किसी भी कंपनी के लिए इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग यानी IPO एक बड़ा पड़ाव होता है, क्योंकि इसके जरिए वह एक सार्वजनिक रूप से लिस्टेड कंपनी बन जाती है. IPO के बाद निवेशकों के पास शेयर खरीदने का एक बेहतरीन मौका होता है, खासकर सेकेंडरी मार्केट में, जहां जल्दी निवेश करने की होड़ सी लग जाती है. लिस्टिंग के दिन IPO वाला स्टॉक शेयर बाजार में ट्रेडिंग शुरू करता है, लेकिन इसका तरीका नॉर्मल ट्रेडिंग दिनों से थोड़ा अलग होता है. आइए जानते हैं कि लिस्टिंग के दिन कैसे टाइमलाइन काम करती है-
1. प्री-ओपन ट्रेडिंग सेशन (सुबह 9:00 बजे से 9:45 बजे तक)
इस दौरान निवेशक IPO शेयर खरीदने या बेचने के ऑर्डर लगा सकते हैं, ऑर्डर में बदलाव कर सकते हैं या कैंसिल भी कर सकते हैं. इस सेशन में एक अनुमानित कीमत (इंडिकेटिव इक्विलिब्रियम प्राइस) तय की जाती है, जो शेयर के खुलने वाली कीमत का संकेत देती है.
2. ऑर्डर मैचिंग और एक्सीक्यूशन (सुबह 9:45 बजे से 9:55 बजे तक)
प्री-ओपन सेशन के बाद स्टॉक एक्सचेंज 10 मिनट के लिए रुक जाता है. इस दौरान वह सभी ऑर्डर मिलाकर शेयर की शुरुआती कीमत फाइनल करता है. जो ऑर्डर इस कीमत पर मेल खाते हैं, वे पूरे हो जाते हैं. जो ऑर्डर मैच नहीं होते, वे अगले सेशन में चले जाते हैं.
3. बफर पीरियड (सुबह 9:55 बजे से 10:00 बजे तक)
यह एक छोटा ब्रेक होता है, ताकि ट्रेडिंग सेशन के मुख्य भाग में आराम से और बिना रुकावट के एंट्री किया जा सके.
4. रेगुलर ट्रेडिंग सेशन (सुबह 10:00 बजे से आगे)
अब IPO शेयर पूरी तरह से ट्रेड करने के लिए खुल जाते हैं और निवेशक इन्हें बाजार में किसी भी अन्य शेयर की तरह खरीद-बिक्री कर सकते हैं.
IPO लिस्टिंग टाइम क्यों जरूरी है निवेशकों के लिए?
जब कोई कंपनी अपने शेयर को बाजार में पहली बार लाती है, यानी IPO लिस्ट होती है, तो इसका समय निवेशकों के लिए बहुत मायने रखता है.
मार्केट रेगुलेटर सिक्योरिटी एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) ने IPO लिस्टिंग की समयसीमा को T+6 दिनों से घटाकर T+3 दिन कर दिया है, जो 1 दिसंबर 2023 से प्रभावी है. इससे पहले IPO की लिस्टिंग में ज्यादा समय लगता था और पैसा ज्यादा समय के लिए ब्लॉक रहता था. अब समय कम होने से कंपनियां ज्यादा तेजी से पूंजी जुटा सकती हैं और निवेशकों को भी पहले से ज्यादा जल्दी शेयरों की लिक्विडिटी और ट्रेडिंग के मौके मिलते हैं.
1. प्री-ओपन ट्रेडिंग सेशन (सुबह 9:00 बजे से 9:45 बजे तक)
इस दौरान निवेशक IPO शेयर खरीदने या बेचने के ऑर्डर लगा सकते हैं, ऑर्डर में बदलाव कर सकते हैं या कैंसिल भी कर सकते हैं. इस सेशन में एक अनुमानित कीमत (इंडिकेटिव इक्विलिब्रियम प्राइस) तय की जाती है, जो शेयर के खुलने वाली कीमत का संकेत देती है.
2. ऑर्डर मैचिंग और एक्सीक्यूशन (सुबह 9:45 बजे से 9:55 बजे तक)
प्री-ओपन सेशन के बाद स्टॉक एक्सचेंज 10 मिनट के लिए रुक जाता है. इस दौरान वह सभी ऑर्डर मिलाकर शेयर की शुरुआती कीमत फाइनल करता है. जो ऑर्डर इस कीमत पर मेल खाते हैं, वे पूरे हो जाते हैं. जो ऑर्डर मैच नहीं होते, वे अगले सेशन में चले जाते हैं.
3. बफर पीरियड (सुबह 9:55 बजे से 10:00 बजे तक)
यह एक छोटा ब्रेक होता है, ताकि ट्रेडिंग सेशन के मुख्य भाग में आराम से और बिना रुकावट के एंट्री किया जा सके.
4. रेगुलर ट्रेडिंग सेशन (सुबह 10:00 बजे से आगे)
अब IPO शेयर पूरी तरह से ट्रेड करने के लिए खुल जाते हैं और निवेशक इन्हें बाजार में किसी भी अन्य शेयर की तरह खरीद-बिक्री कर सकते हैं.
IPO लिस्टिंग टाइम क्यों जरूरी है निवेशकों के लिए?
जब कोई कंपनी अपने शेयर को बाजार में पहली बार लाती है, यानी IPO लिस्ट होती है, तो इसका समय निवेशकों के लिए बहुत मायने रखता है.
- IPO लिस्टिंग का सही समय इस लिए जरूरी है ताकि निवेशक जल्दी से अपने शेयर खरीदी-बिक्री कर सकें और मार्केट की शुरुआत में ही सही दाम पता चल सकें.
- IPO के पहले कुछ घंटे शेयर बहुत तेजी से ऊपर-नीचे हो सकते हैं, जिससे निवेशकों को जल्दी मुनाफा कमाने या नुकसान होने का मौका मिलता है. इस समय जो शेयर मिले हैं, उन्हें बेचकर निवेशक पैसे निकाल सकते हैं.
मार्केट रेगुलेटर सिक्योरिटी एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) ने IPO लिस्टिंग की समयसीमा को T+6 दिनों से घटाकर T+3 दिन कर दिया है, जो 1 दिसंबर 2023 से प्रभावी है. इससे पहले IPO की लिस्टिंग में ज्यादा समय लगता था और पैसा ज्यादा समय के लिए ब्लॉक रहता था. अब समय कम होने से कंपनियां ज्यादा तेजी से पूंजी जुटा सकती हैं और निवेशकों को भी पहले से ज्यादा जल्दी शेयरों की लिक्विडिटी और ट्रेडिंग के मौके मिलते हैं.
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