जू येओंग बोंग मांस के लिए कुत्ते पालते थे. उनका यह कारोबार बढ़िया चल रहा था.
दक्षिण कोरिया में कुत्ते का मांस खाने का प्रचलन रहा है, और वहां किसान फार्म में कुत्तों को उसी तरह रखते हैं जैसे अन्य मांस के लिए पाले जाने वाले जानवरों को रखा जाता है.
लेकिन पिछले साल जनवरी में दक्षिण कोरिया ने डॉग मीट पर बैन लगा दिया. अब जू जैसे किसानों को समझ नहीं आ रहा है कि वे फ़ार्म पर रखे कुत्तों का क्या करें.
60 साल के जू ने बीबीसी को बताया कि वह पिछले साल से ही कुत्तों को बेचने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उन्हें कोई ख़रीदार नहीं मिल रहा है. जनवरी 2024 में दक्षिण कोरिया सरकार ने देशभर में कुत्ते के मांस की बिक्री पर रोक लगा दी थी.
सरकार ने आदेश दिया था कि देश में फरवरी 2027 तक मांस के लिए कुत्ते बेचने वाली दुकानें बंद कर दी जाएं. लेकिन लोगों का कहना है कि पीढ़ियों से चले आ रहे व्यवसाय को तुरंत बंद करना आसान नहीं है. इसके अलावा, सरकार ने मांस के लिए पाले गए पांच लाख से अधिक कुत्तों के लिए कोई ठोस योजना नहीं बनाई है.
बैन के समर्थक पशु अधिकार कार्यकर्ता भी इस बारे में चिंतित हैं. किसानों के पास लाखों कुत्ते हैं, लेकिन उन्हें ख़रीदने वाला कोई नहीं है.
जू येओंग कोरियन एसोसिएशन ऑफ एडिबल डॉग्स के अध्यक्ष भी हैं. वह कहते हैं, "लोग बहुत परेशान हैं. हम कर्ज़ में डूबते जा रहे हैं. कई लोग तो अब कोई नया काम भी नहीं ढूंढ पा रहे हैं. हालात बेहद परेशान करने वाले हैं."
ऐसी दिक्कतें क्यों आ रही हैं?एक अन्य किसान चैन वू (बदला हुआ नाम) के पास अब सिर्फ़ 18 महीने हैं, जिनमें उन्हें अपने फ़ार्म के 600 कुत्तों के लिए कोई न कोई व्यवस्था करनी होगी. अगर वह ऐसा नहीं कर पाते, तो उन्हें दो साल तक की जेल हो सकती है.
वह कहते हैं, "मैंने अपनी सारी जमा पूंजी इसी कारोबार में लगा दी थी, लेकिन अब तो लोग कुत्ते लेने को भी तैयार नहीं हैं."
वह उन पशु अधिकार कार्यकर्ताओं और सरकारी अधिकारियों की ओर इशारा करते हैं, जो इस बैन को लागू करवाने के लिए अभियान चला रहे थे.
लेकिन बैन के बाद बचे हुए लाखों कुत्तों को लेकर अब तक सरकार या कार्यकर्ताओं की ओर से कोई ठोस योजना सामने नहीं आई है.
चैन वू कहते हैं, "उन्होंने यह क़ानून बिना किसी स्पष्ट योजना के पास कर दिया है. और अब वे कह रहे हैं कि वे कुत्तों को अपने पास नहीं रख सकते."
ह्यूमन वर्ल्ड फॉर एनिमल्स कोरिया के कैंपेन मैनेजर ली संगक्यूंग भी इस चिंता को दोहराते हैं.
वह कहते हैं, "कुत्ते के मांस पर बैन तो लागू हो गया है, लेकिन सरकार और सामाजिक संगठन अब तक यह तय नहीं कर पाए हैं कि इन बचे हुए कुत्तों को कैसे बचाया जाए. चर्चा का एक अहम हिस्सा यही है कि जो पीछे छूट गए हैं, उनका क्या होगा."
दक्षिण कोरिया के कृषि, खाद्य और ग्रामीण मामलों के मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने बीबीसी को बताया कि अगर किसान अपने कुत्तों को छोड़ देते हैं, तो स्थानीय प्रशासन उन्हें अपने संरक्षण में लेकर शेल्टरों में रखेगा.
लेकिन जानवरों के लिए बनाए गए शेल्टर पहले से ही भरे हुए हैं. अब जिन कुत्तों को बचाने के लिए मांस पर बैन लगाया गया था, उन्हीं के लिए संकट खड़ा हो गया है.
चैन वू कहते हैं, "मुझे लगा था कि उन्होंने कुत्तों की ज़िम्मेदारी उठाने की कोई योजना भी बनाई होगी. लेकिन अब तो मैं यह सुन रहा हूं कि पशु अधिकार समूह खुद कह रहे हैं कि इन कुत्तों को मारना ही एकमात्र विकल्प है."
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कोरियन एनिमल वेलफ़ेयर एसोसिएशन की प्रमुख चो ही-क्यॉंग ने सितंबर 2024 में स्वीकार किया कि ज़्यादा से ज़्यादा जानवरों को बचाने की कोशिश की जा रही है, लेकिन इसके बावजूद कुछ कुत्ते पीछे छूट ही जाएंगे.
उन्होंने कहा, "अगर ये बचे हुए कुत्ते 'छूटे हुए और आवारा जानवर' बन जाते हैं, तो यह बेहद दुखद होगा. इसलिए उन्हें मारना पड़ सकता है."
हालांकि सरकार ने स्पष्ट किया है कि वह इस विकल्प पर काम नहीं कर रही है.
सियोल नेशनल यूनिवर्सिटी के वेटरनरी मेडिकल एजुकेशन कार्यालय की डायरेक्टर चुन म्युंग-सन का मानना है कि बचे हुए कुत्तों के लिए सरकार की योजना अभी अधूरी है.
वह कहती हैं, "हमें इस पर साफ़ और ठोस बातचीत करनी होगी कि इन कुत्तों को कैसे संभाला जाएगा. इन्हें परिवारों को सौंपने या मारने-दोनों विकल्पों पर खुलकर बात होनी चाहिए. लेकिन अगर हम इन्हें मारने का विकल्प चुनते हैं, तो यह बेहद दुखद होगा."
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कुछ लोगों ने इस संकट का समाधान देश के बाहर तलाशा. उन्होंने अपने कुत्तों को उन देशों में भेजा, जहां उन्हें अपनाने वाले लोग आसानी से मिल सकते हैं — जैसे कनाडा, ब्रिटेन और अमेरिका.
2023 में ह्यूमन वर्ल्ड फॉर एनिमल्स कोरिया की एक टीम ने आसन शहर के एक फ़ार्म से करीब 200 कुत्तों को बचाया. इन्हें कनाडा और अमेरिका भेज दिया गया.
इस फ़ार्म के मालिक, 74 वर्षीय यांग जोंग-टे ने बीबीसी को बताया, "मैंने देखा कि वे लोग इन जानवरों को कितने प्यार से संभाल रहे थे. हम कुत्तों के साथ इस तरह का व्यवहार नहीं करते. हमारे लिए तो वे बस जीविका का साधन थे. लेकिन इन लोगों ने उन्हें इज़्ज़त के साथ देखा, जिसने मेरे दिल को छू लिया."
हालांकि यांग ने यह भी कहा कि वह कुत्तों के मांस पर लगे प्रतिबंध से सहमत नहीं हैं.
उन्होंने कहा, "अगर कुत्ते का मांस इसलिए बैन किया गया क्योंकि वे जानवर हैं, तो फिर गाय, सुअर और मुर्गी को खाना कैसे जायज़ है? ये भी तो जानवर हैं."
लेकिन चून का मानना है कि कुत्ते का मांस और अन्य मांस एक जैसा नहीं है.
उनका कहना है कि कुत्तों के मांस में साफ-सफाई, बीमारी और खाद्य सुरक्षा के लिहाज़ से ज़्यादा खतरा होता है.
ह्यूमन वर्ल्ड फॉर एनिमल्स के मुताबिक, कुत्ते का मांस अब भी चीन, इंडोनेशिया, वियतनाम, लाओस, म्यांमार, भारत के उत्तर-पूर्वी हिस्सों और अफ़्रीका के कुछ देशों में खाया जाता है.
चून कहती हैं, "जैसे-जैसे समाज और संस्कृति आगे बढ़े हैं, दक्षिण कोरिया ने तय कर लिया है कि अब हम कुत्तों का मांस नहीं खाएंगे."
डॉग मीट कारोबार से जुड़े हर व्यक्ति ने बीबीसी को यही बताया कि अब उनके सामने आजीविका का संकट खड़ा हो गया है. कुछ लोगों को आशंका है कि यह कारोबार अब छिपकर चलाया जाएगा.
चैन-वू याद करते हैं कि जब उन्होंने 23 साल की उम्र में इस काम की शुरुआत की थी, तब कुत्ते के मांस को लेकर सोच इतनी नकारात्मक नहीं थी.
उनका कहना है कि बैन की घोषणा उम्मीद से पहले आ गई.
चैन-वू कहते हैं, "अब जीवन में अनिश्चितता है. हम बस यही उम्मीद कर रहे हैं कि कुत्तों से छुटकारा पाने की जो मियाद है उसे बढ़ा दिया जाए."
बाकी कई लोग भी यही उम्मीद लगाए बैठे हैं.
लेकिन जू को डर है कि जिन लोगों ने अपनी पूरी ज़िंदगी इस कारोबार में लगा दी, वो शायद इस बदलाव को झेल नहीं पाएंगे.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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