अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से भारत पर लगाए गए टैरिफ का सबसे बड़ा असर छोटे और मझोले उद्यमों (SMEs) पर पड़ सकता है. ऐसे में इन्हें राहत देने के लिए बैंक अब प्रोसेसिंग फीस, फॉरेक्स हेजिंग चार्ज और कलेक्शन फीस जैसे एडमिनिस्ट्रेटिव चार्ज माफ करने पर विचार कर रहे हैं. यह फैसला सरकार की ओर से मिले संकेत के बाद लिया जा रहा है.
बैंकों का कहना है कि ब्याज दरों में छूट देना या लोन चुकाने की समय-सीमा बढ़ाना हर कस्टमर की स्थिति देखकर तय किया जाएगा. हालांकि, वे यह भी कोशिश करेंगे कि अगर कोई कारोबारी समय पर किस्त नहीं चुका पाता है, तो उस पर जुर्माने का ब्याज न लगाया जाए, ताकि उसका खाता खराब लोन (बेड लोन) में न बदल जाए.
सरकार की घोषणा से पहले बैंकों के पास राहत देने की सीमित गुंजाइश
'जब तक सरकार की ओर से कोई ब्याज सहायता योजना (सबवेंशन स्कीम) या राहत पैकेज की घोषणा नहीं होती, तब तक बैंकों के पास ब्याज दरों में बड़ी कटौती करने या कोई व्यापक सहायता देने की बहुत सीमित गुंजाइश है.' यह बात एक सरकारी बैंक के कार्यकारी निदेशक ने कही, जो सरकार के साथ राहत उपायों को लेकर हुई चर्चा का हिस्सा थे. हालांकि ये राहतें तुरंत लागू की जा सकती हैं, लेकिन सरकार एक विस्तृत योजना पर काम कर रही है ताकि अमेरिका की ओर से भारत से होने वाले आयात पर 50% टैरिफ लगाए जाने के फैसले से प्रभावित निर्यातकों को मदद दी जा सके.
एक मास्टर प्लान पर काम कर रही सरकार
सरकार एक मास्टर प्लान पर काम कर रही है, जिसमें प्रभावित सेक्टर्स के लिए प्रस्तावित एक्सपोर्ट प्रमोशन मिशन के तहत टेलर-मेड (यानी खास जरूरत के हिसाब से बनाई गई) स्कीम्स देने की तैयारी है. इस योजना में उन प्रोडक्ट को अन्य देशों में भेजने (डायवर्जन) पर भी विचार किया जा रहा है, जिनकी मौजूदा समय में अमेरिका में एक्सपोर्ट में बाधा आ रही है. इसके अलावा, जिन प्रोडक्ट की एक्सपोर्ट डिमांड कम है, उन्हें घरेलू मांग को पूरा करने के लिए इस्तेमाल में लाया जा सकता है.
उद्योग की मांग: पेनल ब्याज और जोखिम आधारित गारंटी
उद्योग की ओर से मांग की गई है कि अगर कोई लोन समय पर नहीं चुकाया जाता है, तो पेनल ब्याज (दंडात्मक ब्याज) केवल तब लगाया जाए जब वह खाता NPA (नॉन-परफॉर्मिंग एसेट) घोषित हो जाए. इसके अलावा, फॉरेक्स लोन के लिए जोखिम के अनुपात में गारंटी या गिरवी (कोलेटरल) की भी मांग की जा रही है. एक उद्योग अधिकारी ने बताया, 'कोलेटरल सबसे बड़ी रुकावट बनते हैं. खासकर जब टेक्सटाइल कंपनियां लोन लेने जाती हैं, तो बैंक टेक्सटाइल मशीनरी को कोलेटरल के तौर पर स्वीकार नहीं करते. इससे फाइनेंस तक पहुंच मुश्किल हो जाती है.'
क्रेडिट एक्सेस आसान करने की कोशिश
बैंकों और सरकार के बीच बातचीत जारी है, जिसमें सेक्टर-विशेष क्रेडिट लाइन्स शुरू करने की योजना पर चर्चा हो रही है. इनमें आसान शर्तों पर कोलेटरल की सुविधा और लो-कॉस्ट एक्सपोर्ट फैक्टोरिंग के रास्ते तलाशे जा रहे हैं, ताकि एक्सपोर्टर्स की लिक्विडिटी प्रेशर को कम किया जा सके.
फैक्टोरिंग क्या होता है?
फैक्टोरिंग एक ऐसी सुविधा है, जिसमें अगर किसी एक्सपोर्टर को विदेशी ग्राहक से पेमेंट मिलने में वक्त लग रहा हो, तो बैंक या कोई फाइनेंस कंपनी भविष्य में मिलने वाला पैसा एडवांस में दे देती है, लेकिन कुछ कटौती के साथ. इसके बाद उस ग्राहक से पैसा वसूलने की जिम्मेदारी भी वही कंपनी उठाती है. इससे एक्सपोर्टर को तुरंत कैश मिल जाता है और उसका काम रुके बिना चलता रहता है. अभी भारत के कई निर्यातक यह सुविधा सिंगापुर की कंपनियों से लेते हैं, क्योंकि वहां की फैक्टोरिंग सर्विस भारत की तुलना में 10-11% तक सस्ती पड़ती हैं. इसी वजह से सरकार चाहती है कि भारत में भी ऐसी सस्ती और आसान फैक्टोरिंग सुविधा उपलब्ध कराई जाए.
बैंकों का कहना है कि ब्याज दरों में छूट देना या लोन चुकाने की समय-सीमा बढ़ाना हर कस्टमर की स्थिति देखकर तय किया जाएगा. हालांकि, वे यह भी कोशिश करेंगे कि अगर कोई कारोबारी समय पर किस्त नहीं चुका पाता है, तो उस पर जुर्माने का ब्याज न लगाया जाए, ताकि उसका खाता खराब लोन (बेड लोन) में न बदल जाए.
सरकार की घोषणा से पहले बैंकों के पास राहत देने की सीमित गुंजाइश
'जब तक सरकार की ओर से कोई ब्याज सहायता योजना (सबवेंशन स्कीम) या राहत पैकेज की घोषणा नहीं होती, तब तक बैंकों के पास ब्याज दरों में बड़ी कटौती करने या कोई व्यापक सहायता देने की बहुत सीमित गुंजाइश है.' यह बात एक सरकारी बैंक के कार्यकारी निदेशक ने कही, जो सरकार के साथ राहत उपायों को लेकर हुई चर्चा का हिस्सा थे. हालांकि ये राहतें तुरंत लागू की जा सकती हैं, लेकिन सरकार एक विस्तृत योजना पर काम कर रही है ताकि अमेरिका की ओर से भारत से होने वाले आयात पर 50% टैरिफ लगाए जाने के फैसले से प्रभावित निर्यातकों को मदद दी जा सके.
एक मास्टर प्लान पर काम कर रही सरकार
सरकार एक मास्टर प्लान पर काम कर रही है, जिसमें प्रभावित सेक्टर्स के लिए प्रस्तावित एक्सपोर्ट प्रमोशन मिशन के तहत टेलर-मेड (यानी खास जरूरत के हिसाब से बनाई गई) स्कीम्स देने की तैयारी है. इस योजना में उन प्रोडक्ट को अन्य देशों में भेजने (डायवर्जन) पर भी विचार किया जा रहा है, जिनकी मौजूदा समय में अमेरिका में एक्सपोर्ट में बाधा आ रही है. इसके अलावा, जिन प्रोडक्ट की एक्सपोर्ट डिमांड कम है, उन्हें घरेलू मांग को पूरा करने के लिए इस्तेमाल में लाया जा सकता है.
उद्योग की मांग: पेनल ब्याज और जोखिम आधारित गारंटी
उद्योग की ओर से मांग की गई है कि अगर कोई लोन समय पर नहीं चुकाया जाता है, तो पेनल ब्याज (दंडात्मक ब्याज) केवल तब लगाया जाए जब वह खाता NPA (नॉन-परफॉर्मिंग एसेट) घोषित हो जाए. इसके अलावा, फॉरेक्स लोन के लिए जोखिम के अनुपात में गारंटी या गिरवी (कोलेटरल) की भी मांग की जा रही है. एक उद्योग अधिकारी ने बताया, 'कोलेटरल सबसे बड़ी रुकावट बनते हैं. खासकर जब टेक्सटाइल कंपनियां लोन लेने जाती हैं, तो बैंक टेक्सटाइल मशीनरी को कोलेटरल के तौर पर स्वीकार नहीं करते. इससे फाइनेंस तक पहुंच मुश्किल हो जाती है.'
क्रेडिट एक्सेस आसान करने की कोशिश
बैंकों और सरकार के बीच बातचीत जारी है, जिसमें सेक्टर-विशेष क्रेडिट लाइन्स शुरू करने की योजना पर चर्चा हो रही है. इनमें आसान शर्तों पर कोलेटरल की सुविधा और लो-कॉस्ट एक्सपोर्ट फैक्टोरिंग के रास्ते तलाशे जा रहे हैं, ताकि एक्सपोर्टर्स की लिक्विडिटी प्रेशर को कम किया जा सके.
फैक्टोरिंग क्या होता है?
फैक्टोरिंग एक ऐसी सुविधा है, जिसमें अगर किसी एक्सपोर्टर को विदेशी ग्राहक से पेमेंट मिलने में वक्त लग रहा हो, तो बैंक या कोई फाइनेंस कंपनी भविष्य में मिलने वाला पैसा एडवांस में दे देती है, लेकिन कुछ कटौती के साथ. इसके बाद उस ग्राहक से पैसा वसूलने की जिम्मेदारी भी वही कंपनी उठाती है. इससे एक्सपोर्टर को तुरंत कैश मिल जाता है और उसका काम रुके बिना चलता रहता है. अभी भारत के कई निर्यातक यह सुविधा सिंगापुर की कंपनियों से लेते हैं, क्योंकि वहां की फैक्टोरिंग सर्विस भारत की तुलना में 10-11% तक सस्ती पड़ती हैं. इसी वजह से सरकार चाहती है कि भारत में भी ऐसी सस्ती और आसान फैक्टोरिंग सुविधा उपलब्ध कराई जाए.
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