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गयाजी पितृपक्ष मेले का समापन, 30 लाख से अधिक पिंडदानियों ने पुरखों की मोक्ष प्राप्ति के लिए किया पिंडदान

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गयाजी, 21 सितंबर . ‘मोक्षस्थली’ के रूप में देश और विदेश में चर्चित बिहार के गयाजी में इस बार पितृपक्ष में 30 लाख से अधिक तीर्थयात्री यहां पहुंचे और अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और मोक्ष की प्राप्ति की कामना के साथ पिंडदान किया.

पितृपक्ष मेले के समापन पर Sunday को गयाजी के जिलाधिकारी शशांक शुभंकर ने बताया कि यह पवित्र आयोजन हमारे पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करने और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है. इसने न केवल हमारी आध्यात्मिक प्रतिबद्धता को व्यक्त किया है, बल्कि यह हमारे समुदाय के बीच एकता और श्रद्धा की मिसाल भी बना है. इस वर्ष पितृपक्ष मेला छह सितंबर से शुरू हुआ था.

उन्होंने बताया कि इस मेले को सफल बनाने में जिला प्रशासन की ओर से लगभग तीन महीने पहले से ही हर स्तर पर तैयारी की गई थी, जिसका परिणाम रहा कि पितृपक्ष मेला में 30 लाख से अधिक संख्या में आए तीर्थयात्रियों ने Government एवं प्रशासन की प्रशंसा की और धन्यवाद दिया है.

जिला प्रशासन द्वारा हर जगह पर तीर्थयात्रियों को पूरी मदद, सेवा भाव एवं समर्पण के साथ उनका सहयोग देने का कार्य किया गया है. स्वास्थ्य विभाग की टीम द्वारा क्विक रिस्पांस दिया गया. पूरे 16 दिनों में स्वास्थ्य शिविर में एक लाख से अधिक तीर्थयात्रियों को चिकित्सा सेवा उपलब्ध कराई गई.

जिलाधिकारी शशांक शुभंकर ने बताया कि पितृपक्ष में गयाजी में आस्था, श्रद्धा और सांस्कृतिक वैभव की एक अभूतपूर्व झलक देखी. देश के कोने-कोने से और विदेशों से भी श्रद्धालु यहां आए और यहां के धार्मिक अनुष्ठानों, पूजा-अर्चना, और तर्पण में भाग लिया. यह मेला हमारे देश की समृद्ध सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर का प्रतीक बन गया है.

उल्लेखनीय है कि प्रत्येक वर्ष पितृपक्ष में बड़ी संख्या में श्रद्धालु सनातन धर्म की परंपराओं के अनुसार अपने पितरों के मोक्ष तथा शांति के लिए पिंडदान करने के लिए गयाजी आते हैं. यहां विष्णुपद मंदिर, फल्गु नदी, अक्षय वट एवं अन्य कई पवित्र स्थानों पर स्थित वेदियों पर श्रद्धापूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है. मान्यता है कि मृत्यु के पश्चात मनुष्य की आत्मा इस भौतिक जगत में ही विचरण करती रहती है. केवल शरीर नष्ट होता है, आत्मा अमर रहती है. व्यक्ति का परिवार यदि पिंडदान करता है, तो उस आत्मा को इस लोक से मुक्ति मिलती है और वह सदैव के लिए बंधनों से मुक्त हो जाती है.

एमएनपी/एसके

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