बिहार के लखीसराय ज़िले के निस्ता गांव के बाहर से 'वोटर अधिकार यात्रा' का काफ़िला गुज़र रहा है. बारिश से भीगी सड़क के दोनों तरफ जहां आमतौर पर मवेशी बंधे रहते हैं, उनको पीछे कर दिया गया है.
अब सूर्यगढ़ा से मुंगेर जाने वाली इस सड़क पर निस्ता गांव और आसपास के नौजवान, बुजुर्ग, औरतें, बच्चे सब जमा हो गए हैं.
महंगी गाड़ियां, मीडिया ट्रक, यात्रा को लाइव करने के लिए लगी चलती-फिरती क्रेन ने लोगों की उत्सुकता बढ़ा दी है. लेकिन लोग राहुल गांधी को भी देखना और उनसे हाथ मिलाना चाहते हैं.
ख़ासतौर पर नौजवान इसके लिए आगे बढ़ते हैं लेकिन राहुल की सुरक्षा में लगे जवानों की मुस्तैदी के चलते चंद लोग ही राहुल गांधी के पास कुछ पल के लिए पहुंच पाते हैं.
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इस काफ़िले के साथ डीजे की गाड़ी भी चल रही है जिसमें सिर्फ़ राहुल और कांग्रेस केंद्रित गाने ही चल रहे हैं. लोगों की उत्सुकता से उपजा शोर, तेज़ आवाज़ में चल रहे गाने 'तुमको तनिक नहीं है चिंता जनादेश की, अब तो आएगी सरकार कांग्रेस की..' में दब जा रहा है.
गांव के 'शहीद डोमन यादव द्वार' के पास खड़े रवि कुमार कैमरे पर बात करने से सकुचाते हैं. लेकिन वो कहते हैं, "तेजस्वी तो हमारे परमानेंट नेता हैं लेकिन राहुल अभी बिहार फेमस हैं. वो सबको 'वोट चोरी' होने की बात समझा रहे हैं."
यात्रा अब निस्ता से गुज़र चुकी है. जिन लोगों ने अपने स्मार्टफोन में राहुल गांधी को कैद कर लिया है, उनको लोगों ने चारों तरफ़ से घेर लिया है और बार-बार वीडियो दिखाने की फरमाइश हो रही है.
वोटर अधिकार यात्रा : 16 दिन में 25 ज़िलेमहागठबंधन की 'वोटर अधिकार यात्रा' अब रफ़्तार पकड़ रही है. राहुल जहां-जहां से गुज़र रहे हैं, उनका नाम घर-घर पहुंच रहा है.
कुछ उम्रदराज़ लोग अपनी स्मृतियों की कतार में पीछे खड़ी इंदिरा और राजीव गांधी से जोड़कर राहुल गांधी को देख रहे हैं.
सफाई कर्मचारी पुतुल देवी कहती हैं, "राजीव का बेटा आ रहा है इसलिए साफ-सफाई ज्यादा हो रही है. हम लोगों को स्थायी सरकारी नौकरी चाहिए, यही दे दें तो दुआ लगेगी."
बिहार में 'वोटर अधिकार यात्रा' 17 अगस्त से चल रही है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी की अगुआई में चल रही इस यात्रा की शुरुआत रोहतास ज़िले से हुई. 1 सितंबर को ये यात्रा पटना में ख़त्म होगी.
ये यात्रा 16 दिन में राज्य के 25 ज़िले में 1300 किलोमीटर की दूरी तय करेगी.
इस यात्रा में राहुल गांधी के साथ राजद नेता तेजस्वी यादव, भाकपा माले के दीपांकर भट्टाचार्य, वीआईपी के मुकेश सहनी और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम हैं.
बिहार में मतदाताओं के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) कार्यक्रम के तहत जारी हुई पहली ड्राफ्ट लिस्ट में 65 लाख मतदाताओं के नाम नहीं हैं.
राहुल गांधी महाराष्ट्र, हरियाणा, कर्नाटक में 'वोट चोरी' का आरोप लगा चुके हैं, जिसके बाद बिहार विधानसभा चुनावों से पहले ये यात्रा हो रही है.
राहुल अपनी इस यात्रा के दौरान होने वाले पब्लिक एड्रेस में बार-बार कहते हैं, "हम बिहार में वोट चोरी नहीं होने देंगे."
लखीसराय के झापानी गांव के चाय के एक ढाबे पर बैठे अजय कुमार शर्मा राहुल के सुर में सुर मिलाते हैं.
लगभग 35 साल के अजय कहते हैं, "राहुल गांधी जितना आंदोलन कर रहे हैं, वो सब सही कर रहे हैं. सब कुछ देश हित में है. वोटर अधिकार सबसे बड़ा मुद्दा है और इसको विपक्ष को मुद्दा बनाना चाहिए."
उनके पास बैठे जयप्रकाश भी कहते हैं, "शिक्षा, रोजगार तो बिहार का मुद्दा बनना ही चाहिए लेकिन अगर वोट का अधिकार नहीं होगा तो राजतंत्र आ जाएगा."
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'वोटर अधिकार यात्रा' में बीबीसी की टीम रोहतास, लखीसराय, मुंगेर और भागलपुर गई.
इन इलाकों में पूरी यात्रा के दौरान कांग्रेस के झंडे सबसे ज़्यादा दिखते हैं. राजद, वीआईपी और वामपंथी पार्टियों के झंडों की उपस्थिति इसकी तुलना में बेहद कम है.
मुंगेर में चल रहे राहुल गांधी के भाषण के दौरान राजद के एक स्थानीय नेता अपने लोगों को गुस्सा होते हुए आदेश दे रहे हैं, "झंडा ऊंचा करो रे अपना, दिखाई ही नहीं दे रहा."
शुरुआत से ही रैली में साथ-साथ चल रहे पत्रकारों का जत्था कहता है, "कांग्रेस शो स्टीलर है. पैसा उसी ने लगाया है तो दिख भी वही रहा है."
हालांकि राजद के लोग इससे इनकार करते हैं. पार्टी के प्रदेश महासचिव प्रमोद कुमार यादव कहते हैं, "हम लोग गठबंधन धर्म का पालन कर रहे हैं. झंडा कहीं उनका ज़्यादा है तो कहीं हमारा ज़्यादा है. हम लोग एक साथ चल रहे हैं और पूरी ताकत के साथ चल रहे हैं."
लेकिन क्या सिर्फ़ कांग्रेसी झंडे ज़्यादा दिखने की वजह पैसा है? कांग्रेस पहले भी कई कार्यक्रमों में पैसा खर्च करती रही है लेकिन साल 2025 की शुरुआत से ही बिहार कांग्रेस को सांगठनिक तौर पर सक्रिय और मजबूत करने की कोशिश हो रही है.
दरअसल कृष्णा अल्लावरू ने बिहार प्रभारी बनते ही 'हर घर झंडा' जैसे कार्यक्रम चलाए. इस कार्यक्रम के तहत कांग्रेसी नेताओं को अपने इलाके में घर-घर जाकर कांग्रेस का झंडा लगवाना था.
दूसरा ये कि टिकट की इच्छा रखने वाले नेताओं को मुख्यालय छोड़कर अपने विधानसभा क्षेत्र में जाकर काम करने को कहा गया.
इस यात्रा से पहले कांग्रेसी नेताओं को ये स्पष्ट संदेश दिया गया कि पार्टी का पोस्टर झंडा लगाना उनकी ज़िम्मेदारी नहीं है. उनकी ज़िम्मेदारी लोगों को 'मोबिलाइज़' करके यात्रा स्थल तक लाने की है.
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24 अगस्त को अररिया ज़िले में हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी ने यात्रा के दौरान आई भीड़ को 'आर्गेनिक' कहा. यानी ऐसी भीड़ जो खुद आ रही है.
बीबीसी ने यात्रा में आए लोगों को 'मिक्सड' पाया. यानी कार्यकर्ताओं, नेताओं की लाई भीड़ के साथ-साथ आम लोगों की भीड़.
यात्रा को देखने आई उर्मिला देवी कहती हैं, "राहुल गांधी आ रहे हैं जनता को देखने के लिए. गरीब आदमी का उपकार करने के लिए. 2500 रुपये देंगे लेडीज़ को. अगर वो नहीं देंगे तो हम लोग घर बैठेंगे ..और क्या कर सकते हैं?"
बता दें कांग्रेस ने चुनाव से पहले 'माई-बहिन मान योजना' लॉन्च की है जिसके तहत सरकार बनने पर ज़रूरतमंद महिलाओं को हर महीने 2500 रुपये देने का वादा किया गया है.
वहीं, उनसे थोड़ी दूर पर खड़ी कंचन देवी कहती हैं, "वो आए हैं वोट मांगने के लिए या क्या करने के लिए. भीड़ लगी थी, इसलिए हम भी सोचे देख लेते हैं थोड़ा."
मुंगेर के जमालपुर की कैली देवी भी अपनी समस्याएं लेकर आई हैं. उन्हें एक स्थानीय नेता इस यात्रा में लेकर आए हैं.
कैली देवी कहती हैं, "हम लोगों के पास पानी पीने का कोई साधन नहीं है. दूसरे के कुएं से पानी लाकर पीते हैं. पानी की समस्या का हल हो जाता तो ठीक रहता."
वहीं कांग्रेस का झंडा उठाए रिज़वाना गुस्से में कहती हैं, "वोट तो सब ले लेता है लेकिन हम लोगों को बेघर मरने के लिए छोड़ देता है. राहुल गांधी से उम्मीद है कि कुछ ठीक करेंगे."
इंदिरा-राजीव को याद करते लोगमुंगेर से ये यात्रा नाथनगर की तरफ़ बढ़ गई. नाथनगर में सड़क से लेकर घरों की छतों तक पर भारी भीड़ है.
यात्रा को देखने के लिए कई किलोमीटर लंबी लाइन है, जिसमें मुस्लिम समुदाय के ज़्यादातर लोग हैं.
भागलपुर के नाथनगर का इलाका बुनकरों का इलाक़ा है. नाथनगर विधानसभा क्षेत्र के विधायक राजद के अली अशरफ़ सिद्दकी हैं.
लेकिन यहां भी लोगों के पास कांग्रेस के ही झंडे हैं. राजद और वामपंथी पार्टियों के झंडे कुछ ही लोगों के हाथ में हैं.
उमस भरी गर्मी से परेशान पसीने में भीगी हुई बीबी कैसर कहती हैं, "इनकी दादी और पापा (इंदिरा- राजीव) ने भी ठीक से राज चलाया है. ये (राहुल) भी ठीक से राज चलाएंगे, जिसमें मुसलमान को डर नहीं होगा. रोजगार मिलेगा और वो सुकून से जी पाएगा. अभी तो सब कुछ लुट गया है."
बड़ी तादाद में जुटी मुस्लिम औरतों के बीच कुछ हिंदू औरतें भी हैं. इनमें से एक सविता देवी कहती हैं, " तेजस्वी और राहुल को देखना है. हम ऐसा नेता चाहते हैं जो देश को अच्छा बनाएं."
वहीं बुनकरी के पेशे से जुड़े बुजुर्ग मगफ़िरत कहते हैं, "हमें बूढ़ों की सरकार नहीं चाहिए. नौजवान की सरकार चाहिए. इतने सालों से हर बार वोट देते आए हैं और अबकी बार वोट से नाम काट दिया. जब वोट से नाम काट दिया तो हम लोगों के पास क्या बच गया और हम लोग कौन सी सरकार बनाएंगे?"
हालांकि कुछ लोग राहुल गांधी की 'सरपट' चलती यात्रा को लेकर भी गुस्से में हैं. बिरजू मंडल उनमें से एक हैं.
वो कहते हैं, " इंदिरा गांधी आती थीं तो बच्चा-बच्चा से हाथ मिलाते चलती थीं. और ये आए और पैसे वालों से हाथ मिलाकर चले गए. वोट कौन देता है? गरीब आदमी या अमीर आदमी. चार घंटे तक इनका इंतज़ार किया, बताइए क्या फ़ायदा इस इंतज़ार का जब हाथ भी नहीं मिलाया?"
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'वोटर अधिकार यात्रा' शुरू होने से पहले ये अहम सवाल था कि क्या बिहार में चल रहा एसआईआर आगामी विधानसभा चुनाव का प्रमुख मुद्दा बनेगा?
इस सवाल का कोई स्पष्ट जवाब इस यात्रा में नहीं मिलता. लेकिन वोटर अधिकार यात्रा में धीरे-धीरे राज्य के अन्य मुद्दे जुड़ते जा रहे हैं.
इस यात्रा में पेपर लीक, शिक्षा, रोजगार और पहले से ही स्थापित कारखानों से जुड़े आम लोग राहुल गांधी को अपना मांग पत्र सौंप रहे हैं.
खुद राहुल गांधी ने भागलपुर शहर के घंटा घर चौक पर जमा लोगों को संबोधित करते हुए 'अग्निवीर' का मुद्दा उठाया.
मुंगेर गन फैक्ट्री संघ के लोगों ने भी राहुल गांधी से मुलाक़ात करके ज्ञापन सौंपा है.
संघ के संयुक्त सचिव बीबीसी से कहते हैं, "नीतियों के चलते गन फैक्ट्री से जुड़े 1500 परिवारों की रोजी-रोटी पर आफ़त आ गई है. हम लोगों ने राहुल गांधी को मांग पत्र सौंपा है ताकि वो विपक्ष के नेता की हैसियत से हमारा मुद्दा संसद में उठाएं."
वहीं आशा कार्यकर्ताओं ने भी इस यात्रा में अपने बैनर के साथ प्रदर्शन करते हुए ज्ञापन सौंपा.
आशा कार्यकर्ता रेखा कुमारी कहती हैं, "हम लोगों का मानदेय कम से कम 26 हज़ार रुपये घोषित करें. सरकारी कर्मचारी घोषित करे सरकार. हम लोग दिन-रात काम करते हैं और कुछ नहीं मिलता."
वहीं संतोला देवी कहती हैं, " हमको यहां पर फैक्ट्री चाहिए ताकि महिला-पुरुष यहां पर काम कर सकें. बच्चों को पढ़ा-लिखा सकें और उन्हें रोजगार मिल सके."
ये यात्रा जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है, इस पर राजनीतिक हमले भी तेज़ हो रहे हैं.
लोजपा(आर) प्रमुख चिराग पासवान ने 'राजद को कांग्रेस का पिछलग्गू' बताया तो जेडीयू नेता अशोक चौधरी ने कहा कि 'लालू यादव के साथ रहकर बिहार में कांग्रेस का भविष्य नहीं बन सकता'.
साफ़ तौर पर ऐसे बयानों के ज़रिए एनडीए की कोशिश महागठबंधन के 'भीतरी दरार' को उभारने की कोशिश करना है.
बिहार में विपक्ष का नेता कौन?
अगर पूरी यात्रा देखें तो महागठबंधन में बेहतर तालमेल दिखता है. तेजस्वी यादव का बिहार में राहुल गांधी को एक बड़ा स्पेस देना, कन्हैया और पप्पू यादव के प्रति सहज होना महागठबंधन की एकता के लिहाज़ से अच्छा संकेत है.
समाजविज्ञानी और राजनीतिक विश्लेषक पुष्पेन्द्र बीबीसी से कहते हैं, "विपक्ष के लिए ये बहुत ज़रूरी यात्रा थी. क्योंकि इसके जरिए लोगों को समझाने के साथ-साथ उनके मन में ये सवाल रोपा जा रहा है कि कहीं उनका वोट चोरी तो नहीं हो रहा है?"
वो कहते हैं, "महागठबंधन के कार्यकर्ताओं के लिहाज़ से भी ये अच्छा है क्योंकि उन्हें ये विश्वास हो रहा है कि हम सत्ता में इसलिए नहीं आ पा रहे हैं क्योंकि हमें ग़लत तरीके से हराया जा रहा है. बाकी जहां तक कांग्रेस की इस यात्रा में लीड लेने की बात है तो राजद और व्यक्तिगत तौर पर तेजस्वी की सीएम बनने की आकांक्षा के लिए अच्छा है."
रविवार को अररिया में राहुल गांधी, बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, सीपीआई (एम-एल) महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य और वीआईपी पार्टी नेता मुकेश सहनी सहित गठबंधन के अन्य नेताओं ने एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस की.
इस प्रेस वार्ता में राहुल गांधी से एक संवाददाता ने सवाल किया, "तेजस्वी यादव ने चुनाव जीतने पर आपको देश का प्रधानमंत्री बनाने का ऐलान किया है तो बिहार में परिणाम आने के बाद कांग्रेस पार्टी तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने को लेकर अपना रुख़ साफ़ क्यों नहीं करती है?"
राहुल गांधी ने इसका स्पष्ट जवाब नहीं दिया और कहा, "बहुत अच्छे तरीक़े से एक पार्टनरशिप बनी है. सारी पार्टियां एक साथ जुड़कर काम कर रही हैं. कोई टेंशन नहीं है और परस्पर सम्मान है. एक दूसरे की मदद हो रही है तो मज़ा भी आ रहा है. वैचारिक और राजनीतिक रूप से हम जुड़े हुए हैं."
पुष्पेन्द्र कहते हैं, "राजद अपना बेस्ट परफॉर्म कर चुकी है, लेफ्ट पार्टियों का परफॉर्मेंस भी बीते विधानसभा चुनाव में अच्छा रहा है. इंप्रूवमेंट की सबसे ज्यादा गुंजाइश कांग्रेस में है तेजस्वी को सरकार बनाने के लिए दोगुनी सीट चाहिए. यही वजह है कि तेजस्वी ज्यादा पप्पू, कन्हैया या और भी लोगों के प्रति ज्यादा सहज हो रहे हैं."
सवाल ये भी है कि क्या इस यात्रा का लाभ महागठबंधन को मिलेगा?
इस सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार और लेखक अरुण श्रीवास्तव कहते हैं, "जब इस तरह की यात्रा चलती है तो यूफोरिया में पब्लिक पार्टिसिपेशन होता है. बड़ा सवाल यही है कि इस उत्साह को महागठबंधन कितना कंटीन्यू रख पाता है. दूसरा ये कि बिहार जैसे युवा प्रदेश में युवाओं का महागठबंधन से एसोसिएशन किस लेवल का बन पाता है."
"लेकिन इतना जरूर है कि ये यात्रा और इसकी ऊर्जा दूसरे प्रदेशों में भी महसूस हो रही है. अगर ऐसा नहीं होता तो अखिलेश यादव, स्टालिन या अन्य कई मुख्यमंत्री इस यात्रा में शामिल होने बिहार नहीं आ रहे होते."
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