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शराब पीने की परंपरा: गिलास टकराने का रहस्य

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गिलास टकराने की परंपरा का महत्व

शराब का कोई भी दौर बिना गिलासों को टकराने और 'चीयर्स' कहे बिना शुरू नहीं होता। कई बार दोस्तों ने आपको बिना गिलास टकराए पीने के लिए टोका होगा, और आप संकोच में सिर हिलाते हुए अपने गिलास को बाकी के गिलासों से मिलाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस परंपरा का क्या कारण है?


इस रिवाज के पीछे एक दिलचस्प मान्यता है। प्राचीन यूरोप में, शराबखानों और दावतों के दौरान बीयर के गिलासों का बजना आम था। गिलासों को टकराने का मतलब था कि दूसरे के गिलास में थोड़ी शराब गिराकर यह साबित करना कि आपने उसमें जहर नहीं मिलाया है।


जब योद्धा और रईस शाम को मौज-मस्ती करते थे, तो नशे में झगड़े होना आम बात थी। गिलास टकराने का अर्थ था कि वे एक-दूसरे को नुकसान नहीं पहुंचाने का इरादा रखते हैं। हालांकि, इस प्रथा का कोई ठोस ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है।


एक और वैज्ञानिक कारण भी है। गिलासों की खनक सुनने की इंद्रियों को सक्रिय करती है, जिससे शराब पीने का अनुभव और भी मजेदार हो जाता है। खासकर वाइन का आनंद तब अधिक होता है जब सभी इंद्रियां सक्रिय होती हैं। इसलिए लोग 'चीयर्स' कहते हैं, जिससे ऊर्जा का संचार होता है और सुनने की इंद्रियां जागृत होती हैं।


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