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भूमिज शैली की वास्तुकला का प्रमाण है भोजपुर का शिव मंदिर

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Bhopal , 14 जुलाई . सावन के महिने में Bhopal के पास स्थित भोजपुर शिव मंदिर की चर्चा न हो, ऐसा संभव नहीं है. इसे भोजेश्वर मंदिर भी कहा जाता है. यह अपने आप में स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है. यह मंदिर भूमिज शैली की वास्तुकला का प्रमाण है. मध्य प्रदेश की राजधानी Bhopal से लगभग 30 किलोमीटर दूर स्थित है भोजपुर और यहां है मध्यकालीन शिव मंदिर, जो भोजेश्वर शिव मंदिर के नाम विख्यात है.

इस मंदिर में सावन माह के पहले दिन से ही श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है. आसपास के इलाकों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचकर पूजा-अर्चना कर रहे हैं. भोजपुर में राजा भोज के संरक्षण में 11वीं शताब्दी में निर्मित यह मंदिर भारत में परमार काल के दौरान मंदिर स्थापत्य कला के शिखर का प्रतिनिधित्व करता है. यह एक जीवंत मंदिर है, जहां भक्त कई अवसरों पर पूजा-अर्चना के लिए एकत्रित होते हैं. परमार वंश ने 9वीं से 14वीं शताब्दी तक मालवा क्षेत्र और उससे सटे भारत के पश्चिमी और मध्य भागों पर शासन किया.

राजा भोज परमार वंश के एक प्रसिद्ध शासक थे, जिन्हें उनके स्थापत्य ग्रंथ समरांगण सूत्रधार के लिए जाना जाता है. रायसेन जिले में वेत्रवती (बेतवा) नदी के किनारे बसा है भोजपुर. इस नगर तथा उसके शिवलिंग की स्थापना धार के प्रसिद्ध परमार राजा भोज ने की थी. इसे भोजपुर मंदिर या भोजेश्वर मंदिर भी कहा जाता है.

यह शिव मंदिर पहाड़ी पर स्थित है. मंदिर में एक अधूरी छत के साथ एक गर्भगृह है और गर्भगृह के प्रवेश द्वार के पश्चिम की ओर एक उठा हुआ मंच है. गर्भगृह में प्रवेश एक विशाल द्वार से होता है. मंदिर के गर्भगृह के अंदर शिखर को सहारा देने के लिए 12 मीटर के चार ऊंचे स्तंभ हैं. उठा हुआ विस्तारित मंच संभवतः भोज के शासन के बाद मंडप के लिए बनाया गया था, जो अधूरा है. मंदिर की सबसे उल्लेखनीय विशेषता इसका विशाल लिंगम है. मंदिर के तीनों ओर कोई नक्काशी नहीं है, बल्कि बाहर निकली हुई बालकनी हैं.

गर्भगृह को एक विशाल, घुमावदार छत के लिए डिजाइन किया गया था, जो मौजूदा मंदिर के लेआउट और पैमाने के आधार पर कम से कम 100 मीटर ऊंची रही होगी. मंदिर को और भी खास बनाने वाली एक और विशेषता मंदिर और उस स्थल पर बनने वाली अन्य संरचनाओं के रेखाचित्रों की उपस्थिति है. ये मंदिर के स्वरूप, मंडप, स्तंभों, चौखटों , द्वारों, शीर्षों, स्तंभों के बीच की दूरी आदि के चित्र हैं, जो पास की चट्टानों पर उकेरे गए हैं. ये चित्र मौजूदा मंदिर के डिजाइन से मेल खाते हैं, जिससे पता चलता है कि किस तरह के निर्माण की योजना बनाई गई थी.

नक्काशीदार पत्थर के अप्रयुक्त खंड और उन्हें उठाने के लिए बनाए गए मिट्टी के रैंप आज भी स्थल के आसपास बिखरे हुए देखे जा सकते हैं. यह मंदिर 11वीं शताब्दी में परमार वंश की स्थापत्य कला की उन्नति का प्रमाण है. मंदिर की स्थापत्य शैली और डिजाइन परमार वंश की स्थापत्य कला के अनुरूप हैं. बड़े पत्थरों का प्रयोग, विस्तृत द्वार और कोरबेल वाली छतें, और संरचनात्मक विशेषताएं परमार शासन के दौरान निर्मित मंदिरों की विशेषताओं के अनुरूप हैं. भूमिज निर्माण शैली अब प्रचलन में नहीं है. जीवित भूमिज मंदिरों में से एक होने के नाते, भोजेश्वर महादेव मंदिर एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक धरोहर है.

एसएनपी/पीएसके

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