नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने उस शख्स के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले को रद्द करने से इनकार कर दिया, जिस पर बाबरी मस्जिद को लेकर सोशल मीडिया पोस्ट करने का आरोप है। आरोपी ने अपनी पोस्ट में बाबरी मस्जिद को बनाए जाने को लेकर एक आपत्तिजनक पोस्ट लिखी थी। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमल्य बागची की बेंच ने एडवोकेट तल्हा अब्दुल रहमान (याचिकाकर्ता की ओर से) की दलीलें सुनने के बाद मामला रद्द करने से इनकार कर दिया। इस दौरान याची ने मामला वापस लेने की गुहार लगाई। कोर्ट ने मामला वापस लेने की इजाजत देते हुए याचिका को खारिज कर दिया।
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल की पोस्ट में कोई अश्लीलता नहीं थी। उन्होंने कहा कि एक अन्य व्यक्ति ने उस पोस्ट पर अश्लील और भड़काऊ टिप्पणी की थी, जिसकी जांच नहीं की गई। जस्टिस सूर्यकांत की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता की पोस्ट को देखा है और टिप्पणी करते हुए चेतावनी दी कि हमसे कोई टिप्पणी करवाने की कोशिश मत कीजिए। अदालत ने यह कहते हुए मामला निपटा दिया कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए सभी तर्कों पर ट्रायल कोर्ट अपने विवेक से विचार करेगा।
गौरतलब है कि 6 अगस्त 2020 को याचिकाकर्ता मंसूरी (जो अब कानून स्नातक हैं) के खिलाफ केस दर्ज किया गया था। उन पर आरोप था कि उन्होंने फेसबुक पर एक अपमानजनक पोस्ट की थी, जिस पर एक अन्य शख्स ने हिंदू देवी-देवताओं के खिलाफ अभद्र टिप्पणी की।
एफआईआर भारतीय दंड संहिता की धारा 153A, 292, 505(2), 506, 509 और सूचना प्रौद्योगिकी (संशोधन) अधिनियम, 2008 की धारा 67 के तहत दर्ज की गई थी। बाद में लखीमपुर खीरी के जिलाधिकारी ने उनके खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA), 1980 के तहत नजरबंदी का आदेश जारी किया, जिसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सितंबर 2021 में रद्द कर दिया।
इस वर्ष, ट्रायल कोर्ट ने मंसूरी के खिलाफ दायर चार्जशीट पर संज्ञान लिया, जिसके बाद उन्होंने मामले को रद्द करने के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। मंसूरी का कहना था कि उनका अकाउंट हैक कर लिया गया था और उनकी पोस्ट में कोई आपराधिक भावना या सांप्रदायिक वैमनस्य फैलाने का उद्देश्य नहीं था।
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल की पोस्ट में कोई अश्लीलता नहीं थी। उन्होंने कहा कि एक अन्य व्यक्ति ने उस पोस्ट पर अश्लील और भड़काऊ टिप्पणी की थी, जिसकी जांच नहीं की गई। जस्टिस सूर्यकांत की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता की पोस्ट को देखा है और टिप्पणी करते हुए चेतावनी दी कि हमसे कोई टिप्पणी करवाने की कोशिश मत कीजिए। अदालत ने यह कहते हुए मामला निपटा दिया कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए सभी तर्कों पर ट्रायल कोर्ट अपने विवेक से विचार करेगा।
गौरतलब है कि 6 अगस्त 2020 को याचिकाकर्ता मंसूरी (जो अब कानून स्नातक हैं) के खिलाफ केस दर्ज किया गया था। उन पर आरोप था कि उन्होंने फेसबुक पर एक अपमानजनक पोस्ट की थी, जिस पर एक अन्य शख्स ने हिंदू देवी-देवताओं के खिलाफ अभद्र टिप्पणी की।
एफआईआर भारतीय दंड संहिता की धारा 153A, 292, 505(2), 506, 509 और सूचना प्रौद्योगिकी (संशोधन) अधिनियम, 2008 की धारा 67 के तहत दर्ज की गई थी। बाद में लखीमपुर खीरी के जिलाधिकारी ने उनके खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA), 1980 के तहत नजरबंदी का आदेश जारी किया, जिसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सितंबर 2021 में रद्द कर दिया।
इस वर्ष, ट्रायल कोर्ट ने मंसूरी के खिलाफ दायर चार्जशीट पर संज्ञान लिया, जिसके बाद उन्होंने मामले को रद्द करने के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। मंसूरी का कहना था कि उनका अकाउंट हैक कर लिया गया था और उनकी पोस्ट में कोई आपराधिक भावना या सांप्रदायिक वैमनस्य फैलाने का उद्देश्य नहीं था।
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