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Karnataka Caste Census: कर्नाटक में जातीय जनगणना पर विवाद, हाईकोर्ट पहुंचे ब्राह्मण, वोक्कालिगा और लिंगायत संगठन

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बेंगलुरु: कर्नाटक में जातियों की सामाजिक-आर्थिक सर्वे शुरू होने के साथ ही यह विवाद हाईकोर्ट पहुंच गया है। लिंगायत, वोक्कालिगा और ब्राह्मण जैसे समुदायों के संगठनों ने राज्य सरकार के सर्वेक्षण कराने के अधिकार को चुनौती दी है। अखिल कर्नाटक ब्राह्मण महासभा, कर्नाटक वोक्कालिगा संघ और वीर शिवा लिंगायत महासभा समेत कई संगठनों ने याचिका दायर कर सर्वेक्षण पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि सरकार का यह कदम संविधान के आर्टिकल 342 (A) का उल्लंघन है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि सरकार डेटा इकट्ठा करने के लिए जियो-टैगिंग और आधार कार्ड को लिंक करने जैसा तरीका अपना रही है, वह आधार एक्ट के नियमों का उल्लंघन है।



कर्नाटक में जाति के हिसाब से आर्थिक सर्वेक्षण पर विवाद बढ़ता जा रहा है। राज्य की कई जातियों ने इसे गैरजरूरी बताते हुए कहा है कि यह राजनीति से प्रेरित होकर किया जा रहा है। शिक्षकों और आशा वर्करों की ड्यूटी लगाकर लोगों के आधार डिटेल लिए जा रहे हैं। बीजेपी का कहना है कि सिद्धा सरकार इसके जरिये जनगणना करा रही है, जो केंद्र सरकार का काम है। सीनियर एडवोकेट प्रभुलींग नवदगी ने कहा कि यह संविधान के आर्टिकल 342 (A) के खिलाफ है। राज्य सरकार डेटा इकट्ठा करने के लिए जो तरीका अपना रही है, जैसे कि जियो-टैगिंग और नागरिकों के आधार कार्ड को लिंक करना, वह आधार एक्ट के नियमों का उल्लंघन है।



वरिष्ठ वकील जयकुमार पाटिल ने कहा कि राज्य सरकार सर्वे के नाम पर जनगणना करने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा कि जनगणना का काम केंद्र सरकार का है और राज्य सरकार को यह करने का कोई अधिकार नहीं है। एडवोकेट अशोक हरनाहल्ली ने कहा कि इस सर्वे से सिर्फ यह सिफारिश की जा सकती है कि किसी जाति को शामिल किया जाए या हटाया जाए, इससे ज्यादा कुछ नहीं हो सकता। वरिष्ठ वकील विवेक सुब्बा रेड्डी ने कहा कि इस सर्वे का असली मकसद राजनीतिक फायदे के लिए समुदाय-वार जनसंख्या जानना और राजनीतिक हेरफेर करना है।



राज्य सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने अंतरिम रोक लगाने की मांग का विरोध किया। उन्होंने कहा कि कोर्ट ने पहले भी ऐसे सर्वे पर रोक नहीं लगाई थी।उन्होंने कहा कि सरकार ने पहले ही हजारों लोगों को इस काम पर लगा दिया है और याचिकाकर्ता इस स्तर पर रोक नहीं मांग सकते। सिंघवी ने यह भी कहा कि यह एक सर्वे है, जनगणना नहीं। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को सामाजिक-आर्थिक और शैक्षणिक सर्वे करने और डेटा इकट्ठा करने का अधिकार है, जैसा कि इंदिरा साहनी मामले में कहा गया है।



वोक्कालिगा मठ आदिचुंचनगिरी के प्रमुख स्वामी निर्मलानंदनाथ ने कहा कि सरकार 15 दिनों में राज्य की 7 करोड़ आबादी को कवर कर पाएगी या नहीं, यह मुश्किल है। पड़ोसी राज्य तेलंगाना को 3.5 करोड़ आबादी का सर्वे करने में 65 दिन लगे थे। सरकार जल्दबाजी में सर्वे कर रही है और इससे सही जानकारी नहीं मिल पाएगी।

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