ज़ोहरान ममदानी की ये जीत कई मायनों में ऐतिहासिक है. वह 1892 के बाद से न्यूयॉर्क के सबसे युवा मेयर हैं. साथ ही शहर के पहले मुसलमान और अफ़्रीका में जन्मे मेयर भी हैं.
उन्होंने पिछले साल चुनावी मैदान में क़दम रखा था. उस समय उनके पास न तो कोई बड़ी पहचान थी, न ही बहुत सारे पैसे और न किसी पार्टी का समर्थन.
यही वजह है कि उनकी एंड्रयू कुओमो और रिपब्लिकन उम्मीदवार कर्टिस स्लिवा पर मिली जीत असाधारण हो जाती है.
डेमोक्रेटिक पार्टी के वामपंथी धड़े को सालों से ऐसे ही नेता की तलाश थी.
ममदानी युवा और करिश्माई हैं. साथ ही वह अपनी पीढ़ी की तरह ही सोशल मीडिया पर भी सहज दिखते हैं. उनकी पहचान पार्टी के समर्थकों की विविधता को भी दिखाती है.
उन्होंने सियासी लड़ाइयों से कभी परहेज़ नहीं किया और बेहिचक फ़्री चाइल्डकेयर, पब्लिक ट्रांसपोर्ट के विस्तार और फ़्री मार्केट सिस्टम में सरकारी दख़ल जैसे वामपंथी मुद्दों का समर्थन किया है.
आर्थिक मुद्दों पर ज़ोर
Stephanie Keith/Getty Images ममदानी आर्थिक मुद्दों पर मुखर रहे हैं ममदानी ने उन अहम आर्थिक मुद्दों पर तेज़ी से ध्यान खींचा जो हाल के वर्षों में डेमोक्रेटिक पार्टी से दूर होते गए कामकाजी वर्ग के मतदाताओं की प्राथमिकता रहे हैं. फिर भी, वह वामपंथ के सांस्कृतिक मूल्यों से कभी दूर नहीं हुए.
लेकिन आलोचकों का कहना रहा है कि ऐसा कोई उम्मीदवार अमेरिका के बड़े हिस्सों में नहीं चुना जाता.
रिपब्लिकन नेताओं ने खुले तौर पर ख़ुद को डेमोक्रेटिक सोशलिस्ट कहने वाले ममदानी को डेमोक्रेटिक पार्टी के धुर वामपंथी चेहरे के तौर पर पेश कर ख़ुशी जताई. इसके बावजूद मंगलवार को न्यूयॉर्क सिटी में वह विजेता बने.
न्यूयॉर्क के पूर्व गवर्नर और एक गवर्नर के बेटे कुओमो को हराकर ममदानी ने उस जमी-जमाई डेमोक्रैटिक व्यवस्था को परास्त किया है, जिसे कई वामपंथी अपनी पार्टी और देश की हक़ीक़त से पूरी तरह कटा हुआ मानते आए हैं.
इसी वजह से ममदानी के चुनावी अभियान ने मीडिया का भी बहुत ध्यान खींचा. शायद उतना, जितना किसी म्यूनिसिपल चुनाव को, भले ही वह अमेरिका के सबसे बड़े शहर का ही क्यों न हो, नहीं मिलना चाहिए था.
इसका ये भी मतलब है कि अब एक मेयर के तौर पर उनकी सफलताएं और असफलताएं भी उतनी ही बारीक़ी से परखी जाएंगी.
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Getty Images ज़ोहरान ममदानी आम लोगों के जीवन में सुधार के वादे के साथ सत्ता में आए हैं बारह साल पहले, डेमोक्रेट बिल डी ब्लासियो ने न्यूयॉर्क सिटी की आर्थिक और सामाजिक ग़ैर-बराबरियों को दूर करने के एजेंडे पर मेयर चुनाव जीता था. ममदानी की तरह, अमेरिका के वामपंथियों को उनसे भी उम्मीद थी कि उनका कार्यकाल देश में लिबरल गवर्नेंस का उदाहरण बनेगा.
हालांकि, आठ साल के बाद डी ब्लासियो ने अपना कार्यकाल भारी निराशा के बीच ख़त्म किया. वह उस समय तक काफ़ी अलोकप्रिय हो चुके थे और उनकी उपलब्धियों का रिकॉर्ड भी मिला-जुला रहा. क्योंकि उन्हें नई नीतियां लागू करने में मेयर पद की शक्तियों की सीमाओं से जूझना पड़ा.
अब ममदानी को भी इन्हीं सीमाओं और इन्हीं उम्मीदों का सामना करना होगा.
न्यूयॉर्क की गवर्नर और साथी डेमोक्रेट राजनेता कैथी होकुल पहले ही कह चुकी हैं कि वो ममदानी के एजेंडे को पूरा करने के लिए टैक्स बढ़ाने के ख़िलाफ़ हैं. और अगर वो पर्याप्त फंड जुटा भी लें तब भी ममदानी इनको अपनी मर्ज़ी से ख़र्च नहीं कर पाएंगे.
ममदानी ने अपने चुनावी अभियान के दौरान मैनहेटन और न्यूयॉर्क सिटी में रहने वाले बड़े कार्पोरेट और कारोबारियों की कड़ी आलोचना की थी.
अब प्रभावी रूप से प्रशासन चलाने के लिए उन्हें इन्हीं के हितों का ध्यान रखते हुए संभवतः किसी तरह की शांति स्थापित करनी होगी. ममदानी इस प्रक्रिया को हाल के दिनों में शुरू भी कर चुके हैं.
उन्होंने ग़ज़ा में इसराइल के तौर-तरीक़ों की आलोचना की है और न्यूयॉर्क सिटी में क़दम रखने पर प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू को एक युद्ध अपराधी के रूप में गिरफ़्तार करने का इरादा ज़ाहिर किया है.
इस कार्यकाल में कभी ना कभी उनके इस प्रण की परीक्षा ज़रूर होगी.
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हालांकि, ये सब भविष्य की समस्याएं हैं. फिलहाल ममदानी को जनता के समक्ष ख़ुद को स्थापित करने का काम शुरू करना है. इससे पहले कि उनके विरोधी उनकी छवि गढ़ दें.
भले ही उनके चुनावी अभियान को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्ख़ियां मिली हों लेकिन अमेरिका के अधिकतर लोगों के लिए वो अब भी एक कोरा काग़ज़ ही हैं.
सीबीएस के एक हालिया पोल के मुताबिक़ अमेरिका के 46 प्रतिशत लोग बिना किसी ख़ास रूची के न्यूयॉर्क मेयर चुनाव को देख रहे थे. ऐसे में, यह ममदानी और अमेरिकी वामपंथियों के लिए एक मौका भी है और चुनौती भी.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से लेकर निचले स्तर तक के कंज़र्वेटिव नेता ममदानी की छवि एक 'समाजवादी ख़तरे' के रूप में गढ़ने की कोशिश करेंगे.
वो ममदानी को एक ऐसे नेता के रूप में पेश करेंगे जिसकी नीतियां और प्राथमिकताएं अमेरिका के सबसे बड़े शहर को बर्बादी की तरफ़ ले जाएंगी.
और अगर इन्हें देश ने पूरी तरह स्वीकार कर लिया तो ये एक बड़ा ख़तरा होगा.
अगर ममदानी थोड़े भी लड़खड़ाए या फिर आर्थिक सूचकांकों और अपराध के आंकड़ों में कुछ नकारात्मक हुआ तो विरोधी इसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश करेंगे.
राष्ट्रपति ट्रंप का न्यूयॉर्क से व्यक्तिगत रिश्ता है. वो ममदानी के साथ राजनीतिक खींचतान के लिए ज़रूर तैयार होंगे और नए मेयर के कामकाज को मुश्किल करने के तरीक़ों की उनके पास कोई कमी भी नहीं होगी.
ममदानी पर डेमोक्रेटिक पार्टी के नेताओं का भरोसा जीतने का भी दवाब होगा. इन्हीं में से एक हैं न्यूयॉर्क के सीनेटर चक शुमाकर, जिन्होंने कभी भी ममदानी के चुनाव अभियान का समर्थन नहीं किया.
आगामी जनवरी में कार्यकाल शुरू करने के बाद उनके पास अपनी राजनीतिक प्रतिष्ठा और विरासत को शुरू से गढ़ने का मौका होगा. अगर राष्ट्रपति ट्रंप ममदानी से भिड़ेंगे तो इससे ममदानी को काम करने के लिए बड़ा प्लेटफार्म और मौका ही मिलेगा.
वो अपनी क्षमताओं और राजनीतिक योग्यता के दम पर यहां तक पहुंचे हैं, और यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है. लेकिन अगले कुछ सालों में जो चुनौतियां उनके सामने होंगी उनकी तुलना में शायद ये उपलब्धियां कुछ भी ना हों.
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Reuters ज़ोहरान ममदानी अपनी पत्नी रामा दुवाजी के साथ न्यूयॉर्क के लोगों को लगता है कि दुनिया उनके शहर के इर्द-गिर्द घूमती है. लेकिन मंगलवार को सिर्फ़ न्यूयॉर्क के मेयर पद का ही चुनाव नहीं हुआ है.
वास्तव में, मंगलवार को अमेरिका की राजनीति में जो हुआ है, न्यूयॉर्क का चुनाव शायद उसका सबसे सटीक उदाहरण भी नहीं है.
न्यूजर्सी और वर्जीनीया में गवर्नर पद के चुनाव हुए हैं. पिछले साल हुए राष्ट्रपति चुनावों में इन दोनों ही प्रांतों में कमला हैरिस ने ट्रंप पर मामूली बढ़त हासिल की थी. और इन दोनों ही प्रांतों में डेमोक्रेट उम्मीदवारों ने आसानी से जीत दर्ज की है.
इन दोनों में से न्यूजर्सी का मुक़ाबला कुछ ज़्यादा नज़दीकी रहा. हालांकि नतीज़ों से पता चलता है कि पिछले साल के राष्ट्रपति चुनाव में ट्रंप ने जिस तरह से राज्य के कामकाजी और अल्पसंख्यक वर्ग में अपनी पकड़ बनाई थी वो अब कमज़ोर हो गई है.
ममदानी के उलट, डेमोक्रेट माइकी शेरिल और अबिगेल स्पेनबर्गर ने मध्यमार्गी चुनावी अभियान चलाया जिसे संस्थागत समर्थन हासिल था. उन्होंने सीमित नीतिगत प्रस्ताव रखे.
हालांकि तीनों ही नेताओं ने रोज़मर्रा के जीवनयापन पर होने वाले ख़र्च को कम करने और क़ीमतें कम करने को अपना मुख्य मुद्दा बनाया. एग्ज़िट पोल से पता चला कि मतदाता एक बार फिर अर्थव्यवस्था से जुड़े मुद्दे को सबसे ज़्यादा महत्व दे रहे हैं.
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मंगलवार को डेमेक्रेटिक पार्टी के वामपंथी और मध्यमार्गी (लेफ़्ट और सेंटर), दोनों ही धड़ों के नेताओं ने जीत हासिल की है. ऐसे में पार्टी के लिए ये तय करना मुश्किल हो जाएगा कि भविष्य के चुनावों में सफलता के लिए किस तरह की नीतियों को प्राथमिकता दी जाए.
हालांकि, पिछले सप्ताह, ममदानी ने ज़ोर देकर कहा था कि पार्टी में सभी तरह की विचारधाराओं और नज़रिये के लिए जगह है.
उन्होंने कहा था, “मुझे लगता है कि यह एक ऐसी पार्टी होनी चाहिए जिसमें आम अमेरिकी नागरिक ख़ुद को देखें ना कि जो सिर्फ़ राजनीति में सक्रिय चुनिंदा लोगों को प्रतिबिंबित करे.”
“मुझे लगता है कि एक चीज़ जो हम सबको जोड़ती है, जिनकी सेवा करने के लिए हम लड़ रहे हैं, वो हैं सामान्य कामकाजी लोग.”
इसकी अगले साल परीक्षा होगी जब देशभर के डेमोक्रेट नेता कांग्रेस के मध्यावधि चुनावों के लिए अपने उम्मीदवार तय करेंगे. ऐसे में तनाव ज़रूर पैदा होगा और पारंपरिक मतभेद खुलकर सामने आ सकते हैं.
फ़िलहाल, एक रात के लिए, डेमोक्रेट पार्टी फिर से एकजुट और ख़ुशहाल है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.
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