शेयर बाजार में एक्टिव रूप से ट्रेडिंग करने से आपको अच्छा मुनाफा हो सकता है, लेकिन इसके साथ ही कुछ रिस्क भी होते हैं. चाहे आप डे ट्रेडिंग कर रहे हों, स्विंग ट्रेडिंग कर रहे हों या कोई और शॉर्ट-टर्म ट्रेडिंग कर रहे हों, रिस्क को संभालने के सही तरीके जानना जरूरी है. सही रिस्क मैनेजमेंट के बिना आप अपनी मेहनत की कमाई खो सकते हैं. आइए हम सबसे पहले रिस्क मैनेजमेंट के बारे में जानते हैं और उसके बाद कुछ आसान तरीके के बारे में जानते हैं, जिनके जरिए आप रिस्क को मैनेज कर सकते हैं और ट्रेडिंग में सफलता पा सकते हैं. रिस्क मैनेजमेंट क्या है?रिस्क मैनेजमेंट का मतलब है कि आप अपने नुकसान को कम करने के तरीके अपनाते हैं और मुनाफा बढ़ाने के मौके तलाशते हैं. इसका मतलब है कि आप पहले से स्ट्रेटजी बनाकर अपने रिस्क को कंट्रोल करते हैं. अगर आप रिस्क को सही तरीके से नहीं मैनेज करते हैं, तो मार्केट की अस्थिरता के कारण आप बड़ी रकम खो सकते हैं. आइए अब रिस्क को मैनेज करने के 5 तरीकों के बारे में जानते हैं. 1. ऑर्डर में स्टॉप-लॉस का इस्तेमाल करेंऑर्डर में स्टॉप-लॉस लगाना रिस्क को मैनेज करने का एक बहुत ही आसान और प्रभावी तरीका है, जो आपको बड़े नुकसान से बचाता है. जब आप किसी शेयर को खरीदते हैं, तो आप एक स्टॉप-लॉस प्राइस सेट कर सकते हैं. उदाहरण के लिए, अगर आपने ₹1,000 में कोई शेयर खरीदा है और आपने स्टॉप-लॉस ₹950 पर सेट किया है, तो अगर शेयर ₹950 तक गिरता है, तो वह खुद-ब-खुद बिक जाएगा. इससे आपका नुकसान ₹50 तक ही सीमित रहेगा. 2. पोजीशन साइजिंग पोजीशन साइजिंग यह तय करता है कि आप एक ट्रेड पर कितनी पूंजी निवेश कर रहे हैं. अगर आप बहुत बड़ी पोजीशन लेते हैं, तो आपका जोखिम ज्यादा होगा. वहीं, अगर आप छोटी पोजीशन लेते हैं तो नुकसान कम होगा. एक सामान्य नियम यह है कि किसी भी ट्रेड पर अपनी कुल पूंजी का 1-2% से ज्यादा का जोखिम न लें. उदाहरण के लिए, अगर आपकी ट्रेडिंग पूंजी ₹5,00,000 है, तो आपको एक ट्रेड पर ₹5,000 से ₹10,000 से ज्यादा का जोखिम नहीं लेना चाहिए. 3. रिस्क-रिवॉर्ड रेशियो यह रेशियो आपके संभावित नुकसान और संभावित मुनाफे के बीच का अनुपात है. उदाहरण के लिए, अगर आप ₹200 का जोखिम लेने के लिए तैयार हैं, तो आपके मुनाफा का लक्ष्य ₹600 होना चाहिए. इसका मतलब है कि आपको रिस्क और रिवॉर्ड का संतुलन सही रखना चाहिए. बहुत ज्यादा रिस्क लेना आपके लिए नुकसानदायक हो सकता है. 4. डायवर्सिफिकेशनडायवर्सिफिकेशन का मतलब है अपने निवेश को कई अलग-अलग स्टॉक्स और सेक्टर्स में बांटना. इससे अगर एक स्टॉक या सेक्टर में नुकसान होता है, तो बाकी के निवेश इससे बच सकते हैं. 5. हेजिंगहेजिंग एक तरीका है जिसमें आप अपनी किसी पोजीशन के नुकसान को दूसरे ट्रेड से कवर करते हैं. उदाहरण के लिए, अगर आपने किसी शेयर को खरीदा है और आपको लगता है कि उसका भाव गिर सकता है, तो आप उस स्टॉक के लिए एक पुट ऑप्शन खरीद सकते हैं. अगर स्टॉक गिरता है, तो पुट ऑप्शन आपके कुछ नुकसान को कवर कर सकता है. शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव होते रहते हैं, लेकिन अगर आप सही तरीके से जोखिम को संभालते हैं तो आप नुकसान से बच सकते हैं और मुनाफा भी बढ़ा सकते हैं. स्टॉप-लॉस सेट करना, पोजीशन साइजिंग को समझना, रिस्क-रिवॉर्ड रेशियो का पालन करना, डायवर्सिफिकेशन और हेजिंग जैसी टेक्नोलॉजी आपके ट्रेडिंग सुरक्षित बना सकती हैं.
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