नई दिल्ली: लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने मतदाता सूची में कथित फर्जीवाड़े को लेकर नया दावा किया है। उन्होंने कर्नाटक के आलंद निर्वाचन क्षेत्र का उदाहरण देते हुए आरोप लगाए कि इस क्षेत्र में 6,018 मतदाताओं को वोट डिलीट किए गए।
18 सितंबर को राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दावा किया कि आलंद निर्वाचन क्षेत्र में 6,018 वोट हटाए गए। राहुल ने कहा, हमें नहीं पता कि 2023 के चुनाव में आलंद में कुल कितने वोट हटाए गए। संभवतः यह संख्या 6,018 से कहीं ज्यादा है।
चुनाव आयोग ने राहुल गांधी के इन आरोपों को गलत और बेबुनियाद बताया। आयोग का कहना है कि 2023 में अलंद से मतदाताओं के नाम हटाने की कोशिश की गई थी, लेकिन यह आयोग ही था जिसने इस मुद्दे को पकड़ा और एफआईआर दर्ज कराई।
अलंद में वोटर लिस्ट से नाम हटाने का मामला सामने आने के बाद कई सवाल उठ रहे हैं। जानते हैं अलंद में आखिर हुआ क्या था? वोटर लिस्ट से नाम कैसे हटाए जाते हैं? यह मुद्दा इतना बड़ा क्यों बन गया है?
अलंद में वोटरों के नाम हटाने पर क्या कहता है रिकॉर्ड
दिसंबर 2022 में, कर्नाटक में मतदाता सूची संशोधन करते समय अधिकारियों ने देखा कि अलंद से नाम हटाने के लिए बहुत सारे आवेदन आ रहे हैं। कुल 6,018 फॉर्म 7 ऑनलाइन सरकारी प्लेटफॉर्म एनवीएसपी और गरुड़ से जमा किए गए। फॉर्म 7 का इस्तेमाल वोटर लिस्ट में किसी नाम को शामिल करने पर आपत्ति जताने के लिए किया जाता है। यह फॉर्म कोई भी व्यक्ति खुद के लिए या किसी और के लिए भर सकता है।
फॉर्म 7 को लेकर कई मानक हैं, यह नाम अपने आप नहीं हटाए जाते। अधिकारियों ने BLO यानी बूथ-लेवल अधिकारियों को इन आवेदनों की जांच करने के लिए कहा। बीएलओ ने घर-घर जाकर जांच की तो पता चला कि मतदाता सूची अपडेट को लेकर कुछ गड़बड़ी है। जिन लोगों के नाम हटाने के लिए दिए गए थे, उन्होंने कहा कि उन्होंने ऐसा कोई फॉर्म नहीं भरा है।
एक BLO को तो अपने चाचा का नाम हटाने के लिए दिया गया फॉर्म-7 मिला, जबकि पड़ोसी ने कहा कि उसने ऐसा नहीं किया। जांच में पता चला कि 6,018 आवेदनों में से सिर्फ 24 सही थे, बाकी 5,994 फर्जी थे। इसके बाद पुलिस में एफआईआर दर्ज कराई गई।
कर्नाटक चुनाव आयोग ने जारी किया बयान
6 सितंबर 2023 को कर्नाटक के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने मामले पर बयान जारी किया। उन्होंने कहा, सभी जानकारी, जिसमें आपत्तिकर्ता का नाम, फॉर्स 7 का रेफरेंस नंबर, ईपीआईसी नंबर, फॉर्म भरने के लिए इस्तेमाल किया गया मोबाइल नंबर कलबुर्गी के एसपी को सौंप दी गई है।
चुनाव आयोग ने बचाव में क्या कहा?
कांग्रेस का पलटवार
कांग्रेस का कहना है कि यह मामला सिर्फ इतना नहीं है जितना चुनाव आयोग बता रहा है। राहुल गांधी ने कहा कि यह एक बड़ी साजिश का हिस्सा है। उन्होंने आरोप लगाया कि फर्जी तरीके से नाम हटाने का काम एक खास सॉफ्टवेयर से किया गया।
उन्होंने यह भी कहा कि अलंद के 10 बूथों में ऐसा ज्यादा हुआ, जिनमें से 8 कांग्रेस के गढ़ थे। कर्नाटक के मंत्री प्रियंक खड़गे ने राज्य के संयुक्त मुख्य निर्वाचन अधिकारी द्वारा 4 फरवरी 2025 को लिखे गए एक लेटर का हवाला दिया है। जिसमें कहा गया है कि अलंद मामले की जांच में कुछ तकनीकी डेटा गायब है। इसके अलावा, कर्नाटक सीआईडी ने स्पष्टीकरण मांगते हुए 18 पत्र भेजे थे। 1 फरवरी को लिखे एक पत्र में साफ तौर पर कहा गया था कि आईपी लॉग तो उपलब्ध करा दिए गए थे, लेकिन "गंतव्य पोर्ट का विवरण गायब है।"
अलंद से कांग्रेस एमएलए बी.आर. पाटिल ने कहा कि यह मामला उनके लिए निजी है और उन्हें हराने के लिए ऐसा किया गया। उन्होंने आरोप लगाया, बीजेपी ने यह किया और ECI ने भी। बिना मिलीभगत के यह नहीं हो सकता। उन्होंने यह भी कहा कि महाराष्ट्र, झारखंड और तमिलनाडु जैसे राज्यों के EPIC नंबरों का गलत इस्तेमाल करके फर्जी आवेदन किए गए।
अलंद विवाद के चर्चा में आने के बाद एक बार फिर सवाल उठ रहा है कि वोटर लिस्ट से किसी के नाम को हटाने का प्रोसेस क्या है और इसे कौन हटा सकता है?
फॉर्म -7 का भरना जरूरी?
आयोग का कहना है कि वोटर लिस्ट से किसी भी वोटर का नाम डिलीट कराने के लिए फॉर्म नंबर-7 भरना जरूरी होता है। इसे चाहे ऑनलाइन भरे या फिर ऑफलाइन। इसमें कोई वोटर अपना या किसी दूसरे का नाम मतदाता सूची से काटने के लिए आवेदन कर सकता है। लेकिन इसमें आवेदन करने वाले का दावा अगर झूठा पाया जाता है तो उसके खिलाफ आरपी एक्ट-1950 के सेक्शन-31 के तहत कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। जिसमें एक साल तक की कैद या जुर्माना या फिर दोनों हो सकते हैं।
देनी होती है पूरी जानकारी
आयोग का कहना है कि बिना प्रक्रिया पूरी किए बिना कोई भी ऑनलाइन तरीके से वोटर लिस्ट से किसी वोटर का नाम नहीं काट सकता। पूरे देश में ऐसा कोई सिस्टम नहीं है कि ऑनलाइन तरीके से किसी का नाम काट दिया जाए। नाम काटने के लिए आवेदन करने वाले को अपना नाम, मोबाइल नंबर, वोटर कार्ड नंबर और अन्य जानकारियां देनी होती हैं। साथ ही जिसका नाम वह कटवाना चाहता है उसके बारे में भी बताना पड़ता है।
बीएलओ करते हैं जांच
फॉर्म-7 भरने के बाद पहले बीएलओ उस वोटर के घर पर जाकर वेरिफाई करता है जिसका नाम काटने के लिए आवेदन किया गया है। अगर उस वोटर ने फर्जी एड्रेस भरा है, उसकी डेथ हो गई है, वह 18 साल का नहीं हुआ है, वह लापता है या परमानेंट शिफ्ट हो गया है, पहले से ही उसका नाम वोटर लिस्ट में है या वह भारतीय नहीं है। ऐसी किसी भी परिस्थिति में मतदाता का नाम काटा जा सकता है।
अलंद से आगे क्या यह राष्ट्रीय मुद्दा?
चुनाव आयोग का कहना है कि अलंद में सिस्टम ने सही काम किया और फर्जी आवेदन रद्द कर दिए गए। लेकिन, कन्नन गोपीनाथन नाम के एक पूर्व IAS अधिकारी का कहना है कि इस सिस्टम का गलत इस्तेमाल किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि ECI को फॉर्म 7 को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से हटा देना चाहिए।
राहुल गांधी का कहना है कि अलंद तो सिर्फ एक उदाहरण है। उन्होंने महाराष्ट्र के राजुरा का भी मामला उठाया, जहां कुछ ही दिनों में हजारों फर्जी आवेदन आए थे। ECI ने कहा कि कोई भी फर्जी नाम वोटर लिस्ट में नहीं जोड़ा गया और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की गई। लेकिन, विपक्ष का कहना है कि इतने सारे आवेदनों से पता चलता है कि वोटर लिस्ट में गड़बड़ी करने की कोशिश की जा रही है। वहीं पूर्व अधिकारी गोपीनाथन का कहना है कि अगर इतने सारे आवेदन एक ही आईपी एड्रेस से आए हैं, तो यह एक संगठित गिरोह का काम हो सकता है।
उन्होंने कहा, यह समझना जरूरी है कि यह किसने किया, किसने उन्हें पैसे दिए, वे और कहां-कहां सक्रिय थे, और चुनावी तोड़फोड़ का यह नेटवर्क कितना गहरा है। चुनाव आयोग इसे नजरअंजाज नहीं कर सकता और निष्क्रियता के जरिए इसमें शामिल नहीं हो सकता।
क्यों अहम है अलंद मामला?
अलंद केस को देखा जाए तो चुनाव आयोग की तत्परता से 6 हजार से अधिक नामों को वोटर लिस्ट से हटाने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया। लेकिन, यह मामला अब एक राष्ट्रीय राजनीतिक मुद्दा बन गया है। कर्नाटक CID का कहना है कि कुछ डिजिटल सबूत अभी भी गायब हैं। वहीं चुनाव आयोग का कहना है कि उसने सारा डेटा दे दिया है। इन विरोधाभासी दावों से सवाल उठते हैं कि क्या जांचकर्ताओं के पास पूरी जानकारी है। गोपीनाथन ने कहा, "2 साल से ज्यादा हो गए हैं और ECI को अभी तक यह नहीं पता कि इस रैकेट के पीछे कौन है, जो हम सभी के लिए असहज करने वाला है।
18 सितंबर को राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दावा किया कि आलंद निर्वाचन क्षेत्र में 6,018 वोट हटाए गए। राहुल ने कहा, हमें नहीं पता कि 2023 के चुनाव में आलंद में कुल कितने वोट हटाए गए। संभवतः यह संख्या 6,018 से कहीं ज्यादा है।
चुनाव आयोग ने राहुल गांधी के इन आरोपों को गलत और बेबुनियाद बताया। आयोग का कहना है कि 2023 में अलंद से मतदाताओं के नाम हटाने की कोशिश की गई थी, लेकिन यह आयोग ही था जिसने इस मुद्दे को पकड़ा और एफआईआर दर्ज कराई।
अलंद में वोटर लिस्ट से नाम हटाने का मामला सामने आने के बाद कई सवाल उठ रहे हैं। जानते हैं अलंद में आखिर हुआ क्या था? वोटर लिस्ट से नाम कैसे हटाए जाते हैं? यह मुद्दा इतना बड़ा क्यों बन गया है?
अलंद में वोटरों के नाम हटाने पर क्या कहता है रिकॉर्ड
दिसंबर 2022 में, कर्नाटक में मतदाता सूची संशोधन करते समय अधिकारियों ने देखा कि अलंद से नाम हटाने के लिए बहुत सारे आवेदन आ रहे हैं। कुल 6,018 फॉर्म 7 ऑनलाइन सरकारी प्लेटफॉर्म एनवीएसपी और गरुड़ से जमा किए गए। फॉर्म 7 का इस्तेमाल वोटर लिस्ट में किसी नाम को शामिल करने पर आपत्ति जताने के लिए किया जाता है। यह फॉर्म कोई भी व्यक्ति खुद के लिए या किसी और के लिए भर सकता है।
फॉर्म 7 को लेकर कई मानक हैं, यह नाम अपने आप नहीं हटाए जाते। अधिकारियों ने BLO यानी बूथ-लेवल अधिकारियों को इन आवेदनों की जांच करने के लिए कहा। बीएलओ ने घर-घर जाकर जांच की तो पता चला कि मतदाता सूची अपडेट को लेकर कुछ गड़बड़ी है। जिन लोगों के नाम हटाने के लिए दिए गए थे, उन्होंने कहा कि उन्होंने ऐसा कोई फॉर्म नहीं भरा है।
एक BLO को तो अपने चाचा का नाम हटाने के लिए दिया गया फॉर्म-7 मिला, जबकि पड़ोसी ने कहा कि उसने ऐसा नहीं किया। जांच में पता चला कि 6,018 आवेदनों में से सिर्फ 24 सही थे, बाकी 5,994 फर्जी थे। इसके बाद पुलिस में एफआईआर दर्ज कराई गई।
कर्नाटक चुनाव आयोग ने जारी किया बयान
6 सितंबर 2023 को कर्नाटक के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने मामले पर बयान जारी किया। उन्होंने कहा, सभी जानकारी, जिसमें आपत्तिकर्ता का नाम, फॉर्स 7 का रेफरेंस नंबर, ईपीआईसी नंबर, फॉर्म भरने के लिए इस्तेमाल किया गया मोबाइल नंबर कलबुर्गी के एसपी को सौंप दी गई है।
चुनाव आयोग ने बचाव में क्या कहा?
- चुनाव आयोग ने अपने बचाव में तीन तर्क पेश किए गए। ECI का कहना है कि कोई भी व्यक्ति ऑनलाइन वोटर लिस्ट से नाम नहीं हटा सकता। हर आवेदन की जांच होती है। वोटर को नोटिस दिया जाता है और फिर ERO यानी इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर फैसला लेता है।
- आयोग का यह भी कहना है कि अलंद में जो मतदाता सूची को लेकर गड़बड़ी हुई, उसे उन्होंने खुद पकड़ा। नाम हटाने के लिए फर्जी आवेदन जरूर किए गए थे लेकिन उन पर अमल नहीं किया गया। 6 हजार से अधिक आवेदनों में से केवल वैध 24 को ही हटाया गया।
- चुनाव आयोग ने अपने बचाव में कहा कि, उन्होंने मामले में एफआईआर भी दर्ज कराई और 2023 के विधानसभा चुनाव में अलंद की वोटर लिस्ट सही थी। जिस पर कांग्रेस उम्मीदवार बीआर पाटिल ने जीत हासिल की थी।
कांग्रेस का पलटवार
कांग्रेस का कहना है कि यह मामला सिर्फ इतना नहीं है जितना चुनाव आयोग बता रहा है। राहुल गांधी ने कहा कि यह एक बड़ी साजिश का हिस्सा है। उन्होंने आरोप लगाया कि फर्जी तरीके से नाम हटाने का काम एक खास सॉफ्टवेयर से किया गया।
उन्होंने यह भी कहा कि अलंद के 10 बूथों में ऐसा ज्यादा हुआ, जिनमें से 8 कांग्रेस के गढ़ थे। कर्नाटक के मंत्री प्रियंक खड़गे ने राज्य के संयुक्त मुख्य निर्वाचन अधिकारी द्वारा 4 फरवरी 2025 को लिखे गए एक लेटर का हवाला दिया है। जिसमें कहा गया है कि अलंद मामले की जांच में कुछ तकनीकी डेटा गायब है। इसके अलावा, कर्नाटक सीआईडी ने स्पष्टीकरण मांगते हुए 18 पत्र भेजे थे। 1 फरवरी को लिखे एक पत्र में साफ तौर पर कहा गया था कि आईपी लॉग तो उपलब्ध करा दिए गए थे, लेकिन "गंतव्य पोर्ट का विवरण गायब है।"
अलंद से कांग्रेस एमएलए बी.आर. पाटिल ने कहा कि यह मामला उनके लिए निजी है और उन्हें हराने के लिए ऐसा किया गया। उन्होंने आरोप लगाया, बीजेपी ने यह किया और ECI ने भी। बिना मिलीभगत के यह नहीं हो सकता। उन्होंने यह भी कहा कि महाराष्ट्र, झारखंड और तमिलनाडु जैसे राज्यों के EPIC नंबरों का गलत इस्तेमाल करके फर्जी आवेदन किए गए।
अलंद विवाद के चर्चा में आने के बाद एक बार फिर सवाल उठ रहा है कि वोटर लिस्ट से किसी के नाम को हटाने का प्रोसेस क्या है और इसे कौन हटा सकता है?
फॉर्म -7 का भरना जरूरी?
आयोग का कहना है कि वोटर लिस्ट से किसी भी वोटर का नाम डिलीट कराने के लिए फॉर्म नंबर-7 भरना जरूरी होता है। इसे चाहे ऑनलाइन भरे या फिर ऑफलाइन। इसमें कोई वोटर अपना या किसी दूसरे का नाम मतदाता सूची से काटने के लिए आवेदन कर सकता है। लेकिन इसमें आवेदन करने वाले का दावा अगर झूठा पाया जाता है तो उसके खिलाफ आरपी एक्ट-1950 के सेक्शन-31 के तहत कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। जिसमें एक साल तक की कैद या जुर्माना या फिर दोनों हो सकते हैं।
देनी होती है पूरी जानकारी
आयोग का कहना है कि बिना प्रक्रिया पूरी किए बिना कोई भी ऑनलाइन तरीके से वोटर लिस्ट से किसी वोटर का नाम नहीं काट सकता। पूरे देश में ऐसा कोई सिस्टम नहीं है कि ऑनलाइन तरीके से किसी का नाम काट दिया जाए। नाम काटने के लिए आवेदन करने वाले को अपना नाम, मोबाइल नंबर, वोटर कार्ड नंबर और अन्य जानकारियां देनी होती हैं। साथ ही जिसका नाम वह कटवाना चाहता है उसके बारे में भी बताना पड़ता है।
बीएलओ करते हैं जांच
फॉर्म-7 भरने के बाद पहले बीएलओ उस वोटर के घर पर जाकर वेरिफाई करता है जिसका नाम काटने के लिए आवेदन किया गया है। अगर उस वोटर ने फर्जी एड्रेस भरा है, उसकी डेथ हो गई है, वह 18 साल का नहीं हुआ है, वह लापता है या परमानेंट शिफ्ट हो गया है, पहले से ही उसका नाम वोटर लिस्ट में है या वह भारतीय नहीं है। ऐसी किसी भी परिस्थिति में मतदाता का नाम काटा जा सकता है।
अलंद से आगे क्या यह राष्ट्रीय मुद्दा?
चुनाव आयोग का कहना है कि अलंद में सिस्टम ने सही काम किया और फर्जी आवेदन रद्द कर दिए गए। लेकिन, कन्नन गोपीनाथन नाम के एक पूर्व IAS अधिकारी का कहना है कि इस सिस्टम का गलत इस्तेमाल किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि ECI को फॉर्म 7 को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से हटा देना चाहिए।
राहुल गांधी का कहना है कि अलंद तो सिर्फ एक उदाहरण है। उन्होंने महाराष्ट्र के राजुरा का भी मामला उठाया, जहां कुछ ही दिनों में हजारों फर्जी आवेदन आए थे। ECI ने कहा कि कोई भी फर्जी नाम वोटर लिस्ट में नहीं जोड़ा गया और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की गई। लेकिन, विपक्ष का कहना है कि इतने सारे आवेदनों से पता चलता है कि वोटर लिस्ट में गड़बड़ी करने की कोशिश की जा रही है। वहीं पूर्व अधिकारी गोपीनाथन का कहना है कि अगर इतने सारे आवेदन एक ही आईपी एड्रेस से आए हैं, तो यह एक संगठित गिरोह का काम हो सकता है।
उन्होंने कहा, यह समझना जरूरी है कि यह किसने किया, किसने उन्हें पैसे दिए, वे और कहां-कहां सक्रिय थे, और चुनावी तोड़फोड़ का यह नेटवर्क कितना गहरा है। चुनाव आयोग इसे नजरअंजाज नहीं कर सकता और निष्क्रियता के जरिए इसमें शामिल नहीं हो सकता।
क्यों अहम है अलंद मामला?
अलंद केस को देखा जाए तो चुनाव आयोग की तत्परता से 6 हजार से अधिक नामों को वोटर लिस्ट से हटाने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया। लेकिन, यह मामला अब एक राष्ट्रीय राजनीतिक मुद्दा बन गया है। कर्नाटक CID का कहना है कि कुछ डिजिटल सबूत अभी भी गायब हैं। वहीं चुनाव आयोग का कहना है कि उसने सारा डेटा दे दिया है। इन विरोधाभासी दावों से सवाल उठते हैं कि क्या जांचकर्ताओं के पास पूरी जानकारी है। गोपीनाथन ने कहा, "2 साल से ज्यादा हो गए हैं और ECI को अभी तक यह नहीं पता कि इस रैकेट के पीछे कौन है, जो हम सभी के लिए असहज करने वाला है।
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