उत्तरकाशी, 09 अगस्त (हि.स.)। आरके फिल्म्स प्रोडक्शन हाउस की वर्ष 1985 में बनी चर्चित फिल्म ‘राम तेरी गंगा मैली’ में उत्तराखंड के हर्षिल-धराली घाटी के दृश्यों ने तब फिल्म को नई पहचान दिलाई थी। तब इस फिल्म के दृश्यों को खूब सराहा गया था। एक बडी हिट फिल्म हुई थी। लेकिन बीते पांचअगस्त को आयी
प्राकृतिक आपदा ने धराली को बर्बादी के कगार पर पहुंचा दिया है।
आज से ठीक 40 साल पहले बॉलीवुड के एक्टर-डायरेक्टर राज कपूर ने इस हर्षिल-धराली वादी की खूबसूरती को बड़े पर्दे पर उतारा था। जिससे हर्षिल- धराली देश-दुनिया में खास लोकप्रिय हुआ, यही वजह रही की चार दशक से इस वैली के प्रचार-प्रसार में इस फिल्म की अति महत्वपूर्ण भूमिका रही, जिससे इस घाटी में पर्यटन व्यवसाय को नये पंख लगे थे।
हर्षिल-धराली घाटी में बीते पांच अगस्त दिन के 1:25 मिनट पर बादल फटने से खीर गंगा में आई विनाशकारी बाढ़ से यहां चारों ओर मलबा और मातम पसर गया है। सब में खामोशी है और लोग गम डूब हुए हैं। एक समय इस इलाके में कैमरे और कलाकारों की रौनक हुआ करती थी। हिंदी सिनेमा में अब तक कई सदाबहार फिल्में आ चुकी है। कुछ फिल्में तो ऐसी रही हैं, जिन्हें दर्शक हमेशा देखना पसंद करते हैं।
हुस्न पहाड़ों का, ओ साहेबा….क्या कहना के बारहों महीने यहां मौसम जाड़ों का…’
ये प्रसिद्ध गाना है 1985 में आई फिल्म ‘राम तेरी गंगा मैली’ का यह गाना इस खूबसूरत घाटी में गूंजा था , आज यहां मातम पसरा हुआ है। गीतकार ने इस गाने में जिन पहाड़ों के हुस्न को बयां किया है, उसका नाम है-धराली-हर्षिल घाटी। ये वही हर्षिल घाटी है, जिसकी खूबसूरती ने आज से 4 दशक पहले राज कपूर का ध्यान अपनी तरफ खींचा था।
राज कपूर के निर्देशन में बनी इस फिल्म का बजट उस समय 1.44 करोड़ रुपये था। इसने बॉक्स ऑफिस पर 19 करोड़ रुपये की शानदार कमाई की थी। यह फिल्म अपनी कहानी, गानों और सामाजिक संदेश के लिए आज भी याद की जाती है।
राम तेरी गंगा मैली में मंदाकिनी और राजीव कपूर मुख्य भूमिकाओं में थे। फिल्म की कहानी गंगा नदी की पवित्रता और एक महिला की जीवन यात्रा के इर्द-गिर्द घूमती है। इसके गाने, जैसे सुन साहइबा सुन और एक राधा एक मीरा, आज भी लोगों की जुबान पर हैं। इस फिल्म ने न केवल कमाई के मामले में सफलता हासिल की, बल्कि सामाजिक मुद्दों को भी उजागर किया। रजा मुराद ने इस मौके पर फिल्म से जुड़ी यादों को ताजा करते हुए कहा कि यह उनके करियर की सबसे यादगार फिल्मों में से एक है। 40 साल बाद भी यह फिल्म दर्शकों के दिलों में जिंदा है।
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हिन्दुस्थान समाचार / चिरंजीव सेमवाल
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