अमेरिका ने ईरान के ऊर्जा व्यापार और शिपिंग नेटवर्क को निशाना बनाते हुए छह भारतीय कंपनियों समेत कुल 20 संस्थाओं पर नए प्रतिबंधों का एलान किया है.
अमेरिकी विदेश विभाग ने कहा है, "ईरान का शासन मध्य पूर्व में लड़ाई को बढ़ावा देता है और वो उससे मिली कमाई का इस्तेमाल अस्थिर करने वाली गतिविधियों के लिए करता है. इसी वजह से अमेरिका ईरान के तेल, तेल उत्पाद और पेट्रोकेमिकल कारोबार से जुड़ी 20 कंपनियों पर प्रतिबंध लगा रहा है और 10 जहाजों को ब्लॉक की गई संपत्ति मान रहा है."
ये नए प्रतिबंध ऐसे समय पर सामने आए हैं जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत से आयात होने वाले सामान पर 25 फ़ीसदी टैरिफ़ लगाने की घोषणा की है.
ईरान ने इन प्रतिबंधों को भेदभावपूर्ण बताते हुए कहा है, "ये अंतरराष्ट्रीय क़ानून और राष्ट्रीय संप्रभुता के सिद्धांतों का उल्लंघन है और आर्थिक साम्राज्यवाद का एक नया रूप है."
अमेरिकी विदेश विभाग की ओर से जारी प्रेस रिलीज़ में कहा गया है, "आज अमेरिका ऐसा कदम उठा रहा है जिससे उस कमाई को रोका जा सके जिसका इस्तेमाल ईरानी शासन विदेश में आतंकवाद को बढ़ावा देने और अपने ही लोगों पर दमन करने के लिए करता है."
बयान में यह भी कहा गया है कि भारत, संयुक्त अरब अमीरात, तुर्की और इंडोनेशिया की कई कंपनियों को ईरान के पेट्रोकेमिकल उत्पादों की बड़ी बिक्री और खरीद में शामिल पाए जाने के कारण प्रतिबंध सूची में डाला जा रहा है.
बयान में चेतावनी दी गई है, "जैसा कि राष्ट्रपति ट्रंप पहले भी कह चुके हैं, कोई भी देश या व्यक्ति अगर ईरानी तेल या पेट्रोकेमिकल उत्पाद खरीदने का फैसला करता है तो वह खुद को अमेरिकी प्रतिबंधों के खतरे में डालता है और उसे अमेरिका के साथ कारोबार करने की अनुमति नहीं दी जाएगी."
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इसी के साथ, अमेरिकी वित्त विभाग हुसैन शामखानी के बड़े शिपिंग कारोबार से जुड़े 115 से ज्यादा लोगों, कंपनियों और जहाजों पर भी कार्रवाई कर रहा है. हुसैन शामखानी, ईरान के सर्वोच्च नेता के राजनीतिक सलाहकार अली शामखानी के बेटे हैं.
न्यूज़ एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़, अमेरिकी वित्त विभाग के बयान में कहा गया है कि संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में रहने वाले भारतीय मूल के पंकज नागजीभाई पटेल का नाम भी प्रतिबंध सूची में जोड़ा गया है. पटेल ने हुसैन शामखानी के नेटवर्क से जुड़ी कई शिपिंग कंपनियों में बतौर एग्ज़ीक्यूटिव काम किया है, जिनमें टियोडोर शिपिंग भी शामिल है.
इसके अलावा, भारतीय नागरिक जैकब कुरियन और अनिल कुमार पनाक्कल नारायणन नायर को भी इस सूची में डाला गया है. ये दोनों मार्शल आइलैंड्स में पंजीकृत नियो शिपिंग नाम की कंपनी से जुड़े रहे हैं. यह कंपनी अभ्रा नाम के जहाज की मालिक है, जो हुसैन शामखानी के नेटवर्क की ओर से संचालित जहाजों के बेड़े का हिस्सा है.
इन छह भारतीय कंपनियों पर लगा है प्रतिबंधअमेरिकी विदेश विभाग के बयान के मुताबिक़, इन भारतीय कंपनियों पर आरोप है कि इन्होंने ईरान से तेल और पेट्रोकेमिकल सामान खरीदने-बेचने के करोड़ों डॉलर के सौदे किए.
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अमेरिकी विदेश विभाग ने कहा है कि जिन लोगों और कंपनियों पर ये प्रतिबंध लगाए गए हैं, उनकी जो भी संपत्ति या पैसे अमेरिका में हैं या जो किसी अमेरिकी नागरिक या संस्था के पास या उनके नियंत्रण में हैं, उन सबको रोक (ब्लॉक) दिया जाएगा. इनकी जानकारी अमेरिका के वित्त मंत्रालय के "ऑफिस ऑफ फॉरेन एसेट कंट्रोल (ओएफएसी)" को देना ज़रूरी होगा.
इसमें यह भी शामिल है कि किसी ब्लॉक किए गए व्यक्ति या कंपनी को पैसा, सामान या कोई सेवा देना, उनके लिए काम करना या उनसे कुछ लेना, सब मना है.
बयान में यह भी कहा गया है कि इन प्रतिबंधों का मकसद किसी को सज़ा देना नहीं है, बल्कि उनके व्यवहार और कामकाज में सुधार लाना है.
ईरान ने अमेरिका के इस कदम की तीखी आलोचना की है. भारत में ईरान के दूतावास और ईरान के विदेश मंत्रालय दोनों ने इसे भेदभावपूर्ण और दुर्भावनापूर्ण बताया. दूतावास ने अपने आधिकारिक एक्स अकाउंटपर लिखा, "संयुक्त राज्य अमेरिका लगातार अर्थव्यवस्था को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहा है और प्रतिबंधों को ऐसे औज़ार बना रहा है जिनके ज़रिए वह ईरान और भारत जैसे स्वतंत्र देशों पर अपनी मर्ज़ी थोपना चाहता है और उनके विकास और प्रगति को रोकना चाहता है.
ये जबरन और भेदभावपूर्ण कदम अंतरराष्ट्रीय कानून और राष्ट्रीय संप्रभुता के सिद्धांतों का उल्लंघन हैं और आर्थिक साम्राज्यवाद का एक नया रूप हैं.
ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ताने कहा, "अमेरिका द्वारा ईरान के तेल व्यापार पर लगाए गए नए प्रतिबंध एक दुर्भावनापूर्ण कदम हैं, जिनका मकसद ईरान की आर्थिक प्रगति और उसके लोगों की भलाई को नुकसान पहुंचाना है. ये एकतरफा और गैरकानूनी प्रतिबंध आपराधिक प्रकृति के हैं, अंतरराष्ट्रीय कानून और मानवाधिकारों के बुनियादी सिद्धांतों और नियमों का उल्लंघन करते हैं और इंसानियत के ख़िलाफ़ अपराध हैं."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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