अलसी, जिसे एक प्रकार का तिलहन माना जाता है, इसके बीज सुनहरे रंग के और चिकने होते हैं। इसका तेल फर्नीचर के वार्निश में भी उपयोग किया जाता है।
आयुर्वेद के अनुसार, अलसी वात, पित्त और कफ को संतुलित करती है। यह मूत्रल, रक्तशोधक, और सूजन कम करने में सहायक है। इसके सेवन से यकृत और आंतों की सूजन कम होती है।
हाल के वर्षों में रिफाइंड तेलों और ट्रांसफेट्स के बढ़ते उपयोग के कारण डायबिटीज के मामलों में वृद्धि हुई है। शोधकर्ताओं का मानना है कि ओमेगा-3 की कमी भी इस समस्या का एक बड़ा कारण है।
अलसी में 23% ओमेगा-3 फैटी एसिड, 20% प्रोटीन और 27% फाइबर होता है। इसे सुपरफूड माना जाता है, लेकिन भारत में इसकी स्थिति अलग है।
ओमेगा-3 शरीर की कोशिकाओं के लिए आवश्यक है। इसकी कमी से कई स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
आयुर्वेद के अनुसार, पेट की सफाई हर रोग की जड़ है, और अलसी इस कार्य में अत्यधिक प्रभावी है।
अलसी न केवल शर्करा को नियंत्रित करती है, बल्कि मधुमेह के दुष्प्रभावों से भी सुरक्षा प्रदान करती है।
यह हृदय स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करती है और रक्त को पतला रखती है।
अलसी का सेवन मानसिक स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाता है और सकारात्मकता को बढ़ाता है।
यह त्वचा, बाल और नाखूनों के स्वास्थ्य में सुधार करती है।
अलसी में लिगनेन होता है, जो कैंसर से लड़ने में सहायक है।
यह जोड़ों के दर्द और अन्य समस्याओं के लिए भी लाभकारी है।
अलसी बांझपन और पुरुषों में यौन स्वास्थ्य में सुधार करती है।
डायबिटीज के रोगियों के लिए अलसी का सेवन अत्यधिक फायदेमंद है।
अलसी का सेवन करने के कई तरीके हैं, जैसे इसे आटे में मिलाकर रोटी बनाना या इसे भूनकर खाना।
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