New Delhi, 18 जुलाई . ‘लिखे जो खत तुझे, वो तेरी याद में, हजारों रंग के नजारे बन गए…’ जैसे गीत गढ़ने वाले गोपालदास ‘नीरज’ खुद को बदकिस्मत मानते थे. ये सुन उनके प्रशंसक काफी हैरान होते हैं. आखिर सहज और सुंदर शब्दों में पिरोए गीत जो कइयों को प्रेरित करते हैं, उसे लिखने वाला शख्स भला कैसे खुद को बदकिस्मती का टैग दे सकता है!
नीरज की कविताएं सादगी और गहरे भावों का संगम थीं. उनकी पंक्तियां जैसे ‘स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से, लूट गए सिंगार सभी बाग के बबूल से’ और ‘कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे’ आज भी लोगों को भाव-विभोर कर देती हैं. उनकी रचनाओं में प्रेम, प्रकृति, दुख और समय की मार को सरल शब्दों में पिरोया गया, जो आम और खास, दोनों को छू लेता था. उनकी कविता ‘अब तो मजहब कोई ऐसा भी चलाया जाए, जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए’ सामाजिक एकता का संदेश देती है.
एक टेलीविजन साक्षात्कार में नीरज ने खुद को ‘बदकिस्मत कवि’ कहा था. इसका कारण था कि वह फिल्मी गीतों के बजाय कविता पर ज्यादा ध्यान देना चाहते थे, लेकिन समय और परिस्थितियों ने उन्हें इससे दूर कर दिया. कहते हैं कि जयकिशन और एस.डी. बर्मन जैसे संगीतकारों के निधन के बाद वह अवसाद में चले गए थे, जिसके कारण उनका फिल्मी गीत लेखन का करियर गहरे रूप से प्रभावित हुआ. नीरज का मानना था कि उनकी कविताओं में वह गहराई थी, जो फिल्मी गीतों में पूरी तरह व्यक्त नहीं हो पाई. फिर भी, उन्होंने कभी हार नहीं मानी और कवि सम्मेलनों में अपनी रचनाओं से लोगों को मंत्रमुग्ध किया.
गोपालदास नीरज का जन्म 4 जनवरी 1925 को उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के पुरावली गांव में एक साधारण कायस्थ परिवार में हुआ था. वे छह साल के थे जब उनके पिता का निधन हो गया. इसके बाद उनकी जिंदगी मुश्किलों से भरी रही. एटा में अपने फूफा के पास पलते हुए उन्होंने पढ़ाई पूरी की और साल 1942 में हाई स्कूल प्रथम श्रेणी में पास किया. कविता लिखने का शौक उन्हें स्कूल के दिनों से ही था और हरिवंश राय बच्चन जैसे कवियों से प्रेरित होकर उन्होंने आधुनिक हिंदी कविता की संभावनाओं को तलाशा. नीरज ने न केवल कविता कोश को समृद्ध किया, बल्कि कवि सम्मेलनों में अपनी भावपूर्ण प्रस्तुतियों से लाखों दिलों को जीता.
फिल्मी दुनिया में नीरज ने भी अपनी अमिट छाप छोड़ी. ‘प्रेम पुजारी’ के ‘रंगीला रे, तेरे रंग में यूं रंगा है मेरा मन’ और ‘फूलों के रंग से, दिल की कलम से’ जैसे गीतों ने उन्हें घर-घर में मशहूर किया. ‘मेरा नाम जोकर’ का ‘ए भाई, जरा देख के चलो’ और ‘कन्यादान’ का ‘लिखे जो खत तुझे’ जैसे गीत आज भी सदाबहार हैं. नीरज ने शंकर-जयकिशन और एस.डी. बर्मन जैसे संगीतकारों के साथ मिलकर कई यादगार गीत दिए. लेकिन, इन संगीतकारों के निधन ने उन्हें गहरा सदमा दिया.
नीरज को उनके योगदान के लिए साल 1991 में पद्म श्री और 2007 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया. अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज में हिंदी साहित्य के प्रोफेसर और मंगलायतन विश्वविद्यालय के चांसलर के रूप में भी उन्होंने शिक्षा जगत में योगदान दिया.
19 जुलाई 2018 को दिल्ली के एम्स में उनका निधन हो गया, लेकिन उनकी कविताएं और गीत आज भी जिंदा हैं. नीरज का मानना था कि कविता आत्मा की सुंदरता का शब्द रूप है, और यही उनकी रचनाओं की ताकत थी.
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एमटी/केआर
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