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क्वाड देशों के बयान में पहलगाम हमले की निंदा, लेकिन पाकिस्तान पर चुप्पी

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Getty Images एससीओ के बयान में पहलगाम हमले का ज़िक्र नहीं था लेकिन क्वाड ने अपने बयान में पहलगाम हमले की निंदा की है

अमेरिका में हुई क्वाड देशों की बैठक में पहलगाम हमले की कड़ी निंदा की गई लेकिन पाकिस्तान का नाम नहीं लिया गया.

भारत कई बार दोहरा चुका है कि यह सीधा 'सीमा पार आतंकवाद' का मामला है और 'पाकिस्तान से आए आतंकवादियों' ने इसे अंजाम दिया है.

भारत-पाकिस्तान में युद्धविराम के बाद ऐसे कई वाक़ये हुए जिनसे एक संदेश गया कि अमेरिका का रुख़ पाकिस्तान को लेकर नरम हुआ है.

जून में पाकिस्तान के फील्ड मार्शल आसिम मुनीर को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने व्हाइट हाउस में लंच के लिए आमंत्रित किया था. फिर पाकिस्तान ने ट्रंप के नाम की नोबेल शांति पुरस्कार के लिए सिफ़ारिश की.

इन घटनाओं से एक संदेश गया कि अमेरिका पाकिस्तान के नज़दीक जाने की कोशिश कर रहा है.

पिछले हफ़्ते भारत में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक उस वक़्त चर्चा में आई जब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ज्वाइंट स्टेटमेंट पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया.

भारत की चिंता 'आतंकवाद' को लेकर थी. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने बताया था कि आतंकवाद की चिंताओं (भारत की) को लेकर एक देश को आपत्ति थी जिसकी वजह से स्टेटमेंट फ़ाइनल नहीं हुआ.

इस घटना के लगभग एक हफ़्ते बाद अमेरिका में क्वाड देशों- ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका के विदेश मंत्रियों की बैठक हुई. इसमें सभी क्वाड देशों ने एक स्वर में 'पहलगाम में हुए आतंकी हमले की निंदा' की है.

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मीटिंग से पहले विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अपनी बात रखी और कहा, "भारत के पास आतंकवाद के ख़िलाफ़ अपने नागरिकों की रक्षा करने का पूरा अधिकार है और हम इस अधिकार का प्रयोग करते रहेंगे. हम उम्मीद करते हैं कि हमारे क्वाड साझेदार इसे समझेंगे और सराहेंगे."

जानकार जयशंकर के इस बयान को पाकिस्तान के लिए कड़े और स्पष्ट संदेश के तौर पर देख रहे हैं.

भारत के पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर लिखा, "ट्रंप और सेंटकॉम कमांडर की तरफ़ से पाकिस्तान पर हाल ही में दिए गए बयानों को देखते हुए, अमेरिकी विदेश मंत्री की उपस्थिति में पाकिस्तान को एक कड़ा, स्पष्ट और साहसिक संदेश दिया गया."

क्वाड और एससीओ अपनी संरचना, उद्देश्यों और भू-राजनीतिक झुकाव में काफी अलग हैं और पहलगाम हमले को लेकर दोनों संगठनों के रुख़ में ये बात साफ दिखाई देती है.

क्वाड ने अपने साझा बयान में कहा है, "क्वाड हर तरह के आतंकवाद और हिंसक चरमपंथ की कड़ी निंदा करता है, जिसमें सीमा पार आतंकवाद भी शामिल है. आतंकवाद के खिलाफ सहयोग के लिए अपने संकल्प को दोहराता है. हम 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलग़ाम में हुए आतंकवादी हमले की कड़ी निंदा करते हैं, जिसमें 25 भारतीय नागरिकों और एक नेपाली नागरिक की मौत हुई और कई लोग घायल हुए."

शॉन टंडन समाचार एजेंसी एएफ़पी के लिए वॉशिंगटन, डी.सी. में स्टेट डिपार्टमेंट कवर करते हैं.

शॉन टंडन का कहना है कि भारत के आग्रह पर ही सभी विदेश मंत्री पाकिस्तान का नाम लिए बगैर पहलगाम हमले की निंदा पर सहमत हुए हैं.

एक तरफ़ क्वाड पहलगाम हमले के पीड़ितों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर न्याय की बात कर रहा है तो दूसरी तरफ़ एससीओ इस मामले को अपने बयान में शामिल नहीं करता है.

एससीओ की चुप्पी चीन और पाकिस्तान जैसे सदस्य देशों के प्रभाव को दिखाती है, जहां वह भारत के 'पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद' के आरोप का समर्थन करने से बचते हैं. साथ ही यह चुप्पी यह भी दर्शाती है कि वह सदस्य देशों, खासकर चीन और पाकिस्तान के बीच सामंजस्य को भारत की चिंता से ज़्यादा प्राथमिकता देता है.

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, भारत ने एससीओ के संयुक्त बयान को 'पाकिस्तान समर्थक' माना, क्योंकि इसमें पहलगाम हमले का ज़िक्र तो नहीं किया गया लेकिन बलूचिस्तान में 'आतंकवादी गतिविधियों' का उल्लेख किया गया.

पाकिस्तान ने भारत पर 'बलूचिस्तान स्वतंत्रता आंदोलन का समर्थन' करने का आरोप लगाया है, जिसका भारत खंडन करता है.

हालांकि, रूस भी एससीओ का सदस्य देश है और भारत के मामले में ज्वाइंट स्टेटमेंट को लेकर रूस की सहमति पर भी सवाल उठे हैं.

चीन, रूस और चार मध्य एशियाई देशों ने क्षेत्र में पश्चिम के प्रभाव को सीमित करने के लिए 2001 में एससीओ का गठन किया था. भारत और पाकिस्तान 2017 में इसमें शामिल हुए.

वहीं, क्वाड का उद्देश्य इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र में स्वतंत्रता और नियम-आधारित व्यवस्था को बढ़ावा देना है. क्वाड को इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के रूप में भी देखा जाता है, हालांकि क्वाड को औपचारिक रूप से चीन-विरोधी मंच नहीं कहा जाता है.

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image Getty Images चीन के साथ रूस भी एससीओ का एक अहम सदस्य है चीन के दबदबे को चुनौती

क्वाड ने अपने हालिया साझा बयान में पूर्वी चीन सागर और दक्षिण चीन सागर की स्थिति को लेकर चिंता जताई है.

बयान के मुताबिक़, "हम पूर्वी चीन सागर और दक्षिण चीन सागर में किसी भी एकतरफ़ा कोशिश के सख़्त खिलाफ हैं जो बल प्रयोग या दबाव डालकर यथास्थिति को बदलने की कोशिश करती है."

अमेरिका ने चीन का मुक़ाबला करने के प्रयासों के तहत ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान के साथ महत्वपूर्ण खनिज संबंधी पहल शुरू करने की घोषणा की.

वॉशिंगटन में हुई बैठक के बाद एक संयुक्त बयान में क्वाड देशों ने "क्वाड क्रिटिकल मिनरल्स इनिशिएटिव" की घोषणा की. इसका उद्देश्य है खनिज आपूर्ति को सुरक्षित और मज़बूत बनाना ताकि आर्थिक सुरक्षा बढ़ाई जा सके.

इसका मक़सद चीन पर निर्भरता कम करना भी है.

अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने क्वाड देशों को महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार बताया है और कहा है कि अब कुछ अहम मुद्दों पर 'कार्रवाई करने का' समय आ गया है.

उन्होंने कहा कि क्वाड देशों की 30 या 40 कंपनियां मंगलवार को अमेरिकी विदेश मंत्रालय में मिल रही हैं, जहां वे आपसी सहयोग पर चर्चा करेंगी, जिसमें अहम खनिजों की आपूर्ति में विविधता लाना शामिल है. इस क्षेत्र पर फिलहाल चीन का दबदबा है.

क्वाड ने उत्तर कोरिया के मिसाइल परीक्षण और संभावित परमाणु हथियार गतिविधियों पर गहरी चिंता जताई. क्वाड ने सभी देशों को चेताया कि कोई भी देश उत्तर कोरिया को सैन्य या तकनीकी सहायता न दे.

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image Getty Images 2023 में हुई ब्रिक्स समिट की तस्वीर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की दुविधा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पांच देशों की यात्रा (2-9 जुलाई) पर हैं. इस दौरान वह ब्राज़ील भी जाएंगे और ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में शिरकत करेंगे.

2025 में ब्रिक्स समिट का आयोजन ब्राज़ील के रियो डी जनेरियो में हो रहा है. ब्रिक्स के अलावा भारत की मौजूदगी क्वाड, एससीओ, जी-20 और बिम्सटेक जैसे समूहों में भी है.

भारत ऐतिहासिक रूप से गुटनिरपेक्ष नीति का समर्थक रहा है और इन बहुपक्षीय मंचों के माध्यम से ग्लोबल साउथ के नेतृत्व का दावा भी पेश करता है. लेकिन उसके सामने कई चुनौतियां भी हैं.

उदाहरण के लिए भारत ब्रिक्स के ज़रिए एक मल्टीपोलर वर्ल्ड ऑर्डर को बढ़ावा देना और पश्चिमी देशों के दबदबे को संतुलित करना चाहता है. लेकिन इसी समूह में चीन के साथ उसका तनाव साफ़ तौर पर देखा जा सकता है, जबकि ब्रिक्स में चीन एक प्रभावशाली भूमिका रखता है. इसके अलावा रूस और चीन की नज़दीकी भी भारत को असहज करती है.

वहीं क्वाड में चीन की तीखी आलोचना होती है, जबकि भारत ब्रिक्स और एससीओ में चीन के साथ है. भारत नहीं चाहता है कि क्वाड पूरी तरह सैन्य गठबंधन की तरह दिखे, जिससे उसका गुटनिरपेक्ष स्वरूप बना रहे.

एससीओ में भी भारत को पाकिस्तान के साथ एक मंच पर रहना पड़ता है जबकि भारत, पाकिस्तान पर सीमा पार आतंकवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाता है.

भारत के सामने सबसे बड़ी दुविधा है कि उसे पश्चिमी देशों (क्वाड) के साथ सामरिक और आर्थिक सहयोग बढ़ाना है. साथ ही ग्लोबल साउथ (ब्रिक्स) और एशियाई शक्ति केंद्रों (एससीओ) में अपनी भूमिका बनाए रखनी है. लेकिन ये मंच एक-दूसरे के भूराजनीतिक प्रतिद्वंद्वी माने जाते हैं.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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