New Delhi, 29 सितंबर . त्रिवृत, जिसे आयुर्वेद में ऑपरकुलिना टर्पेथम लिन के नाम से जाना जाता है, एक प्रभावशाली शुद्धिकारक औषधि है, जो शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने की क्षमता रखती है. संस्कृत में इसे निशोत्र, त्रिवृत और आम भाषा में निशोत या तरपथा भी कहा जाता है.
आयुर्वेद में त्रिवृत को विशेष रूप से द्रव्यगुण विज्ञान में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है, क्योंकि यह त्रिदोषों वायु, पित्त और कफ के संतुलन के साथ-साथ शरीर की प्राकृतिक सफाई में भी सहायक होती है. इसका मुख्य कार्य शरीर की शुद्धि करना है, जो इसे प्राकृतिक रेचक औषधियों की श्रेणी में सबसे आगे रखता है.
त्रिवृत विशेष रूप से कब्ज को दूर करने के लिए प्रसिद्ध है. यह आंतों की सफाई करता है और पाचन तंत्र को स्वस्थ रखता है. इसके नियमित सेवन से जठराग्नि संतुलित होती है, जिससे भूख बढ़ती है और भोजन का समुचित पाचन होता है. इसके साथ ही त्रिवृत रक्त को शुद्ध करने में भी मदद करता है, जिससे फोड़े-फुंसी, खुजली और अन्य त्वचा रोगों में लाभ होता है. यह कफ और पित्त को भी संतुलित करता है, जिससे उन दोषों से संबंधित रोगों में राहत मिलती है.
बुखार की स्थिति में त्रिवृत को अन्य ज्वरहर औषधियों के साथ प्रयोग किया जाता है. जलोदर यानी पेट में तरल पदार्थ भर जाने की समस्या और आमवात जैसी जटिल स्थितियों में भी त्रिवृत का उपयोग लाभकारी माना गया है.
त्रिवृत को सेवन करने के कई तरीके हैं. 1 से 3 ग्राम तक त्रिवृत चूर्ण गुनगुने पानी या दूध के साथ लिया जा सकता है. रक्तशुद्धि और त्वचा रोगों में इसे शहद के साथ देना अधिक लाभकारी होता है, जबकि कब्ज में घी के साथ लेना उपयोगी रहता है. त्रिवृत का काढ़ा (क्वाथ) भी तैयार किया जाता है, जो 30 से 40 एमएल की मात्रा में चिकित्सकीय सलाह से दिया जाता है. इसे त्रिवृत लवण, अभयादि चूर्ण जैसे अन्य योगों में भी मिलाकर उपयोग किया जाता है.
हालांकि, कुछ सावधानियों का पालन आवश्यक है. गर्भवती महिलाओं, छोटे बच्चों और अति-पित्त या अल्सर से पीड़ित रोगियों को बिना चिकित्सकीय परामर्श के इसका सेवन नहीं करना चाहिए. अधिक मात्रा में लेने से दस्त, कमजोरी और निर्जलीकरण हो सकता है.
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पीआईएस/डीएससी
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