वेब सीरीज 'पंचायत' में विधायक जी के सहयोगी छुट्टन यानी गौरव सिंह असल में हमारे लखनऊ के बेहतरीन क्रिकेटर रहे हैं। कभी क्रिकेटर बनकर भारतीय टीम का हिस्सा बनने का सपना देखने वाले गौरव सिंह आजकल अभिनय के क्षेत्र में अपनी धाक जमा रहे हैं। फिल्मी दुनिया में रच-बस चुके गौरव की क्रिकेटर से ऐक्टर बनने की कहानी भी कम फिल्मी नहीं है। गोमतीनगर के विशाल खंड में रहने वाले गौरव को भले ही इंडस्ट्री में सुपरस्टार का तमगा नहीं मिला हो लेकिन वह अपने दोस्तों के लिए एक हीरो बन गए हैं। हमसे हुई खास बातचीत में गौरव ने अपने बचपन की यादों संग अपने फिल्मी संघर्ष के बारे में बात की।
इंजरी ने तोड़ दिया क्रिकेटर बनने का सपनामेरी स्कूलिंग केंद्रीय विद्यालय गोमतीनगर से हुई है। मैं क्रिकेट बहुत अच्छा खेलता हूं। स्कूल और क्लब से काफी क्रिकेट खेला है। स्कूल के रीजनल टूर्नामेंट में मैं अंडर-16 से लेकर अंडर-19 तक खेला हूं। एक समय था, जब मैं क्रिकेटर बनना चाहता था। फिर मेरे इंजरी होने लगी। क्रिकेट में ज्यादा इंजरी का मतलब है कि आपका करियर लंबा नहीं चलेगा। इस वजह से मैंने क्रिकेट को अलविदा कह दिया और पढ़ाई पर ध्यान देने लगा। सच बताऊं तो पढ़ाई में मेरा मन नहीं लगता था। घर का प्रेशर रहता था कि पढ़ो-पढ़ो लेकिन मैं दोस्तों के साथ बंक मारकर हजरतगंज स्थित साहू सिनेमा, प्रतिभा सिनेमा में फिल्में देखा करता था।
'गैंग्स ऑफ वासेपुर' ने किया प्रभावितमुझे ऐक्टिंग की एबीसीडी नहीं आती थी लेकिन गैंग्स ऑफ वासेपुर देखने के बाद मेरे अंदर ऐक्टिंग का कीड़ा काटने लगा। शायद, यह कीड़ा मेरे अंदर बहुत पहले से ही था लेकिन मुझे पता नहीं था। वो तो इस फिल्म ने मेरे अंदर ऐक्टिंग का जुनून भर दिया। सिनेमा का शौक मुझे बहुत था। उस वक्त शायद ही कोई मूवी हो, जो मैंने सिनेमा हाल में ना देखी हो। मुझे सिनेमा हमेशा से प्रभावित करता रहा है। मुझे फिल्मी दुनिया को करीब से जानने की कोशिश हमेशा रहती थी और आज मैं इस दुनिया का एक हिस्सा हूं।
ड्रामा करने घर से मुंबई गयामुझे ऐक्टर बनना है, यह बात घर पर कहने में मुझे दो साल लग गए। मैंने जब घरवालों से कहा कि मुझे मुंबई जाना है तो माता-पिता बोले कि इतने बड़े शहर में कोई जानने वाला नहीं है, कैसे रहोगे वहां पर। मैंने जाने की जिद की तो वो मना करने लगे। उस वक्त मैंने गुस्सा होने की ऐक्टिंग की। अंत में वो मान गए और कहने लगे, जो करना है करो क्योंकि वो चाहते थे कि मैं कहीं घर पर ही ना पड़ा रहूं। फिर कुछ करे चाहे ऐक्टिंग करे या फिर नौकरी। बस घर पर ना लेटा रहे (हंसते हुए)।
मकरंद देशपांडे एक इंस्टिट्यूट हैं2015 में मैं मुंबई पहुंच गया। शुरू में सोचता था कि कैसे जाऊंगा एक अनजाने शहर में लेकिन किस्मत में कुछ और लिखा था। मेरे एक सीनियर मुंबई में जॉब करने के साथ सिंगिंग इंडस्ट्री में करियर बनाने की कोशिश कर रहे थे। उन्होंने मुझसे कहा कि एक बार मुंबई आकर किस्मत आजमा लो। मुझे एक सहारा मिल गया और मुंबई पहुंच गया लेकिन वहां पहुंचकर पता चला कि मुझे बहुत सीखना है। इस वजह से मैं पृथ्वी थिएटर गया और वहां पर मैंने मकरंद देशपांडे जी और नसीरुद्दीन सर के सानिध्य में सीखना शुरू किया। करीब चार साल तक मैंने सिर्फ थिएटर किया। मेरे गुरु मकरंद देशपांडे जी ने मुझे अभिनय की बारीकियां सिखाईं। उनके साथ रहकर लिखना, पढ़ना, अभिनय सब कुछ सीखने को मिलता है। 2019 में मुझे पहली फिल्म सुपर 30 मिली। उसमें छोटा ही रोल था लेकिन मेरी शुरुआत थी। इसके बाद ‘जबरिया जोड़ी’ खई, जिसकी शूटिंग लखनऊ में हुई थी।
‘पंचायत’ ने मुझे पहचान दीमैंने 'पंचायत' से पहले कई फिल्मों व वेब सीरीज में काम किया लेकिन मुझे पहचान इसी से मिली। असल में, मैं पंचायत का बहुत बड़ा फैन रहा हूं क्योंकि मैं मूल निवासी बलिया का हूं और इसकी कहानी भी वहीं की है। मैंने जब इसका पहला सीजन देखा तो लगा कि यह हमारे यहां की कहानी है। इसमें मुझे होना ही चाहिए इसलिए जब पता चला कि दूसरे सीजन के लिए ऑडिशन हो रहे हैं तो मैंने अपने किरदार के लिए ऑडिशन दिया। दो से तीन राउंड के बाद मेरा सिलेक्शन हो गया। मुझे खुद नहीं पता था कि यह रोल मुझे इतनी पहचान देगा। अब मैं जहां जाता हूं, वहां पर लोग मुझे पहचानते हैं और मेरे साथ फोटो खिंचवाते हैं।
दोस्त कहते हैं, ‘हीरो से मिलवा दो’मैंने अपने शहर लखनऊ में 'जबरिया जोड़ी' से लेकर अनुराग कश्यप की अपकमिंग फिल्म 'निशांची' की शूटिंग की है। निशांची के दोनों पार्ट में मेरा रोल है। हम जब शूटिंग कर रहे थे तो मेरे दोस्त मुझसे कहते थे कि अरे तू तो हीरो हो गया है। एक बार अनुराग कश्यप से मिलवा दे। फिर एक दिन मैं अपने दोस्तों को लेकर शूटिंग सेट पर गया। वहां मैंने अनुराग कश्यप से कहा कि मेरे कुछ दोस्त हैं, जो आपके फैन हैं और आपके साथ फोटो क्लिक करवाने चाहते हैं। उन्होंने कहा कि बुलाओ सबको। फिर सबने उनके साथ फोटो क्लिक करवाईं। मेरे दोस्त मुझे स्क्रीन पर देखकर बहुत खुश होते हैं।
इंजरी ने तोड़ दिया क्रिकेटर बनने का सपनामेरी स्कूलिंग केंद्रीय विद्यालय गोमतीनगर से हुई है। मैं क्रिकेट बहुत अच्छा खेलता हूं। स्कूल और क्लब से काफी क्रिकेट खेला है। स्कूल के रीजनल टूर्नामेंट में मैं अंडर-16 से लेकर अंडर-19 तक खेला हूं। एक समय था, जब मैं क्रिकेटर बनना चाहता था। फिर मेरे इंजरी होने लगी। क्रिकेट में ज्यादा इंजरी का मतलब है कि आपका करियर लंबा नहीं चलेगा। इस वजह से मैंने क्रिकेट को अलविदा कह दिया और पढ़ाई पर ध्यान देने लगा। सच बताऊं तो पढ़ाई में मेरा मन नहीं लगता था। घर का प्रेशर रहता था कि पढ़ो-पढ़ो लेकिन मैं दोस्तों के साथ बंक मारकर हजरतगंज स्थित साहू सिनेमा, प्रतिभा सिनेमा में फिल्में देखा करता था।
'गैंग्स ऑफ वासेपुर' ने किया प्रभावितमुझे ऐक्टिंग की एबीसीडी नहीं आती थी लेकिन गैंग्स ऑफ वासेपुर देखने के बाद मेरे अंदर ऐक्टिंग का कीड़ा काटने लगा। शायद, यह कीड़ा मेरे अंदर बहुत पहले से ही था लेकिन मुझे पता नहीं था। वो तो इस फिल्म ने मेरे अंदर ऐक्टिंग का जुनून भर दिया। सिनेमा का शौक मुझे बहुत था। उस वक्त शायद ही कोई मूवी हो, जो मैंने सिनेमा हाल में ना देखी हो। मुझे सिनेमा हमेशा से प्रभावित करता रहा है। मुझे फिल्मी दुनिया को करीब से जानने की कोशिश हमेशा रहती थी और आज मैं इस दुनिया का एक हिस्सा हूं।
ड्रामा करने घर से मुंबई गयामुझे ऐक्टर बनना है, यह बात घर पर कहने में मुझे दो साल लग गए। मैंने जब घरवालों से कहा कि मुझे मुंबई जाना है तो माता-पिता बोले कि इतने बड़े शहर में कोई जानने वाला नहीं है, कैसे रहोगे वहां पर। मैंने जाने की जिद की तो वो मना करने लगे। उस वक्त मैंने गुस्सा होने की ऐक्टिंग की। अंत में वो मान गए और कहने लगे, जो करना है करो क्योंकि वो चाहते थे कि मैं कहीं घर पर ही ना पड़ा रहूं। फिर कुछ करे चाहे ऐक्टिंग करे या फिर नौकरी। बस घर पर ना लेटा रहे (हंसते हुए)।
मकरंद देशपांडे एक इंस्टिट्यूट हैं2015 में मैं मुंबई पहुंच गया। शुरू में सोचता था कि कैसे जाऊंगा एक अनजाने शहर में लेकिन किस्मत में कुछ और लिखा था। मेरे एक सीनियर मुंबई में जॉब करने के साथ सिंगिंग इंडस्ट्री में करियर बनाने की कोशिश कर रहे थे। उन्होंने मुझसे कहा कि एक बार मुंबई आकर किस्मत आजमा लो। मुझे एक सहारा मिल गया और मुंबई पहुंच गया लेकिन वहां पहुंचकर पता चला कि मुझे बहुत सीखना है। इस वजह से मैं पृथ्वी थिएटर गया और वहां पर मैंने मकरंद देशपांडे जी और नसीरुद्दीन सर के सानिध्य में सीखना शुरू किया। करीब चार साल तक मैंने सिर्फ थिएटर किया। मेरे गुरु मकरंद देशपांडे जी ने मुझे अभिनय की बारीकियां सिखाईं। उनके साथ रहकर लिखना, पढ़ना, अभिनय सब कुछ सीखने को मिलता है। 2019 में मुझे पहली फिल्म सुपर 30 मिली। उसमें छोटा ही रोल था लेकिन मेरी शुरुआत थी। इसके बाद ‘जबरिया जोड़ी’ खई, जिसकी शूटिंग लखनऊ में हुई थी।
‘पंचायत’ ने मुझे पहचान दीमैंने 'पंचायत' से पहले कई फिल्मों व वेब सीरीज में काम किया लेकिन मुझे पहचान इसी से मिली। असल में, मैं पंचायत का बहुत बड़ा फैन रहा हूं क्योंकि मैं मूल निवासी बलिया का हूं और इसकी कहानी भी वहीं की है। मैंने जब इसका पहला सीजन देखा तो लगा कि यह हमारे यहां की कहानी है। इसमें मुझे होना ही चाहिए इसलिए जब पता चला कि दूसरे सीजन के लिए ऑडिशन हो रहे हैं तो मैंने अपने किरदार के लिए ऑडिशन दिया। दो से तीन राउंड के बाद मेरा सिलेक्शन हो गया। मुझे खुद नहीं पता था कि यह रोल मुझे इतनी पहचान देगा। अब मैं जहां जाता हूं, वहां पर लोग मुझे पहचानते हैं और मेरे साथ फोटो खिंचवाते हैं।
दोस्त कहते हैं, ‘हीरो से मिलवा दो’मैंने अपने शहर लखनऊ में 'जबरिया जोड़ी' से लेकर अनुराग कश्यप की अपकमिंग फिल्म 'निशांची' की शूटिंग की है। निशांची के दोनों पार्ट में मेरा रोल है। हम जब शूटिंग कर रहे थे तो मेरे दोस्त मुझसे कहते थे कि अरे तू तो हीरो हो गया है। एक बार अनुराग कश्यप से मिलवा दे। फिर एक दिन मैं अपने दोस्तों को लेकर शूटिंग सेट पर गया। वहां मैंने अनुराग कश्यप से कहा कि मेरे कुछ दोस्त हैं, जो आपके फैन हैं और आपके साथ फोटो क्लिक करवाने चाहते हैं। उन्होंने कहा कि बुलाओ सबको। फिर सबने उनके साथ फोटो क्लिक करवाईं। मेरे दोस्त मुझे स्क्रीन पर देखकर बहुत खुश होते हैं।
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