभाएं।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस बयान ने आगामी विधानसभा चुनावों की दिशा पर भी असर डाल सकता है। आदिवासी समाज के नेताओं और संगठनों के लिए यह एक संवेदनशील मुद्दा बन चुका है। विशेषज्ञों के अनुसार, टीकाराम जूली का यह हमला भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है, खासकर जब सामाजिक और संवैधानिक मुद्दों को लेकर जनता में जागरूकता बढ़ रही है।
राजनीतिक हलकों में यह चर्चा भी तेज हो गई है कि आगामी दिनों में इस बयान को लेकर और भी तीखी बयानबाज़ी हो सकती है। विपक्ष का कहना है कि यदि सरकार संवैधानिक मूल्यों की रक्षा में असफल रही, तो इसे गंभीर सामाजिक और राजनीतिक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
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