पटना/किशनगंज/अररिया: स्थानीय अधिकारियों ने बताया कि बिहार में मतदाता सूची के भारत निर्वाचन आयोग के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) में किशनगंज या अररिया में एक भी विदेशी मतदाता नहीं मिला। किशनगंज के एक ओर नेपाल है, तथा दूसरी ओर उत्तर बंगाल का चाय क्षेत्र है, तथा अररिया की सीमा नेपाल से लगती है। ऐसा माना जा रहा था कि नेपाल और बांग्लादेश से आए कुछ लोग इन दोनों जिलों की मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने में सफल हो गए होंगे।
किशनगंज में नहीं मिला एक भी विदेशी वोटर
लेकिन किशनगंज के जिला मजिस्ट्रेट विशाल राज ने कहा कि एसआईआर के दौरान, संदिग्ध विदेशी मूल का कोई भी मतदाता नहीं मिला। उन्होंने कहा, 'हमने कुछ मतदाताओं को संदिग्ध निवास के आधार पर नोटिस जारी किए। उनसे अपनी नागरिकता साबित करने के लिए वैध दस्तावेज दिखाने को कहा गया और उन्होंने संबंधित अधिकारियों के सामने अपने दस्तावेज पेश भी किए।'
अररिया में भी नहीं मिले विदेशी वोटर
अररिया के जिला मजिस्ट्रेट अनिल कुमार ने भी कहा कि मतदाता सूची में किसी भी विदेशी मूल के व्यक्ति का नाम नहीं है। उन्होंने कहा, 'हमने लगभग 1.4 लाख मतदाताओं के नाम अनुपस्थित, स्थानांतरित, मृत (एएसडी)' कॉलम से हटा दिए हैं और सभी राजनीतिक दलों को इसकी पूरी जानकारी दे दी गई है।' किशनगंज जिले के गलगलिया ब्लॉक की ग्राम प्रधान अनुपमा ठाकुर ने बताया कि विदेशी नागरिकों के मतदाता सूची में शामिल होने और चुनावों को प्रभावित करने का मुद्दा बेवजह तूल दिया गया। उन्होंने आगे बताया कि नेपाल से आई कुछ नवविवाहित दुल्हनों को छोड़कर, उनके इलाके में सभी के पास वैध पहचान पत्र थे। ठाकुरगंज विधानसभा क्षेत्र में SIR कोई मुद्दा नहीं है क्योंकि गलगलिया जैसे ब्लॉक सिर्फ सीमावर्ती भूगोल ही नहीं, बल्कि सीमावर्ती अर्थव्यवस्था भी हैं। ट्रक, मिनी-टेम्पो, पिक-अप वैन, बाइक—इस पट्टी में आवाजाही कोई दिखावटी काम नहीं है। यह रोजी-रोटी का सवाल है।
सतर्कता का डर नहीं, नौकरशाही का डर
निवासी सतर्कता का विरोध नहीं करते - लेकिन नौकरशाही की प्रतिक्रिया से डरते हैं। अनुपमा ठाकुर ने कहा कि जब सीमा पर जांच होती है तो व्यापार प्रभावित होता है। ठाकुरगंज निवासी बच्च राज (35) ने कहा कि लोगों की मांग सीधी-सी है: सुरक्षा को दक्षता के साथ जोड़ें। 'हर बार जब बाड़ के उस पार कोई डर हो, तो व्यापार बंद न करें। और, अनावश्यक सांप्रदायिक दहशत न फैलाएं। SIR को लेकर बहुत ज्यादा प्रचार किया गया था।'
किशनगंज की समस्या समझिए
समस्या का एक कारण यह है कि किशनगंज के कई लोग उत्तर बंगाल के चाय बागानों में काम करते हैं। किशनगंज के एक चाय की दुकान चलाने वाले मोहम्मद हाफिज (45) ने कहा, 'युवाओं, खासकर डिप्लोमा धारकों और इंटरमीडिएट पास लड़कों के लिए, स्थानीय श्रम बाजार पहाड़ों के साथ सिकुड़ता जा रहा है। यहां नौकरी कोई नारा नहीं है। नौकरी सचमुच सीमा के खुले या बंद होने के बीच का अंतर है।'
नेपाल के रिश्तेदार, बंगाल की नौकरी और बिहार का पता
'यह एक ऐसा जिला है जहां कई परिवार तीन हकीकतों में उलझे रहते हैं—नेपाल के रिश्तेदार, बंगाल की नौकरी और बिहार का पता। दस्तावेज अक्सर बिखरे हुए होते हैं। इस साल जब बीएलओ और अधिकारियों ने अतिरिक्त सत्यापन शुरू किया, तो जानकारी से ज़्यादा अफवाहें फैलीं। इस बार किसी का नाम कट गया तो—गलगलिया में बार-बार यही वाक्य सुनाई देता था। लेकिन खुदा का शुक्र है कि कुछ बुरा नहीं हुआ।' गलगलिया में एक जूते की दुकान चलाने वाले मोहम्मद इस्लामुद्दीन (55) ने बताया।
किशनगंज में बाढ़ बड़ा मुद्दा
किशनगंज के एक पुस्तक विक्रेता मोहम्मद मिंतुल्लाह ने कहा, पूरे किशनगंज जिले में एसआईआर से भी अधिक गंभीर मुद्दे हैं। महानंदा और कनकई (नदियां) बार-बार हमारी छोटी-छोटी सड़कों को नुकसान पहुंचाती रही हैं, तटबंधों को निगलती रही हैं और हमारी नसों को झकझोरती रही हैं। हर मानसून में, ठाकुरगंज और पोठिया ब्लॉक में यही दहशत फैल जाती है। यहां के ग्रामीण बड़ी परियोजनाओं की मांग भी नहीं कर रहे हैं। वे पानी बढ़ने से पहले बाढ़ निरोधक काम की मांग कर रहे हैं, जैसे पत्थर गाड़ना, बांधों को मजबूत करना, दरारों को रोकना। उन्होंने कहा कि यहां के लोग चाहते हैं कि सरकार तटबंधों पर अभी काम करे, न कि नतीजों के बाद।
किशनगंज में नहीं मिला एक भी विदेशी वोटर
लेकिन किशनगंज के जिला मजिस्ट्रेट विशाल राज ने कहा कि एसआईआर के दौरान, संदिग्ध विदेशी मूल का कोई भी मतदाता नहीं मिला। उन्होंने कहा, 'हमने कुछ मतदाताओं को संदिग्ध निवास के आधार पर नोटिस जारी किए। उनसे अपनी नागरिकता साबित करने के लिए वैध दस्तावेज दिखाने को कहा गया और उन्होंने संबंधित अधिकारियों के सामने अपने दस्तावेज पेश भी किए।'
अररिया में भी नहीं मिले विदेशी वोटर
अररिया के जिला मजिस्ट्रेट अनिल कुमार ने भी कहा कि मतदाता सूची में किसी भी विदेशी मूल के व्यक्ति का नाम नहीं है। उन्होंने कहा, 'हमने लगभग 1.4 लाख मतदाताओं के नाम अनुपस्थित, स्थानांतरित, मृत (एएसडी)' कॉलम से हटा दिए हैं और सभी राजनीतिक दलों को इसकी पूरी जानकारी दे दी गई है।' किशनगंज जिले के गलगलिया ब्लॉक की ग्राम प्रधान अनुपमा ठाकुर ने बताया कि विदेशी नागरिकों के मतदाता सूची में शामिल होने और चुनावों को प्रभावित करने का मुद्दा बेवजह तूल दिया गया। उन्होंने आगे बताया कि नेपाल से आई कुछ नवविवाहित दुल्हनों को छोड़कर, उनके इलाके में सभी के पास वैध पहचान पत्र थे। ठाकुरगंज विधानसभा क्षेत्र में SIR कोई मुद्दा नहीं है क्योंकि गलगलिया जैसे ब्लॉक सिर्फ सीमावर्ती भूगोल ही नहीं, बल्कि सीमावर्ती अर्थव्यवस्था भी हैं। ट्रक, मिनी-टेम्पो, पिक-अप वैन, बाइक—इस पट्टी में आवाजाही कोई दिखावटी काम नहीं है। यह रोजी-रोटी का सवाल है।
सतर्कता का डर नहीं, नौकरशाही का डर
निवासी सतर्कता का विरोध नहीं करते - लेकिन नौकरशाही की प्रतिक्रिया से डरते हैं। अनुपमा ठाकुर ने कहा कि जब सीमा पर जांच होती है तो व्यापार प्रभावित होता है। ठाकुरगंज निवासी बच्च राज (35) ने कहा कि लोगों की मांग सीधी-सी है: सुरक्षा को दक्षता के साथ जोड़ें। 'हर बार जब बाड़ के उस पार कोई डर हो, तो व्यापार बंद न करें। और, अनावश्यक सांप्रदायिक दहशत न फैलाएं। SIR को लेकर बहुत ज्यादा प्रचार किया गया था।'
किशनगंज की समस्या समझिए
समस्या का एक कारण यह है कि किशनगंज के कई लोग उत्तर बंगाल के चाय बागानों में काम करते हैं। किशनगंज के एक चाय की दुकान चलाने वाले मोहम्मद हाफिज (45) ने कहा, 'युवाओं, खासकर डिप्लोमा धारकों और इंटरमीडिएट पास लड़कों के लिए, स्थानीय श्रम बाजार पहाड़ों के साथ सिकुड़ता जा रहा है। यहां नौकरी कोई नारा नहीं है। नौकरी सचमुच सीमा के खुले या बंद होने के बीच का अंतर है।'
नेपाल के रिश्तेदार, बंगाल की नौकरी और बिहार का पता
'यह एक ऐसा जिला है जहां कई परिवार तीन हकीकतों में उलझे रहते हैं—नेपाल के रिश्तेदार, बंगाल की नौकरी और बिहार का पता। दस्तावेज अक्सर बिखरे हुए होते हैं। इस साल जब बीएलओ और अधिकारियों ने अतिरिक्त सत्यापन शुरू किया, तो जानकारी से ज़्यादा अफवाहें फैलीं। इस बार किसी का नाम कट गया तो—गलगलिया में बार-बार यही वाक्य सुनाई देता था। लेकिन खुदा का शुक्र है कि कुछ बुरा नहीं हुआ।' गलगलिया में एक जूते की दुकान चलाने वाले मोहम्मद इस्लामुद्दीन (55) ने बताया।
किशनगंज में बाढ़ बड़ा मुद्दा
किशनगंज के एक पुस्तक विक्रेता मोहम्मद मिंतुल्लाह ने कहा, पूरे किशनगंज जिले में एसआईआर से भी अधिक गंभीर मुद्दे हैं। महानंदा और कनकई (नदियां) बार-बार हमारी छोटी-छोटी सड़कों को नुकसान पहुंचाती रही हैं, तटबंधों को निगलती रही हैं और हमारी नसों को झकझोरती रही हैं। हर मानसून में, ठाकुरगंज और पोठिया ब्लॉक में यही दहशत फैल जाती है। यहां के ग्रामीण बड़ी परियोजनाओं की मांग भी नहीं कर रहे हैं। वे पानी बढ़ने से पहले बाढ़ निरोधक काम की मांग कर रहे हैं, जैसे पत्थर गाड़ना, बांधों को मजबूत करना, दरारों को रोकना। उन्होंने कहा कि यहां के लोग चाहते हैं कि सरकार तटबंधों पर अभी काम करे, न कि नतीजों के बाद।
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