भारतीय इतिहास के पन्नों में दर्ज "छप्पनिया अकाल" (सन 1896-97) को देश के सबसे भीषण और क्रूर प्राकृतिक संकटों में गिना जाता है। यह अकाल इतना व्यापक और विनाशकारी था कि लाखों लोगों की जान ले गया और समाज की बुनियादी संरचना को झकझोर कर रख दिया। 'छप्पनिया' नाम का यह अकाल भारत के उत्तर-पश्चिमी हिस्सों, विशेषकर राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और गुजरात के कुछ क्षेत्रों में कहर बनकर टूटा।यह वह समय था जब वर्षा लगातार दो साल तक नहीं हुई, फसलें सूख गईं, अनाज के दाम आसमान छूने लगे और जन-जीवन पूरी तरह से तहस-नहस हो गया। मगर इस अकाल की सबसे दिल दहला देने वाली बात थी—मानवता का टूटता हुआ विश्वास, और वे घटनाएं जो किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को अंदर तक हिला देंगी।
1. भूख से तड़पती मां ने बच्चे को मार दियाराजस्थान के बीकानेर इलाके की एक घटना आज भी लोकगीतों में दर्द बनकर गूंजती है। एक मां ने जब कई दिनों तक अपने बच्चे को भूखा देखा और स्वयं भी भोजन के लिए भटकते-भटकते थक चुकी थी, तो उसने बच्चे को खुद अपने हाथों से मार डाला ताकि वह उसे रोज़ तड़पते हुए न देखे। इसके बाद वह खुद भी आत्महत्या कर बैठी। यह घटना सिर्फ एक मां की हार नहीं, बल्कि उस व्यवस्था की विफलता थी जो जीवन की रक्षा नहीं कर सकी।
2. भाई ने भाई को खाने के लिए मार डालाउत्तर प्रदेश के जालौन ज़िले में एक और दिल दहला देने वाली घटना सामने आई थी। दो सगे भाइयों में सिर्फ एक रोटी को लेकर झगड़ा हुआ, जो बाद में इतना बढ़ा कि बड़े भाई ने छोटे को पत्थर से मार डाला। जब पुलिस पहुंची तो वह शव के पास बैठा हुआ बस यही बड़बड़ा रहा था, “उसने पूरी रोटी खा ली थी...” यह दृश्य बता देता है कि भूख कैसे रिश्तों और नैतिकता दोनों को निगल जाती है।
3. अकाल राहत केंद्रों में फैला भ्रष्टाचारब्रिटिश शासन द्वारा स्थापित किए गए कई अकाल राहत केंद्रों की हालत बदतर थी। कई जगहों पर प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा अनाज को काले बाजार में बेच दिया गया और भूख से तड़पते लोग केंद्रों से खाली हाथ लौटते रहे। जयपुर रियासत में तो राहत कार्य के नाम पर मजदूरी करवा कर अंत में भोजन तक नहीं दिया गया। लोग मरते रहे, और हुकूमत बस आंकड़ों से खेलती रही।
4. लोगों ने मिट्टी और जानवरों की हड्डियां खाईंअकाल के समय लोग खाने के लिए इस कदर मजबूर हो चुके थे कि वे मिट्टी, सूखे पत्ते, और यहां तक कि मरे हुए जानवरों की हड्डियां भी उबालकर खाने लगे। बूंदी जिले के कई गांवों से रिपोर्ट आई कि लोग काले पत्थरों को पीसकर 'भूसी' बना रहे थे ताकि उसका भ्रम हो जाए कि उन्होंने कुछ खाया है। यह मानवता के इतिहास का वह काला अध्याय था जहां भूख ने विवेक को पराजित कर दिया था।
5. सड़क किनारे पड़ी लाशें और सन्नाटाअकाल के दौरान इतनी बड़ी संख्या में लोग मरे कि उन्हें दफनाने या जलाने वाला तक नहीं मिला। राजस्थान के कई गांवों और सड़कों के किनारे लाशें यूं ही पड़ी रही, जिन पर गिद्ध और जानवर टूट पड़ते। जयपुर और टोंक के बीच की सड़कों पर यात्री चलते-चलते रुक जाते थे क्योंकि रास्ता लाशों से पट चुका था। यह दृश्य भयावह था, जो इंसानी असहायता की सीमा दर्शाता है।
6. बाल विवाह में आया उछाल और मानव तस्करीअकाल के चलते गरीबी इतनी बढ़ गई थी कि लोग अपनी बेटियों को बाल विवाह में धकेलने लगे ताकि एक पेट कम हो। वहीं कई जगहों पर मानव तस्करी की घटनाएं भी सामने आईं, जहां भूखे बच्चों को काम के बहाने उठाकर शहरों में बेच दिया गया। यह सिर्फ आर्थिक संकट नहीं था, यह एक सामाजिक त्रासदी भी थी।
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