New Delhi, 4 नवंबर . हाइपोथायरायडिज्म तब होता है जब हमारी थायरॉयड ग्रंथि पर्याप्त हार्मोन नहीं बनाती, जिससे मेटाबॉलिज्म धीमा हो जाता है. इसके कारण थकान, वजन बढ़ना, ठंड लगना, बाल झड़ना और मूड स्विंग जैसी समस्याएं देखने को मिलती हैं. आयुर्वेद में इसे कमजोर पाचन अग्नि से जोड़कर देखा जाता है. इसके लिए कुछ प्राकृतिक और आयुर्वेदिक नुस्खे बहुत फायदेमंद हैं.
सबसे पहले अश्वगंधा सबसे असरदार जड़ी है, जो थायरॉयड हार्मोन को संतुलित करती है और तनाव व कॉर्टिसोल को कम करती है. रोजाना आधा चम्मच अश्वगंधा चूर्ण गुनगुने दूध के साथ लेने से ग्रंथि मजबूत होती है. त्रिफला चूर्ण शरीर से टॉक्सिन निकालकर पाचन अग्नि सुधारता है और लिवर को डिटॉक्स करके हार्मोन निर्माण में मदद करता है. इसे सोने से पहले गुनगुने पानी के साथ लेना फायदेमंद है.
कंचनार गुग्गुल थायरॉयड की सूजन और सुस्ती को कम करता है और कफ-मेद दोष घटाता है. अदरक में पाचन उत्तेजक और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं, जो थायरॉयड में रक्त प्रवाह बढ़ाते हैं और मेटाबॉलिज्म को एक्टिव रखते हैं. लहसुन थायरॉयड एंजाइम्स को सक्रिय करता है और शरीर की डिटॉक्स प्रक्रिया को तेज करता है. सुबह खाली पेट 2-3 कली लहसुन गुनगुने पानी के साथ खाने से लाभ होता है.
मेथीदाना हार्मोन और ब्लड शुगर बैलेंस करता है, नींबू पानी शरीर को डिटॉक्स रखता है और वात-कफ दोष संतुलित करता है. नारियल तेल में मौजूद मीडियम चेन फैटी एसिड्स थायरॉयड को स्टिम्युलेट करते हैं और ऊर्जा बढ़ाते हैं. तुलसी और दालचीनी मिलकर कॉर्टिसोल कम करते हैं और मेटाबॉलिज्म तेज रखते हैं.
इसके अलावा, योग और प्राणायाम बेहद जरूरी हैं. सूर्य नमस्कार गले में रक्त प्रवाह बढ़ाता है, जबकि भ्रामरी, उज्जायी और अनुलोम-विलोम प्राणायाम ग्रंथि को सक्रिय करते हैं. नियमित अभ्यास से थायरॉयड संतुलित रहता है, शरीर की ऊर्जा बढ़ती है और मन शांत रहता है.
इन उपायों को अपनाकर हाइपोथायरायडिज्म से जुड़े लक्षणों में धीरे-धीरे सुधार देखा जा सकता है, लेकिन किसी भी आयुर्वेदिक औषधि या उपचार को अपनाने से पहले योग्य वैद्य की सलाह लेना जरूरी है.
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पीआईएम/एबीएम
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