प्रशांत किशोर के पिता डॉ. श्रीकांत पांडे नहीं चाहते थे कि उनका बेटा राजनीति में जाए.
जब 2014 में प्रशांत किशोर नरेंद्र मोदी के चुनावी कैंपेन से जुड़े तब भी उनके पिता असहमत थे.
डॉ. श्रीकांत पांडे के भाई बलिराम पांडे ने बीबीसी न्यूज़ हिन्दी से कहा कि जब प्रशांत दक्षिण अफ़्रीका में संयुक्त राष्ट्र में काम कर रहे थे, तब उनके पिता श्रीकांत पांडे को लगा था कि उन्होंने सही रास्ता पकड़ लिया है.
76 साल के बलिराम पांडे कहते हैं, ''भैया राजनीति को लेकर बहुत ख़ुश नहीं रहते थे. वह वैचारिक रूप से गांधी और नेहरू को आदर्श मानते थे. 2014 में जब प्रशांत बीजेपी के कैंपेन के साथ जुड़े तो हमारा परिवार ख़ुश नहीं था. मतलब हम राजनीति में जाने के ही ख़िलाफ़ थे. भैया जब तक ज़िंदा रहे, तब तक उनका यही रुख़ था.''
अब जब प्रशांत किशोर पूरी तरह से चुनावी राजनीति में आ गए हैं, तब बलिराम पांडे क्या सोचते हैं? बलिराम पांडे कहते हैं, ''अब तो मैं प्रशांत का प्रशंसक हूँ. उन्हें ख़ूब सुनता हूँ और मुझे अच्छा लगता है.''
प्रशांत किशोर और उनके पिता श्रीकांत पांडे में क्या कोई समानता है?
बलिराम पांडे कहते हैं, ''दोनों बिल्कुल अलग हैं. समानता खोजना ठीक नहीं है. मैं ख़ुद उनसे तुलना करता हूँ, तो मुझे लगता है कि वह सुपरमैन थे. भैया बहुत मेधावी थे. पीएमसीएच से उन्होंने मेडिकल की पढ़ाई की थी और कोलकाता से इंटरनल मेडिसिन की.''
गाँव के ही रासबिहारी लाल कहते हैं कि जब डॉ. साहब कोनार आते थे, तो गाँव के लोगों की भीड़ लग जाती थी.
वह कहते हैं, ''प्रशांत की माँ इंदिरा पांडे कहती रहती थीं, ब्रश तो कर लीजिए लेकिन जब तक लोगों को देख नहीं लेते थे, तब तक उठते नहीं थे. उनमें बिल्कुल अहंकार नहीं था. कई लोग प्रशांत में अहंकार की शिकायत करते हैं लेकिन मुझे लगता है कि उन पर बोझ ज़्यादा है, इसलिए झुंझला जाते हैं.''
जनसुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर को भले देश भर में लोग जानते हैं लेकिन अपने पैतृक गाँव कोनार में पिता श्रीकांत पांडे की वजह से वह जाने जाते हैं.
कोनार बिहार के सासाराम शहर से क़रीब 12 किलोमीटर दूर है.
कोनार के नौजवानों को छोड़ बाक़ी लोगों से प्रशांत किशोर के बारे में पूछिए तो उनमें से कई लोग कहेंगे- हम नहीं जानते हैं.
लेकिन जैसे ही आप पूछते हैं कि 'डॉक्टर साहब का बेटा' तो लोग उनके बारे में बताने लगते हैं. कोनार में प्रशांत की तुलना में उनके पिता श्रीकांत पांडे कहीं ज़्यादा लोकप्रिय हैं.
कोनार करगहर विधानसभा क्षेत्र और सासाराम लोकसभा क्षेत्र में है.
इस गाँव में कुशवाहा, ब्राह्मण, दलित और मुसलमान हैं. लेकिन हर वर्ग में डॉ. श्रीकांत पांडे का नाम लोगों की ज़ुबान पर है.
2019 में श्रीकांत पांडे का निधन हो गया था. बलिराम पांडे कहते हैं, ''भैया 10 सालों से स्ट्रोक से जूझ रहे थे और 85 साल की उम्र में उनका निधन दिल्ली में हुआ था.''
प्रशांत की माँ इंदिरा पांडे हाउस वाइफ थीं और उनका निधन 2017 में हुआ था.
कोनार के ही 50 साल के मुरादन अंसारी से प्रशांत किशोर के बारे में पूछा, तो वह उनके पिता डॉ. श्रीकांत पांडे की तारीफ़ करने लगे.
मुरादन अंसारी एक साँस में कह जाते हैं, ''बक्सर में डॉ. साहब का क्लिनिक था. हमारा पूरा परिवार वहीं इलाज के लिए जाता था. कोनार के लोगों से उन्होंने कभी फ़ीस नहीं ली. यहाँ तक कि दवा भी मुफ़्त में दिला देते थे. कई बार तो आने-जाने का ख़र्च भी दे देते थे. हम डॉ. साहब को कभी भूल नहीं सकते. अब डॉ. साहब के बेटे अच्छा काम करना चाह रहे हैं और हम सब उनके साथ हैं. डॉ. साहब का 2019 में निधन हुआ था. जिसके बाद आयोजित भोज में हम सबको बुलाया गया था.''
कोनार गाँव में प्रवेश करते ही सबसे पहले प्रशांत किशोर के दो मंज़िले मकान पर नज़र जाती है.
इस घर को देखकर अहसास हो जाता है कि किसी संपन्न परिवार का घर रहा है. अब इस घर में प्रशांत के परिवार का कोई भी नहीं रहता है.
प्रशांत किशोर भी आख़िरी बार इस गाँव में अपने पिता के निधन पर आए थे.
प्रशांत के घर की देखरेख गाँव के ही 70 साल के केदारनाथ पांडे करते हैं.
केदारनाथ पांडे कहते हैं, ''मैं 1980 से इस घर की देखभाल कर रहा हूँ. 1995 तक इनका पूरा परिवार गाँव छोड़ चुका था. डॉ श्रीकांत पांडे पाँच भाई थे और अब केवल एक भाई बलिराम पांडे ज़िंदा हैं और वह दिल्ली में रहते हैं. बलिराम पांडे पाँच भाइयों में सबसे छोटे हैं.''
केदारनाथ पांडे कहते हैं, ''प्रशांत भी मुझसे फ़ोन करके हालचाल ले लेते हैं. पैसे की ज़रूरत होती है तो बलिराम भी भेज देते हैं और प्रशांत से भी मदद मिल जाती है. बलिराम साल में एक बार आते हैं. हालाँकि इस घर में नहीं रहते हैं. सासाराम होटल में रहते हैं.''
कोनार गाँव में लगभग चार हज़ार मतदाता हैं, जिनमें ब्राह्मण, कुशवाहा, मुस्लिम और दलित शामिल हैं.
कोनार के मंसूर अंसारी कहते हैं, ''चार हज़ार में से अगर तीन हज़ार लोग भी वोट डालेंगे तो कम से कम यहाँ से दो हज़ार वोट जनसुराज को मिलेगा. यहाँ कुशवाहा अच्छी संख्या में हैं और करगहर से जेडीयू के उम्मीदवार वशिष्ठ सिंह कुशवाहा ही हैं. बीएसपी से उदय सिंह भी कुशवाहा ही हैं.''
जब मंसूर अंसारी ये बातें कह रहे थे तो बगल के घर की सोनम परवीन अकेली खड़ी सुन रही थीं.
22 साल की सोनम परवीन एक निजी स्कूल में पढ़ाती हैं और उन्हें पाँच हज़ार रुपए सैलरी मिलती है. सोनम सरकारी टीचर बनने की तैयारी कर रही हैं.
सोनम परवीन प्रशांत किशोर को कैसे देखती हैं? इस सवाल के जवाब में वह कहती हैं, ''उनके बारे में सुना तो है लेकिन बहुत नहीं जानती हूँ. मुझे लगता है कि नीतीश कुमार महिलाओं के लिए अच्छा कर रहे हैं. नीतीश कुमार मुझे अच्छे लगते हैं. वह फिर से मुख्यमंत्री बनेंगे तो अच्छा ही रहेगा. महिलाओं को उन्होंने पैसे दिए हैं और यह अच्छी बात है.''
प्रशांत किशोर के घर के दूसरी तरफ़ दलितों के घर हैं.
60 साल के बनारसी दास को नेताओं से बहुत उम्मीद नहीं है. वह प्रशांत किशोर को लेकर भी बहुत उत्साहित नहीं हैं, लेकिन उनके पिता की तारीफ़ ज़रूर करते हैं.
बनारसी दास कहते हैं, ''बहुत नेताओं को आज़मा लिया. अब मन में उम्मीद नहीं जगती है.''
करगहर से जनसुराज ने इलाक़े के चर्चित भोजपुरी गायक रीतेश पांडे के उतारा है.
दूसरी तरफ़ महागठबंधन से कांग्रेस के उम्मीदवार संतोष मिश्रा हैं, जो पिछले चुनाव में इस सीट से जीते थे. वहीं जेडीयू से वशिष्ठ सिंह हैं और बीएसपी से उदय सिंह.
रीतेश पांडे को लगता है कि इस बार जाति की दीवार टूटेगी और उनकी जीत होगी.
लेकिन यह भी मानते हैं कि इस सीट से सब कुछ इतना आसान नहीं है.
स्थानीय पत्रकार उपेंद्र मिश्र को लगता है कि ब्राह्मणों के वोट संतोष मिश्र और रीतेश पांडे के बीच बँट जाएँगे.
जबकि नीतीश कुमार के कारण कुशवाहा और कुर्मियों के वोट वशिष्ठ सिंह के साथ जाएँगे और इससे रीतेश पांडे की राह बहुत मुश्किल हो जाएगी.
प्रशांत किशोर अपनी हर रैली में जाति से ऊपर उठकर वोट देने की बात कर रहे हैं, लेकिन जनसुराज के उम्मीदवारों को देखिए तो हर सीट पर जातीय समीकरण का ध्यान बारीकी से रखा गया है.
उपेंद्र मिश्र कहते हैं, ''जनसुराज ने हर सीट पर जातीय समीकरण का ख़्याल रखा है लेकिन पार्टी का मुखिया कौन है, इससे चीज़ें ज़्यादा तय होती हैं.''
कोनार के बगल के गाँव बढ़की महुली के रामअसरे पाल प्रशांत किशोर के बारे में नहीं जानते हैं.
उनसे पूछा कि जनसुराज पार्टी को आप जानते हैं, तो उनका जवाब था, ''देखिए हम लोग गरेड़ी जाति के हैं और शुरू से ही लालू के साथ रहे हैं.''
प्रशांत किशोर के कोनार स्थित घर में मंगलवार को चुनाव आयोग से नोटिस आया था.
प्रशांत का नाम वोटर लिस्ट में कोलकाता और कोनार दोनों जगह रजिस्टर्ड है.
केदारनाथ पांडे ने नोटिस ले लिया है. पार्टी का कहना है कि पश्चिम बंगाल से नाम हटाने का आवेदन दिया जा चुका है.
लंबे समय बाद बिहार की राजनीति में शाहाबाद इलाक़ा चर्चा में है और यह चर्चा प्रशांत किशोर के कारण है.
पिछले 35 सालों से बिहार की राजनीति पर लालू परिवार और नीतीश कुमार का शासन है और इसी इलाक़े के प्रशांत किशोर इसे चुनौती दे रहे हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.
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