मिस्टर इंडिया और सुपर मॉडल रहे रजनीश दुग्गल के लिए भले एक्टर बनने की राह आसान रही हो, मगर हीरो बनने के बाद अभिनेता के रूप में सर्वाइव करना आसान नहीं था, मगर इसके बावजूद '1920', 'एक पहेली लीला', 'डेंजरस इश्क', 'वजह तुम हो' जैसी कई फिल्मों के साथ-साथ ओटीटी और टीवी शोज में नजर आने वाले रजनीश इंडस्ट्री में लगभग 20 साल बिता चुके हैं। इन दिनों वे चर्चा में हैं, 'उदयपुर फाइल्स, कन्हैयालाल टेलर मर्डर केस' से। फिल्म विवादों में है और इसकी रिलीज पर रोक लगाने की मांग की जा रही है। रजनीश से एक खास बातचीत।
आम तौर पर जब इस तरह के विवादास्पद विषय पर फिल्में बनती हैं, तो उन्हें एजेंडा बेस्ड फिल्म कहा जाता है। आपकी हालिया फिल्म 'उदयपुर फाइल्स, कन्हैयालाल टेलर मर्डर केस' पर भी यही आरोप लग रहा है कि बहती गंगा में हाथ धोने की कोशिश है?
- जब मुझे इस भूमिका का प्रस्ताव मिला और रोल को लेकर कॉल आया, तो मुझे भी यही लगा। मैंने डायरेक्टर और लेखक से पूछा कि कहीं ये फिल्म प्रोपेगेंडा वाले जोन में तो नहीं जा रही है? आप अगर उस रीजन से मुझे फिल्म की कहानी सुना रहे हैं, तो मत सुनाइए। उन्होंने बताया कि वे सच बताना चाहते हैं और इस फिल्म में कन्हैयालाल का परिवार भी शामिल है। वो लोग भी इस फिल्म से जुड़े हुए हैं। उनका बेटा आज भी केस लड़ रहा है और तब मैं इस फिल्म की कहानी को सुनने को राजी हुआ। जब मैंने इस कहानी को सुना तो मुझे अच्छी लगी। मैं इस फिल्म में इंटेलिजेंस ब्यूरो चीफ की भूमिका निभा रहा हूं। मेरे किरदार का नाम ईश्वर सिंह है। यह एक काइयां और बहुत ही चतुर पुलिस वाला है, जो सच के पक्ष में लड़ाई लड़ रहा है। मैंने कहानी पर रिसर्च रिसर्च की, क्योंकि मैं जानता था कि ये विवादस्पद स्पेस में जा सकती है। 2022 में हुए इस हादसे ने हर किसी को हिला कर रख दिया था। मेरा कंसर्न यही था कि फिल्म सच्चाई की तरफ हो। फिल्म तीन भागों में शूट हुई है। मेरे पास जब ये रोल आया फिल्म का पहला भाग शूट हो चुका था।
फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है। याचिकाकर्ता का कहना है कि इस फिल्म से धार्मिक सौहार्द को चोट पहुंचने की आशंका है?
-इस मुद्दे पर मैं यही कहना चाहूंगा कि मैंने एक एक्टर के रूप में अपना पार्ट अदा किया है। फिल्म के जरिए सच्चाई को सामने रखने की कोशिश है। अब जब इस तरह के विषय पर फिल्म बनती है, तो कुछ लोगों के हर्ट होने की संभावना तो रहती ही है, ख़ास तौर पर उन लोगों के, जो सुनी-सुनाई बात पर यकीन करते हैं। मगर फिल्म का मकसद किसी की भावनाओं को आहत करना नहीं है। मैं दर्शकों से यही कहूंगा कि पहले फिल्म देखें, उसके बाद उसे जज करें।
आपकी फिल्म सिनेमाघरों में रिलीज होने जा रही है, मगर न दिनों थिएटर में लोग आ ही नहीं रहे, क्या इस बात को लेकर आप परेशान हैं?
- देखिए, वो तनाव तो हर फिल्म के साथ होता है। मैं मानता हूं कि बीते दिनों में ऐसी कई फ़िल्में आईं हैं, जिनकी धुंआधार पब्लिसिटी हुई, मगर वे बॉक्स पर पर टिक नहीं पाईं। उस पर तुर्रा ये कि आज कल सभी को लगता है कि वो थिएटर वाली फिल्म को महीने भर बाद ओटीटी में तो देख ही सकते हैं। इन सारे कारणों से नर्वसनेस तो रहती ही है, मगर मैं चाहता हूं कि लोग घरों से निकल कर थिएटर में आएं। फिल्में चलें और इंडस्ट्री सर्वाइव करे।
आपके शुरुआती दिनों की बात करूं, एक जमाने आप तो एक सेल्समैन भी रहे, तब क्या किसी ने आपकी कद काठ देख कर कहा था, ये तो हीरो बनेगा?
-(हंसते हैं) हां, ऐसा हुआ है मेरे साथ। मैं उस वक्त 12 वीं पास करके निकला था। साढ़े 17 साल का रहा होऊंगा। दिल्ली के कश्मीरी गेट पर मैं बॉल बियरिंग बेचा करता था। एक दिन मैं दुकान पर बॉल बियरिंग सेल कर रहा था कि निर्देशक आनंद कुमार वहां से गुजरे और आगे चलकर वे मुड़कर मेरे पास आए और बोले, क्या तुझे ये बात किसी ने बताई कि तू रिचर्ड गियर (हॉलिवुड अभिनेता) की तरह लगता है। मैं तो शरमा गया। वे आगे बोले, 'तुझे तो फिल्मों में होना चाहिए' सालों बाद जब एक बार वे मुझे मुंबई में मिले तो बोले, 'मैंने तुझसे कहा था ना कि तू हीरो बनेगा।'
आपने करियर की शुरुआत सुपर मॉडल के रूप में की, '1920' जैसी सुपर हिट फिल्म दी, टीवी और ओटीटी पर भी बहुत सारा काम किया, मगर आपके फैंस को लगता है कि आपका बेस्ट आना अभी बाकी है? आपको ड्यू नहीं मिला?
-मुझे ये नहीं लगता कि मुझे ड्यू नहीं मिला, मगर हां, मेरा बेस्ट आना अभी बाकी है। अगर मैं ये सोचूं कि मुझे ड्यू नहीं मिला, तो मैं डिप्रेस हो जाऊंगा। मुझे दुख होगा, तो मैं यही सोचता हूं कि मेरे अंदर बहुत कुछ ऐसा है, जो अभी तक बाहर नहीं आया है। ये सोच मुझे खुशी देती है। जब मैं कोई प्रोजेक्ट साइन करता हूं, तो एक बच्चे और नौसिखिए की तरह उस में जुट जाता हूं। जब तक आप में वो एनर्जी रहती है, तब तक आपको लगता है कि आप बहुत कुछ कर सकते हैं। जिस दिन वो एनर्जी खत्म हो गई, समझो आप चुक गए। जब भी मैं कुछ उस तरह के प्रतिभावान निर्देशकों के साथ काम करूंगा, मेरा बेस्ट बाहर आएगा। पाइपलाइन में ऐसा काम है, जो जल्द ही दर्शकों तक पहुंचेगा।
मिस्टर इंडिया का खिताब हासिल करके सुपर मॉडल बनना निसंदेह बड़ी बात रही होगी, मगर एक मॉडल का एक्टर बनना आसान था?
-बिल्कुल भी नहीं। मेरी पहली फिल्म आई 1920, ये फिल्म सुपरहिट रही, मगर मुझे और अदा श्रम को लेकर कई ऐसे कमेंट्स थे, जिसके कारण मैं न केवल दुखी हुआ बल्कि मुझे गुस्सा भी बहुत आया। मेरे बारे में क्रिटिक्स ने लिखा, वूडन, इसको एक्टिंग नहीं आती। मैं तो सदमे में आ गया। तीसरी फिल्म में मेरे बारे में कहा गया, मोनो एक्टर (एक ही तरह का एक्सप्रेशन देने वाला अभिनेता) बहुत बुरा लगा, मगर फिर मैंने खुद पर ध्यान देना शुरू किया कि मेरे बारे में ऐसा क्यों लिखा जा रहा है? तब मुझे अहसास हुआ कि जिस पर्टिक्युलर कैंप में मैं काम कर रहा हूं, वो मुझे उस ज़ोन से बाहर ही नहीं आने देना चाहते थे। मैं अपने अभिनय को डेप्थ भी देना चाहता, तो वो मुझे करने नहीं देते थे। वो मेरे सुपर मॉडल की इमेज को भुनाना चाहते थे। फिर मैंने कैंप बदला। अजय देवगन के साथ स्टेज पर रामलीला किया। फिर मैंने अलग ज़ोन की फिल्में भी कीं। जिस साल मैं लॉन्च हुआ था, उस साल मेरे साथ 28 नए चेहरे लॉन्च हुए थे। उसके एक साल पहले हरमन बावेजा, इमरान खान, मुज्जमिल इब्राहिम जैसे टैलेंट आए थे, जबकि मेरे साथ फरहान अख्तर आए थे। मगर उनमें से गिने-चुने लोग ही हैं, जो टिक पाए, तो मुझे लगता है, मैंने जितना भी काम किया, कुछ तो सही किया होगा, तो टिका हुआ हूं। 1919 -20 के दौर में मैं अभिनेता के रूप में संवरा और निखरा।
क्या कभी ये खलिश होती है कि काश मैं इंडस्ट्री से ताल्लुक रखता होता, तो किस्मत कुछ और होती?
-मानता हूं कि जब आप इनसाइडर होते हैं, तो फायदा तो होता है। आपके दादा और पापा ने जो नाम बनाया है, वो तो चाहेंगे ही कि उसका लाभ उनकी आगे की जनरेशन को मिले, मगर उससे बड़ा फायदा ये होता है कि आपको डिनर और ब्रेकफास्ट टेबल पर टिप्स मिलते हैं। इनसाइडर को फ़िल्मी दुनिया के आदाब-अदब का पता होता है। उन्हें महीने का रेंट भरने की टेंशन नहीं होती। उनको ये टेंसन नहीं होती कि मैनेजर लें या न लें। पीआर किस्से कराएं। आम तौर पर जिन बेसिक चीजों से एक एक्टर को संघर्ष करते हुए आगे बढ़ना पड़ता है, वो काफी हद तक आउटसाइडर्स को तोड़ देती है। मगर वो सारी जानकारी और सहूलियत इंडस्ट्री चाइल्ड को मिलती है। मगर फिर मेहनत तो आपको भी करनी पड़ती है और उन्हें भी। हां उन्हें अगर दस चांस में मिलते हैं, तो आपको एक। मगर मैं इसमें किसी को दोष नहीं देता। कल को अगर मेरा कोई अपना इस इंडस्ट्री में आएगा, तो मैं भी उसे सपोर्ट तो करूंगा ही।
प्रलोभन वाली फिल्म इंडस्ट्री में एक फैमिली मैन कैसे बने रह पाए? हालांकि अपनी कई फिल्मों में आपने भी अंतरंग और चुंबन दृश्य किए हैं?
-देखिए, जब आप एक अभिनेता होते हैं और आपको इस तरह के किसिंग सीन करने पड़ें, तो वो स्पेस यकीनन आसान नहीं होती। एक फिल्म थी, वजह तुम हो, जिसमें मैंने एक गाना किया था, 'मोहब्बत बरसा देना तू' और मेरी फिल्म लीला में मैंने इंटिमेट सीन किए थे। जब भी इस तरह की फ़िल्में आती थी, मेरा और पल्लवी (उनकी पत्नी) की बहस होती थी, झगड़ा होता था। फिर मैंने उनकी जगह खुद को रखकर सोचा और तय किया कि अब पर्दे पर किसिंग सीन नहीं करूंगा। मैंने मर्डर और खालिद मोहम्मद की फिल्म इसी तरह के किसिंग और इंटिमेट सीन्स के कारण नकार दी थी। मैं अपने परिवार और पत्नी से बहुत प्रेम करता हूं, उनकी क़द्र करता हूं।
आम तौर पर जब इस तरह के विवादास्पद विषय पर फिल्में बनती हैं, तो उन्हें एजेंडा बेस्ड फिल्म कहा जाता है। आपकी हालिया फिल्म 'उदयपुर फाइल्स, कन्हैयालाल टेलर मर्डर केस' पर भी यही आरोप लग रहा है कि बहती गंगा में हाथ धोने की कोशिश है?
- जब मुझे इस भूमिका का प्रस्ताव मिला और रोल को लेकर कॉल आया, तो मुझे भी यही लगा। मैंने डायरेक्टर और लेखक से पूछा कि कहीं ये फिल्म प्रोपेगेंडा वाले जोन में तो नहीं जा रही है? आप अगर उस रीजन से मुझे फिल्म की कहानी सुना रहे हैं, तो मत सुनाइए। उन्होंने बताया कि वे सच बताना चाहते हैं और इस फिल्म में कन्हैयालाल का परिवार भी शामिल है। वो लोग भी इस फिल्म से जुड़े हुए हैं। उनका बेटा आज भी केस लड़ रहा है और तब मैं इस फिल्म की कहानी को सुनने को राजी हुआ। जब मैंने इस कहानी को सुना तो मुझे अच्छी लगी। मैं इस फिल्म में इंटेलिजेंस ब्यूरो चीफ की भूमिका निभा रहा हूं। मेरे किरदार का नाम ईश्वर सिंह है। यह एक काइयां और बहुत ही चतुर पुलिस वाला है, जो सच के पक्ष में लड़ाई लड़ रहा है। मैंने कहानी पर रिसर्च रिसर्च की, क्योंकि मैं जानता था कि ये विवादस्पद स्पेस में जा सकती है। 2022 में हुए इस हादसे ने हर किसी को हिला कर रख दिया था। मेरा कंसर्न यही था कि फिल्म सच्चाई की तरफ हो। फिल्म तीन भागों में शूट हुई है। मेरे पास जब ये रोल आया फिल्म का पहला भाग शूट हो चुका था।
फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है। याचिकाकर्ता का कहना है कि इस फिल्म से धार्मिक सौहार्द को चोट पहुंचने की आशंका है?
-इस मुद्दे पर मैं यही कहना चाहूंगा कि मैंने एक एक्टर के रूप में अपना पार्ट अदा किया है। फिल्म के जरिए सच्चाई को सामने रखने की कोशिश है। अब जब इस तरह के विषय पर फिल्म बनती है, तो कुछ लोगों के हर्ट होने की संभावना तो रहती ही है, ख़ास तौर पर उन लोगों के, जो सुनी-सुनाई बात पर यकीन करते हैं। मगर फिल्म का मकसद किसी की भावनाओं को आहत करना नहीं है। मैं दर्शकों से यही कहूंगा कि पहले फिल्म देखें, उसके बाद उसे जज करें।
आपकी फिल्म सिनेमाघरों में रिलीज होने जा रही है, मगर न दिनों थिएटर में लोग आ ही नहीं रहे, क्या इस बात को लेकर आप परेशान हैं?
- देखिए, वो तनाव तो हर फिल्म के साथ होता है। मैं मानता हूं कि बीते दिनों में ऐसी कई फ़िल्में आईं हैं, जिनकी धुंआधार पब्लिसिटी हुई, मगर वे बॉक्स पर पर टिक नहीं पाईं। उस पर तुर्रा ये कि आज कल सभी को लगता है कि वो थिएटर वाली फिल्म को महीने भर बाद ओटीटी में तो देख ही सकते हैं। इन सारे कारणों से नर्वसनेस तो रहती ही है, मगर मैं चाहता हूं कि लोग घरों से निकल कर थिएटर में आएं। फिल्में चलें और इंडस्ट्री सर्वाइव करे।
आपके शुरुआती दिनों की बात करूं, एक जमाने आप तो एक सेल्समैन भी रहे, तब क्या किसी ने आपकी कद काठ देख कर कहा था, ये तो हीरो बनेगा?
-(हंसते हैं) हां, ऐसा हुआ है मेरे साथ। मैं उस वक्त 12 वीं पास करके निकला था। साढ़े 17 साल का रहा होऊंगा। दिल्ली के कश्मीरी गेट पर मैं बॉल बियरिंग बेचा करता था। एक दिन मैं दुकान पर बॉल बियरिंग सेल कर रहा था कि निर्देशक आनंद कुमार वहां से गुजरे और आगे चलकर वे मुड़कर मेरे पास आए और बोले, क्या तुझे ये बात किसी ने बताई कि तू रिचर्ड गियर (हॉलिवुड अभिनेता) की तरह लगता है। मैं तो शरमा गया। वे आगे बोले, 'तुझे तो फिल्मों में होना चाहिए' सालों बाद जब एक बार वे मुझे मुंबई में मिले तो बोले, 'मैंने तुझसे कहा था ना कि तू हीरो बनेगा।'
आपने करियर की शुरुआत सुपर मॉडल के रूप में की, '1920' जैसी सुपर हिट फिल्म दी, टीवी और ओटीटी पर भी बहुत सारा काम किया, मगर आपके फैंस को लगता है कि आपका बेस्ट आना अभी बाकी है? आपको ड्यू नहीं मिला?
-मुझे ये नहीं लगता कि मुझे ड्यू नहीं मिला, मगर हां, मेरा बेस्ट आना अभी बाकी है। अगर मैं ये सोचूं कि मुझे ड्यू नहीं मिला, तो मैं डिप्रेस हो जाऊंगा। मुझे दुख होगा, तो मैं यही सोचता हूं कि मेरे अंदर बहुत कुछ ऐसा है, जो अभी तक बाहर नहीं आया है। ये सोच मुझे खुशी देती है। जब मैं कोई प्रोजेक्ट साइन करता हूं, तो एक बच्चे और नौसिखिए की तरह उस में जुट जाता हूं। जब तक आप में वो एनर्जी रहती है, तब तक आपको लगता है कि आप बहुत कुछ कर सकते हैं। जिस दिन वो एनर्जी खत्म हो गई, समझो आप चुक गए। जब भी मैं कुछ उस तरह के प्रतिभावान निर्देशकों के साथ काम करूंगा, मेरा बेस्ट बाहर आएगा। पाइपलाइन में ऐसा काम है, जो जल्द ही दर्शकों तक पहुंचेगा।
मिस्टर इंडिया का खिताब हासिल करके सुपर मॉडल बनना निसंदेह बड़ी बात रही होगी, मगर एक मॉडल का एक्टर बनना आसान था?
-बिल्कुल भी नहीं। मेरी पहली फिल्म आई 1920, ये फिल्म सुपरहिट रही, मगर मुझे और अदा श्रम को लेकर कई ऐसे कमेंट्स थे, जिसके कारण मैं न केवल दुखी हुआ बल्कि मुझे गुस्सा भी बहुत आया। मेरे बारे में क्रिटिक्स ने लिखा, वूडन, इसको एक्टिंग नहीं आती। मैं तो सदमे में आ गया। तीसरी फिल्म में मेरे बारे में कहा गया, मोनो एक्टर (एक ही तरह का एक्सप्रेशन देने वाला अभिनेता) बहुत बुरा लगा, मगर फिर मैंने खुद पर ध्यान देना शुरू किया कि मेरे बारे में ऐसा क्यों लिखा जा रहा है? तब मुझे अहसास हुआ कि जिस पर्टिक्युलर कैंप में मैं काम कर रहा हूं, वो मुझे उस ज़ोन से बाहर ही नहीं आने देना चाहते थे। मैं अपने अभिनय को डेप्थ भी देना चाहता, तो वो मुझे करने नहीं देते थे। वो मेरे सुपर मॉडल की इमेज को भुनाना चाहते थे। फिर मैंने कैंप बदला। अजय देवगन के साथ स्टेज पर रामलीला किया। फिर मैंने अलग ज़ोन की फिल्में भी कीं। जिस साल मैं लॉन्च हुआ था, उस साल मेरे साथ 28 नए चेहरे लॉन्च हुए थे। उसके एक साल पहले हरमन बावेजा, इमरान खान, मुज्जमिल इब्राहिम जैसे टैलेंट आए थे, जबकि मेरे साथ फरहान अख्तर आए थे। मगर उनमें से गिने-चुने लोग ही हैं, जो टिक पाए, तो मुझे लगता है, मैंने जितना भी काम किया, कुछ तो सही किया होगा, तो टिका हुआ हूं। 1919 -20 के दौर में मैं अभिनेता के रूप में संवरा और निखरा।
क्या कभी ये खलिश होती है कि काश मैं इंडस्ट्री से ताल्लुक रखता होता, तो किस्मत कुछ और होती?
-मानता हूं कि जब आप इनसाइडर होते हैं, तो फायदा तो होता है। आपके दादा और पापा ने जो नाम बनाया है, वो तो चाहेंगे ही कि उसका लाभ उनकी आगे की जनरेशन को मिले, मगर उससे बड़ा फायदा ये होता है कि आपको डिनर और ब्रेकफास्ट टेबल पर टिप्स मिलते हैं। इनसाइडर को फ़िल्मी दुनिया के आदाब-अदब का पता होता है। उन्हें महीने का रेंट भरने की टेंशन नहीं होती। उनको ये टेंसन नहीं होती कि मैनेजर लें या न लें। पीआर किस्से कराएं। आम तौर पर जिन बेसिक चीजों से एक एक्टर को संघर्ष करते हुए आगे बढ़ना पड़ता है, वो काफी हद तक आउटसाइडर्स को तोड़ देती है। मगर वो सारी जानकारी और सहूलियत इंडस्ट्री चाइल्ड को मिलती है। मगर फिर मेहनत तो आपको भी करनी पड़ती है और उन्हें भी। हां उन्हें अगर दस चांस में मिलते हैं, तो आपको एक। मगर मैं इसमें किसी को दोष नहीं देता। कल को अगर मेरा कोई अपना इस इंडस्ट्री में आएगा, तो मैं भी उसे सपोर्ट तो करूंगा ही।
प्रलोभन वाली फिल्म इंडस्ट्री में एक फैमिली मैन कैसे बने रह पाए? हालांकि अपनी कई फिल्मों में आपने भी अंतरंग और चुंबन दृश्य किए हैं?
-देखिए, जब आप एक अभिनेता होते हैं और आपको इस तरह के किसिंग सीन करने पड़ें, तो वो स्पेस यकीनन आसान नहीं होती। एक फिल्म थी, वजह तुम हो, जिसमें मैंने एक गाना किया था, 'मोहब्बत बरसा देना तू' और मेरी फिल्म लीला में मैंने इंटिमेट सीन किए थे। जब भी इस तरह की फ़िल्में आती थी, मेरा और पल्लवी (उनकी पत्नी) की बहस होती थी, झगड़ा होता था। फिर मैंने उनकी जगह खुद को रखकर सोचा और तय किया कि अब पर्दे पर किसिंग सीन नहीं करूंगा। मैंने मर्डर और खालिद मोहम्मद की फिल्म इसी तरह के किसिंग और इंटिमेट सीन्स के कारण नकार दी थी। मैं अपने परिवार और पत्नी से बहुत प्रेम करता हूं, उनकी क़द्र करता हूं।
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