एक तरफ़ नेपाल, तो दूसरी तरफ़ पश्चिम बंगाल. बांग्लादेश का बॉर्डर भी यहाँ से ज़्यादा दूर नहीं है. यह बिहार का मुस्लिम बहुल आबादी वाला किशनगंज ज़िला है.
आजकल केंद्रीय चुनाव आयोग बिहार की मतदाता सूची में संशोधन करा रहा है. इस प्रक्रिया का नाम दिया गया है विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर. यह प्रक्रिया बिहार में बहस का मुद्दा बनी हुई है क्योंकि यहाँ इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं.
चुनाव आयोग जहाँ इसे ज़रूरी बता रहा है, वहीं विपक्ष ने इस पर कई सवाल उठाए हैं. सवाल किशनगंज में रहने वाले कई मुसलमानों के मन में भी हैं.
शरीफ़ुद्दीन काफ़ी परेशान हैं. वह कहते हैं, "मैं 80 साल का हो गया हूँ, मेरा बाप यहीं मरा, दादा यहीं दफ़न है और अब हमसे दस्तावेज़ मांगे जा रहे हैं. हमसे नागरिकता का सवाल किया जा रहा है."
जैनुल (बदला हुआ नाम) जैसे लोगों का कहना है कि अगर किसी वजह से उनका नाम मतदाता सूची में नहीं आया, तो उनकी नागरिकता पर सवाल उठ सकते हैं.
हालाँकि, कई मतदाता इसे एक ज़रूरी प्रक्रिया के रूप में भी देख रहे हैं.
वहीं किशनगंज के ज़िलाधिकारी विशाल राज सिंह का कहना है कि जिन्होंने एन्यूमरेशन फ़ॉर्म भरा है, उनका नाम लिस्ट में ज़रूर आएगा.
बूथ लेवल अधिकारी (बीएलओ) अंतिम मतदाता तक पहुँचने की कोशिश में जुटे हैं.
चुनाव आयोग के मुताबिक़, बिहार में अब तक 97 फ़ीसदी से अधिक मतदाताओं का डेटा लिया जा चुका है.
2003 के बाद से पहली बार इस तरह की प्रक्रिया को लेकर चुनाव आयोग का कहना है कि इसका मक़सद हर मतदाता की पुष्टि करना और सुनिश्चित करना है कि कोई भी अवैध मतदाता सूची में ना रहे.
जिन लोगों के नाम 2003 की मतदाता सूची में हैं, उनसे फ़ॉर्म के साथ सिर्फ़ वोटर लिस्ट की कॉपी ली जा रही है. लेकिन जिन लोगों के नाम मतदाता सूची में 2003 के बाद जुड़े हैं, उनसे पहचान पुख़्ता करने के लिए दस्तावेज़ मांगे जा रहे हैं.
किशनगंज के हालात
किशनगंज ज़िले में ख़ासकर सीमावर्ती गाँवों में अधिकतर लोगों ने फ़ॉर्म तो भर दिए हैं, लेकिन अंतिम सूची में नाम आने को लेकर यहाँ लोगों के मन में अनिश्चितता बनी हुई है.
किशनगंज की लगभग 70 फ़ीसदी आबादी मुस्लिम है. इस ज़िले का उत्तरी हिस्सा नेपाल से सटा है जबकि पूर्वी हिस्सा पश्चिम बंगाल के उत्तर दिनाजपुर ज़िले से.
बिहार के बाक़ी ज़िलों की तुलना में किशनगंज साक्षरता दर और आर्थिक विकास के मामले में पिछड़ा है.
यह सबसे कम शैक्षणिक दर वाले ज़िलों में शामिल है. 2011 की जनगणना के मुताबिक़, यहाँ सिर्फ़ 55.46 प्रतिशत लोग ही साक्षर थे. बिहार में साक्षरता दर 61.8 प्रतिशत है, जबकि राष्ट्रीय औसत 74.04 प्रतिशत है.
आर्थिक विकास के मामले में भी किशनगंज राज्य के सबसे पिछड़े ज़िलों में शामिल है.
पिछली जनगणना के आँकड़ों के मुताबिक़, यहाँ 88 फ़ीसदी से अधिक आबादी ग्रामीण इलाक़ों में रहती है. यहाँ कई नदियाँ हैं और बरसात के समय में ज़िले का बड़ा इलाक़ा बाढ़ प्रभावित रहता है. हालाँकि इस साल अभी बाढ़ का असर नहीं है.
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यहाँ कई लोगों के लिए मतदाता सूची में नाम आना सिर्फ़ वोट डालने का ही नहीं, बल्कि पहचान से जुड़ा मसला भी बन गया है.
नेपाल सीमा से सटे भातगाँव पंचायत के मुसलमान बहुल बिरनाबाड़ी गाँव में अधिकतर लोगों ने अपने दस्तावेज़ जमा करा दिए हैं. लेकिन यहाँ किसी को भी रिसीविंग फ़ॉर्म नहीं मिला है.
80 साल के शरीफ़ुद्दीन का परिवार कई पीढ़ियों से इसी गाँव में रह रहा है. शरीफ़ुद्दीन कहते हैं कि उनसे दस्तावेज़ मांगे जा रहे हैं और नागरिकता पर सवाल उठाया जा रहा है.
शरीफ़ुद्दीन के तीन बेटे राज्य से बाहर मज़दूरी करते हैं. दो बेटे गाँव पहुँच गए और एक नहीं पहुँच पाया. शरीफ़ुद्दीन ने अपने इस बेटे का फ़ॉर्म व्हाट्सऐप पर मंगवा कर ख़ुद ही भरा है. उन्हें डर है कि कहीं कोई नाम सूची से छूट ना जाए.
कुछ लोगों, ख़ासकर सीमावर्ती मुसलमान बहुल गाँवों में ये डर है कि अगर दस्तावेज़ में किसी कमी के कारण मतदाता सूची में नाम नहीं आया, तो वो अलग-थलग पड़ सकते हैं.
स्थानीय स्तर पर यह आशंका कुछ लोगों के मन में है कि ऐसा होने पर उन्हें विदेशी भी माना जा सकता है.
शरीफ़ुद्दीन कहते हैं, "हमसे लोग कहते हैं कि तुम्हारा नाम हट जाएगा, बहुओं का नाम निकल जाएगा, तुम बांग्लादेशी हो. इस तरह की बातें हम तक पहुँच रही हैं. अगर नाम हट गया तो हमारा क्या होगा?"
यहाँ सुरजापुरी भाषा बोली जाती है, जिस पर बांगला का भी असर है. पश्चिम बंगाल के क़रीब होने के कारण यहाँ बांग्ला संस्कृति का असर भी नज़र आता है.
'नहीं भरे जा सके फ़ॉर्म'किशनगंज शहर से क़रीब 45 किलोमीटर दूर, नेपाल सीमा से सटे दीघलबैंक इलाक़े की एक पंचायत के वार्ड सदस्य घर-घर पहुँचकर पुष्टि कर रहे हैं कि कहीं किसी का नाम छूट ना जाए.
अब्दुल रहमान (बदला हुआ नाम) बीबीसी को बताते हैं, "मेरे वॉर्ड में 650 वोट हैं. अब तक 60 से अधिक फ़ॉर्म जमा नहीं हुए हैं. इनमें से अधिकतर मतदाता मुस्लिम हैं."
रहमान जब हमें मिले, एन्यूमरेशन फ़ॉर्म भरने के लिए बस दो दिन बचे थे.
रहमान कहते हैं, "हम बीएलओ से बार-बार कह रहे हैं फ़ॉर्म लीजिए, लेकिन वो टाल देते हैं, कोई कमी बता देते हैं. अब अगर फ़ॉर्म भरने से रह गया, तो इन मतदाताओं का क्या होगा?"
यहीं हमें एक मतदाता जैनुल (बदला हुआ नाम) मिले. फ़ॉर्म के साथ वो सरकारी स्कूल के चक्कर काट रहे थे और एक बार फिर वो फ़ॉर्म जमा नहीं कर सके.
जैनुल कहते हैं, "बीएलओ घर तो नहीं आए, हम ही तीन-चार बार चक्कर काट चुके हैं. लेकिन हर बार फ़ॉर्म नहीं लेते."
जैनुल बार-बार ये डर ज़ाहिर कर रहे थे कि अगर उनका फ़ॉर्म जमा नहीं हुआ और वोटर लिस्ट से नाम निकल गया, तो उनकी नागरिकता पर सवाल उठ सकते हैं.
उन्होंने अपने फ़ॉर्म के साथ निवास प्रमाण पत्र के आवेदन की कॉपी और बाक़ी ज़रूरी दस्तावेज़ लगाए हैं. जब बीबीसी ने संबंधित बीएलओ से फ़ोन पर बात की, तो उन्होंने आवेदक को अपने पास भेजने के लिए कहा.
हालाँकि किशनगंज के ज़िलाधिकारी विशाल राज सिंह ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि हर व्यक्ति जिसने एन्यूमरेशन फ़ॉर्म भरा है, उसका नाम ड्राफ़्ट सूची में ज़रूर आएगा.
ठाकुरगंज के बीडीओ अहमर अब्दाली ने फ़ोन पर बात करते हुए बीबीसी से कहा कि ये नागरिकता की जाँच नहीं, बल्कि मतदाता सूची में पंजीकरण है.
वहीं लोगों के मन में उठ रहे सवालों पर ज़िलाधिकारी विशाल राज सिंह ने बीबीसी से कहा कि जो वैध नागरिक हैं, उनमें से किसी का नाम नहीं हटेगा.
उन्होंने बताया कि अगर कोई अवैध पाया जाता है, तो उसका नाम भी सुनवाई का मौक़ा देने के बाद हटाया जाएगा.
विशाल राज सिंह ने कहा, "हमें बोगस वोटर मिले हैं, क्या इनमें विदेशी नागरिक हैं, इसकी गहनता से जाँच होगी."
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कई लोगों का मानना है कि दस्तावेज़ इकट्ठा करने के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया गया.
बिरनाबाड़ी गाँव के मोहम्मद आमिर ने अब राहत की साँस ली है. वो गाँव के अधिकतर लोगों के फ़ॉर्म बीएलओ के पास जमा करा चुके हैं. हालाँकि, उनका दावा है कि उन्हें कोई रिसिविंग नहीं मिली है.
आमिर कहते हैं, "दस्तावेज़ इकट्ठा करने के लिए इतनी परेशानी हुई कि हम कई दिनों तक सो नहीं पाए. चुनाव आयोग ने बहुत कम समय दिया. कंप्यूटर की दुकान पर रात भर फोटो खिंचवाने के लिए लोग लगे रहे. निवास प्रमाण पत्र के लिए फ़ॉर्म भरवाने में संघर्ष करना पड़ा. सभी के फ़ॉर्म तो भरवा दिए हैं, लेकिन रिसीविंग नहीं मिली है. अब भी मन में सवाल है कि अगर नाम न आया तो क्या होगा. ये एक आम धारणा बन गई है कि मुसलमानों का नाम लिस्ट से हटाया जा सकता है."
चुनाव आयोग के निर्देशों के तहत मतदाता बीएलओ से फ़ॉर्म की रिसीविंग मांग सकते हैं. इसके अलावा वो ऑनलाइन भी अपने आवेदन का स्टेट्स चेक कर सकते हैं.
कुछ मतदाताओं के फ़ॉर्म अपलोड होने के बारे में एसएमएस से भी जानकारी दी जा रही है.
बीबीसी ने कई मतदाताओं के फ़ोन में फ़ॉर्म जमा हो जाने से जुड़े मैसेज भी देखे हैं.
लेकिन बिहार के पिछड़े इलाक़ों में कई मतदाताओं की पहुंच इंटरनेट या फ़ोन तक नहीं हैं. ऐसे में जानकारी के लिए वो दूसरों पर निर्भर हैं.
ग्रामीण इलाक़ों, ख़ासकर पश्चिम बंगाल से सटे इलाक़ों में बंगाल में शादी होना आम बात है.
मोहम्मद आमिर कहते हैं, "हमारे यहाँ कई महिलाएँ बंगाल से हैं और झारखंड से भी हैं. उनके मायके से दस्तावेज़ मंगवाने में बहुत कठिनाई हुई है. अगर और अधिक समय दिया जाता, तो सभी के दस्तावेज़ इकट्ठे कर लिए जाते."
लेकिन किशनगंज के ज़िलाधिकारी विशाल राज सिंह ने बीबीसी से कहा है कि जो मतदाता राज्य से बाहर हैं, उनसे वहीं से फ़ॉर्म लिए जा रहे हैं.
उन्होंने बताया, "ये डर किसी के मन में नहीं होना चाहिए कि उनका नाम सूची में नहीं आएगा. अगर फ़ॉर्म भरा गया है, तो ड्राफ़्ट लिस्ट में नाम ज़रूर होगा. अगर पहचान से जुड़े दस्तावेज़ों को लेकर कोई सवाल होगा भी, तो उसका जवाब देने के लिए भी पर्याप्त समय दिया जाएगा."
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चुनाव आयोग ने पहचान की पुष्टि के लिए 11 दस्तावेज़ मांगे हैं. इनमें आधार या बैंक पासबुक शामिल नहीं है.
इनमें मैट्रिक सर्टिफ़िकेट, जाति प्रमाण पत्र, निवास प्रमाण पत्र और जम़ीन के मालिकाना हक़ से जुड़े दस्तावेज़ शामिल हैं. साक्षरता दर कम होने की वजह से मैट्रिक सर्टिफ़िकेट भी बहुत से लोगों के पास नहीं है.
जिन लोगों के पास दस्तावेज़ नहीं हैं, वो निवास प्रमाण पत्र बनवाने में लगे हैं.
जनवरी से जून 2005 के बीच किशनगंज में हर महीने 26-28 हज़ार आवेदन निवास प्रमाण पत्र के लिए आ रहे थे.
लेकिन एसआईआर शुरू होने के बाद सिर्फ़ जुलाई के पहले 20 दिनों में ही 3.41 लाख आवेदन आए हैं.
अब ये प्रमाण पत्र जारी करने से पहले जाँच भी हो रही है. एक मुस्लिम बहुल गाँव के वॉर्ड सदस्य ने बीबीसी से कहा, "हर निवास प्रमाण पत्र आवेदक की जाँच के लिए पुलिस गाँव आ रही है. पहचान पुख़्ता की जा रही है."
किशनगंज के नेपाल सीमा से सटा है ठाकुरगंज ब्लॉक. यहाँ हमारी मुलाक़ात बेबी ख़ातून से हुई, जो बाहर मज़दूरी करने गए अपने पति का निवास प्रमाण पत्र बनवाने आई हैं.
उनके लिए ये दस्तावेज़ वोटर सूची में नाम आने के लिए ज़रूरी है.
बेबी ख़ातून कहती हैं, "मैंने ऑनलाइन फ़ॉर्म भरा, लेकिन प्रमाण पत्र नहीं बना. फिर यहाँ ब्लॉक के चक्कर काट रही हूँ. मुझे बताया गया है कि फ़ॉर्म बहुत अधिक आ गए हैं, इसलिए टाइम लग रहा है. अगर मेरे पति का वोटर लिस्ट फ़ॉर्म नहीं भरा गया, तो उनका नाम कट जाएगा."
ब्लॉक के कर्मचारियों ने बेबी ख़ातून को भरोसा दिया है कि जाँच के बाद उनके पति का निवास प्रमाण पत्र बन जाएगा. लेकिन उनके मन में सवाल बना हुआ है.
ठाकुरगंज ब्लॉक में भी निवास प्रमाण के लिए आ रहे आवेदनों की संख्या बढ़ी है. जिन लोगों के पास दस्तावेज़ नहीं है, उनमें से अधिकतर निवास प्रमाण पत्र बनवाने में जुटे हैं.
स्थानीय पत्रकार जब्बार अहमद कहते हैं, "शुरू में जब एसआईआर का आदेश आया था, तो लोगों के मन में भय था कि काग़ज़ कैसे बनेंगे. फिर सोशल मीडिया और मीडिया के ज़रिए जागरूकता फैलाई गई. ब्लॉक में आवेदकों की भीड़ लगी रही. अब अधिकतर फ़ॉर्म जमा तो हो गए हैं, लेकिन लोगों के मन में सवाल बने हुए हैं."
क्या कहना है हिंदू मतदाताओं का?हालाँकि कई मतदाता ऐसे भी हैं, जो इस प्रक्रिया को एक ज़रूरी कार्रवाई के रूप में देख रहे हैं.
भातगाँव पंचायत के पूर्व मुखिया ज्ञानेश्वर प्रसाद कहते हैं, "ये मतदाता पुनरीक्षण है. जो मर गए हैं, उनका नाम हटेगा. जिनका कहीं और भी नाम है वो भी हटेगा, कुछ संदिग्ध मतदाता हैं, वो भी हटेंगे. जिनके दस्तावेज़ पक्के हैं, उन्हें कोई डर नहीं होना चाहिए."
वहीं किशनगंज शहर की सीमा से सटी चकला पंचायत में चाय की दुकान चलाने वाले तपन शाह कहते हैं, "हमें कोई डर नहीं है, जो भी दस्तावेज़ मांगे जाएँगे, वो देंगे. ये तो अच्छी बात है कि हमसे सबूत मांगा जा रहा है. इससे तो ये ही साबित होगा कि हम यहाँ कितने सालों से रह रहे हैं."
दुकान चलाने में उनका सहयोग कर रहे तपन के बेटे कहते हैं, "जो-जो दस्तावेज़ मांगे गए थे, हमने सभी जमा करा दिए हैं. हमारे मन में किसी तरह का कोई डर नहीं है. ये ज़रूरी प्रक्रिया है, जो चुनाव आयोग कर रहा है."
हालाँकि अब भी कई मतदाता ऐसे हैं, जिनके फ़ार्म नहीं जमा हो सके. कोचाधामान ब्लॉक के धनपतगंज गाँव की मुसरहर टोली के रामोनी ऋषिदेव अपनी बहू का फ़ॉर्म नहीं जमा करा सके. अब उन्हें फ़िक्र है कि कहीं उनकी बहू मताधिकार से वंचित ना रह जाए.
अपनी झोपड़ी के भीतर पुराने संदूक से फॉर्म निकालकर दिखाते हुए रामोनी कहते हैं, "बहू काम पर चली गई थी, इसलिए फ़ॉर्म नहीं जमा हुआ. बेटा बाहर है, उसका फ़ॉर्म हम अपना हस्ताक्षर करके जमा करा दिए हैं. पैसे की कमी से वो भी गाँव नहीं आ सका."
रामोनी बार-बार कहते हैं कि ग़रीब के पास वोट ही एक अधिकार है. अगर वोट नहीं रहा तो कोई उनकी सुनवाई नहीं करेगा.
उनका डर चेहरे पर साफ़ नज़र आता है. काँपते हुए शब्दों में वह कहते हैं, "वोट है तब ही तो हम सरकार का आदमी है, अगर वोट नहीं रहेगा, तो कोई सुनवाई नहीं होगी"
किशनगंज और सीमांचल में विदेशी घुसपैठ का सवालकिशनगंज में निवास प्रमाण पत्र के आवेदनों की संख्या को लेकर सत्ताधारी बीजेपी के नेता और बिहार के उप-मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने सवाल उठाए हैं.
एक बयान में उन्होंने कहा है, "यहाँ निवास प्रमाण पत्र की मांग में बढ़ोतरी से संकेत मिलता है कि दूसरे देशों से बड़ी तादाद में लोग आए हैं. हमें शक है कि किशनगंज में बांग्लादेश, नेपाल और भूटान के नागरिक बड़ी तादाद में हो सकते हैं. किशनगंज पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए. केंद्र सरकार, राज्य सरकार और चुनाव आयोग को पता करना चाहिए कि यहाँ विदेशी छुपकर तो नहीं रह रहे हैं."
एआईएमआईएम के विधायक अख़्तरुल ईमान कहते हैं, "यहाँ ग़रीबी और अशिक्षा है. बिहार में सबसे ज़्यादा अनपढ़ लोग सीमांचल में ही हैं. ये बाढ़ से प्रभावित इलाक़ा है. हमारे इलाक़े में जन्म-मृत्यु का भी सही से पंजीकरण नहीं हो सका है और उसका प्रमाण पत्र मांगा जा रहा है. इस विशेष गहन पुनरीक्षण के दौरान किशनगंज और सीमांचल के लोगों को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है."
अख़्तरुल ईमान का कहना है, "2003 में भी ये पुनरीक्षण हुआ था, लेकिन तब ऐसे सवाल नहीं खड़े किए गए थे, जैसे इस बार किए गए हैं. 11 दस्तावेज़ तलब किए गए हैं. लोगों को ऐसा लग रहा है कि ये पुनरीक्षण नहीं, बल्कि चोर दरवाज़े से एनआरसी (नेशनल सिटीजनशिप रजिस्टर) है."
ये पहली बार नहीं है जब बड़ी मुसलमान आबादी वाले सीमांचल को लेकर सवाल उठा हो. किशनगंज सीमांचल में ही है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान पूर्णिया में कहा था, "वोट बैंक की राजनीति करने वालों ने पूर्णिया और सीमांचल को अवैध घुसपैठ का ठिकाना बनाकर यहाँ की सुरक्षा को दांव पर लगाया है."
'मैं मीडिया' के संस्थापक और पत्रकार तनज़ील आसिफ़ कहते हैं, "प्रधानमंत्री से लेकर केंद्रीय मंत्री और स्थानीय नेता सीमांचल और किशनगंज को लेकर बयानबाज़ी करते रहे हैं. इस इलाक़े को घुसपैठ का अड्डा बताया जाता रहा है. इसी वजह से स्थानीय मतदाताओं में ये डर है कि अगर उनका नाम मतदाता सूची में नहीं आया, तो उन पर सवाल उठ सकते हैं."
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