New Delhi, 6 अक्टूबर . भारतीय सेना जम्मू कश्मीर में क्रॉस बॉर्डर टेररिज्म पर नजर रखने से लेकर बॉर्डर पार दुश्मन की गतिविधियों के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डेटा अलर्ट लर्निंग जैसे आधुनिक विज्ञान और नई तकनीक को अपना रही है.
भारतीय सेना के महानिदेशक (इलेक्ट्रॉनिक्स और मैकेनिकल इंजीनियर्स) लेफ्टिनेंट जनरल राजीव कुमार साहनी ने एक विशेष बातचीत में बताया कि सेना ने डिजिटल परिवर्तन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और स्वदेशी तकनीक के समावेश से अपने संचालन, निगरानी और निर्णय लेने की क्षमताओं को एक नए स्तर पर पहुंचा दिया है. उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान की गई प्रमुख तकनीकी उपलब्धियों और आधुनिक प्रणालियों के प्रभावी उपयोग पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारतीय सेना अब पूरी तरह से ‘डेटा-सेंट्रिक’ और ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस-सक्षम’ बल के रूप में उभर रही है.
इसके साथ ही उन्होंने बताया कि ऑपरेशन सिंदूर में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की महत्वपूर्ण भागीदारी रही. इतना ही नहीं, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और नई टेक्नोलॉजी के माध्यम से आतंकवाद पर रोकथाम लगाने का भी प्रयास किया जा रहा है. इसके साथ ही भारतीय सीमाओं को सुरक्षित रखने के लिए भी आधुनिक तकनीकी का इस्तेमाल हो रहा है. भविष्य के युद्धों में शत्रु पर विजय पाने के लिए भी भारतीय सेना आधुनिक सोच और तकनीक को अपनी युद्ध नीति में समाहित कर रही है.
लेफ्टिनेंट जनरल राजीव कुमार साहनी ने सेना की तकनीकी उपलब्धियां और पहलों का उल्लेख करते हुए बताया कि स्वदेशी इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस कोलेशन एप्लिकेशन, भारतीय एजेंसियों द्वारा उपयोग की जा रही. इस स्वदेशी एप्लिकेशन को ऑपरेशन सिंदूर के दौरान बेहद कम समय में संशोधित किया गया. इसने विभिन्न हितधारकों की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करते हुए शत्रु के सेंसर लोकेशन का सटीक पता लगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. सटीक निशाना साधनें में भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस खासा महत्वपूर्ण साबित हुआ है. सीमावर्ती क्षेत्रों में सामान्य निगरानी एवं लक्ष्य अधिग्रहण त्रिनेत्र प्रणाली, जो प्रोजेक्ट संजय से एकीकृत है, ने सामरिक और परिचालन दोनों स्तरों पर कॉमन ऑपरेशनल एंड इंटेलिजेंस पिक्चर तैयार करने में मदद की है. इससे संसाधनों के समन्वय, निर्णय प्रक्रिया और कमांडरों की स्थितिजन्य जागरूकता में उल्लेखनीय सुधार हुआ.
उन्होंने बताया कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित फॉरकॉस्ट खतरा मॉडल फ्रेमवर्क के उपयोग ने सेनाओं को सटीक और समयबद्ध तैनाती में सक्षम बनाया है. मल्टी-सेंसर और मल्टी-सोर्स डेटा फ्यूजन लगभग रियल टाइम में संभव हुआ. सेना के प्रयास डिजिटल इंडिया मिशन, नेशनल क्वांटम मिशन और इंडिया आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मिशन– जैसी राष्ट्रीय पहलों के अनुरूप हैं, जिससे रक्षा क्षेत्र में तकनीकी आत्मनिर्भरता को बल मिल रहा है. उन्होंने बताया कि आधुनिक सेनाओं का बदलता रूप महत्वपूर्ण हो गया है. दुनिया भर की सेनाएं आज तेजी से बदल रही हैं. वे ऑटोमेशन, डिजिटलीकरण और नई तकनीकों जैसे आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और बिग डेटा एनालिटिक्स को अपना रही हैं. इन तकनीकों से युद्धक क्षमता बढ़ती है, स्थिति की बेहतर समझ बनती है और सेनाएं तकनीकी रूप से आगे रहती है. फिर वह चाहे युद्ध हो, खुफिया जानकारी एकत्र करने का काम हो या लॉजिस्टिक्स या ट्रेनिंग का क्षेत्र हो.
उन्होंने कहा कि यह भारतीय सेना का परिवर्तन का दशक है. भारतीय सेना ने समझा है कि बड़ा बदलाव समय लेता है. इसलिए उसने परिवर्तन का दशक शुरू किया है. साल 2024–2025 को तकनीक अपनाने का वर्ष घोषित किया गया है, ताकि तकनीक सिर्फ मुख्यालयों तक ही नहीं, बल्कि जमीनी स्तर के जवानों तक पहुंचे. उन्होंने बताया कि सेना में ऑटोमेशन के चलते यूजर्स की संख्या में 1200 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. डेटा स्टोरेज क्षमता में 620 की बढ़ोतरी हुई है. इससे सेना की डिजिटल व्यवस्था और मजबूत हुई है, जिससे हर स्तर पर बेहतर निर्णय लिए जा रहे हैं.
उन्होंने बताया कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस युद्ध के तरीके बदल रहा है. यह अधिक तेज, सटीक और लचीला बना रहा है. भारतीय सेना ने पहले ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को अपने कामकाज में शामिल कर लिया है, और ऑपरेशन सिंदूर के दौरान इसकी प्रभावशीलता साफ दिखी. उन्होंने बताया कि देश में विकसित सॉफ्टवेयर हैं जो रियल टाइम में खतरों की पहचान और प्राथमिकता तय करते हैं. लेफ्टिनेंट जनरल साहनी ने कहा कि भारतीय सेना अब केवल तकनीक की उपभोक्ता नहीं, बल्कि तकनीकी नवाचार की अग्रणी बन चुकी है. उन्होंने कहा कि हमारी कोशिश है कि भविष्य के युद्धक्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता, डेटा और स्वदेशी तकनीक हमारी सबसे बड़ी ताकत बनें.
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जीसीबी/डीएससी
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