हाल ही में पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच एक अहम समझौता हुआ है, जिसे दोनों देशों की आपसी साझेदारी का रक्षा से जुड़ा कूटनीतिक समझौता बताया गया.
इस समझौते को लेकर सबसे ज़्यादा चर्चा इस बात की हुई कि अगर एक देश पर हमला हुआ तो उसे दूसरे देश पर भी हमले के तौर पर देखा जाएगा.
भारत में कई विश्लेषकों ने इसे मई में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए सैन्य संघर्ष के संदर्भ में देखना शुरू किया. वहीं पश्चिमी देशों के विश्लेषकों ने इसे बीते दिनों क़तर में हमास के कथित ठिकानों पर इसराइली हमले के संदर्भ में देखा.
बीबीसी हिन्दी के साप्ताहिक कार्यक्रम, 'द लेंस' की इस कड़ी में कलेक्टिव न्यूज़रूम के डायरेक्टर ऑफ़ जर्नलिज़म मुकेश शर्मा ने एक्सपर्ट्स से पाकिस्तान-सऊदी अरब के बीच हुए इस समझौते पर चर्चा की.
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इस समझौते के प्रभाव और अंतरराष्ट्रीय राजनीति में इसके क्या मायने हैं? क्या यह समझौता पाकिस्तान और सऊदी अरब के रिश्तों में आया कोई अहम पड़ाव है?
अमेरिका के रवैये को देखते हुए क्या सऊदी अरब नए साझेदार तलाश कर रहा है? और सबसे अहम सवाल, क्या इससे सऊदी अरब के साथ भारत के रिश्ते प्रभावित होंगे?
इन सवालों के जवाब के लिए कार्यक्रम में दुबई से वरिष्ठ पत्रकार एहतेशाम शाहिद और दिल्ली में कौटिल्य स्कूल ऑफ़ पब्लिक पॉलिसी की असिस्टेंट प्रोफ़ेसर कनिका राखरा से बात की गई.
रक्षा समझौते को किस तरह से देखा जाना चाहिए?दुबई से वरिष्ठ पत्रकार एहतेशाम शाहिद इसमें दो केंद्र बिंदु या पृष्ठभूमि का ज़िक्र करते हैं- एक सुरक्षा और दूसरा आर्थिक पक्ष.
सऊदी अरब के लिए सुरक्षा और पाकिस्तान के लिए आर्थिक सहायता का संदर्भ देते हुए वह कहते हैं कि ऐसी ज़रूरतें बनती हैं कि दोनों देश एक-दूसरे का साथ दें.
एहतेशाम शाहिद कहते हैं, "सऊदी अरब के लिए इस वक़्त सुरक्षा बहुत अहम है. मध्य पूर्व की स्थिति बहुत जटिल है. ईरान है, एक इसराइल का फ़ैक्टर है, जैसे कुछ दिन पहले क़तर पर हमला हुआ है. वहीं इस क्षेत्र में अमेरिका का जो सिक्योरिटी गारंटर का एक रोल रहा है, उसमें कमी महसूस की गई है."
"ऐसे में सऊदी अरब के लिए यह बहुत ज़रूरी था कि वो एक वैकल्पिक सुरक्षा व्यवस्था करे. उस परिप्रेक्ष्य में पाकिस्तान उनकी व्यवस्था में बिल्कुल फ़िट बैठता है."
वह कहते हैं, "पाकिस्तान एक मिलिट्री पावर है और उसे आर्थिक सहायता की ज़रूरत रही है. इस समझौते से आर्थिक मामले में पाकिस्तान को ज़रूर फ़ायदा होगा, जो उनकी सबसे पहली प्राथमिकता है."


डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद जिस तरह से उनका रुख़ रहा है, उसके मद्देनज़र अमेरिका के बहुत सारे सहयोगी उस पर भरोसा महसूस नहीं कर रहे हैं.
सऊदी अरब और अमेरिका के रिश्तों को लेकर हमेशा यह कहा गया कि सऊदी अरब अपनी सुरक्षा के लिए अमेरिका पर निर्भर रहा और रक्षा क्षेत्र में सहयोग चलता रहा.
लेकिन इसराइल का हमास का नाम लेकर क़तर पर अटैक करना सऊदी के लिए चिंता की बात है. दूसरी ओर, उसके ईरान के साथ तनावपूर्ण रिश्ते हैं.
इस तरह, अमेरिका के कथित दोस्त और कथित दुश्मन दोनों सऊदी अरब के लिए चिंता पैदा कर रहे हैं. तो क्या पाकिस्तान के साथ हालिया रक्षा समझौते को सऊदी अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने के दूसरे विकल्प के तौर पर देख रहा है?
कनिका राखरा कहती हैं कि मध्य पूर्व में अमेरिका का रोल कम और ख़राब ही होता जा रहा है.
वह कहती हैं, "जिस तरीक़े से इसराइल का क़तर में हमास के ऊपर हमला हुआ, ये तो एक पड़ाव है. 7 अक्तूबर से हम देखते जा रहे हैं, जिस तरीक़े का सपोर्ट इसराइल को मिल रहा है और ग़ज़ा में जो चीज़ें हो रही हैं, वो बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण हैं."
कनिका राखरा के मुताबिक़ ऐसे में मध्य पूर्व के देश अपने लिए वैकल्पिक सुरक्षा व्यवस्था देख रहे हैं, लेकिन सऊदी अरब के लिए पाकिस्तान अमेरिका का विकल्प नहीं हो सकता.
एहतेशाम शाहिद कहते हैं, "मेरे ख़्याल से ट्रंप के आने के साथ-साथ अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिका के जाने को एक मेजर टर्निंग पॉइंट समझा जाना चाहिए. अमेरिका के मध्य पूर्व के मामलों में इन्वॉल्वमेंट की कमी अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के ज़माने में ही शुरू हो गई थी."
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दोनों ही एक्सपर्ट्स का कहना है कि पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच हुआ रक्षा समझौता भारत के लिए कोई चिंता की बात नहीं है.
कनिका राखरा कहती हैं, "सऊदी अरब के साथ भारत के रिश्ते पाकिस्तान पर निर्भर होकर नहीं बना है. वेस्ट एशिया में भारत हर देश के साथ द्विपक्षीय संबंध बनाता है, न कि डायनेमिक्स को देखते हुए."
एहतेशाम शाहिद कहते हैं, "सऊदी अरब के भारत से जो संबंध हैं, वो मल्टी लेयर्ड हैं और इसमें एक एनर्जी इंटरडिपेंडेंस भी है, इकोनॉमिक इंटरडिपेंडेंस भी है."
वह कहते हैं, "इस क्षेत्र में बहुत बड़ी तादाद में भारतीय भी काम करते हैं. इन सब रिश्तों को बिगाड़ने का कोई मक़सद सऊदी की तरफ़ से नज़र नहीं आता है और न उन्होंने ऐसी कोई बात कही है जिससे ये लगे कि सऊदी भारत से संबंध बिगाड़ कर पाकिस्तान के साथ संबंध बढ़ाना चाहता है."
वह बताते हैं कि जब मोहम्मद बिन सलमान भारत आए थे, तब उन्होंने साफ़ कहा था कि भारत-सऊदी संबंध का पाकिस्तान-सऊदी संबंध से कोई लेना-देना नहीं है.
पाकिस्तान-सऊदी के बीच हुए समझौते में एक-दूसरे को सुरक्षा की गारंटी दिए जाने की जो चर्चा है. उसे अगर भारत-पाकिस्तान के बीच हुए सैन्य संघर्ष के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए, तो उसके क्या मायने हैं?
इस पर कनिका राखरा कहती हैं कि पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच जो समझौता हुआ है, उसका टेक्स्ट कहीं रिलीज़ नहीं हुआ है कि दोनों देश एक-दूसरे को किस तरह का समर्थन देंगे.
वह कहती हैं, "हम इस समझौते को भारत और पाकिस्तान के संदर्भ में देख रहे हैं. लेकिन क्या हम इसे इस संदर्भ में देख रहे हैं कि अगर सऊदी-ईरान की कोई लड़ाई हुई तो इस स्थिति में पाकिस्तान किसका पक्ष लेगा क्योंकि उसके ईरान और सऊदी दोनों के साथ संबंध हैं. तो क्या इसका मतलब है कि पाकिस्तान ईरान पर अटैक करेगा जो उसका पड़ोसी है."
एहतेशाम शाहिद इस समझौते में भारत-पाकिस्तान हालात के मुक़ाबले मध्य पूर्व के सुरक्षा हालात में आने वाली तब्दीलियों को प्रमुख वजह मानते हैं.
उनके मुताबिक़ फ़िलहाल ऐसी कोई बात नहीं है, जिससे भारत-सऊदी रिश्ते बिगड़ते नज़र आ रहे हों.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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