पटनाः प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहली चुनावी रैली का श्रीगणेश कर्पूरीग्राम से होना, एक बड़ा राजनीतिक संदेश है। वे अति पिछड़े वर्ग के मतदाताओं की भावनाओं को एक बार फिर झंकृत करना चाहते हैं। एक साल पहले ही नरेन्द्र मोदी की सरकार ने कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न से नवाजा था। कर्पूरी ठाकुर के पुत्र और केन्द्रीय मंत्री रामनाथ ठाकुर ने राष्ट्रपति भवन में इस पुरस्कार को ग्रहण किया था। मोदी सरकार का यह एक क्रांतिकारी फैसला था जिसने बिहार की सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था पर गहरा असर डाला। अति पिछड़ा समाज नरेन्द्र मोदी का प्रशंसक बन गया। लालू यादव और कांग्रेस की राजनीति बैकफुट पर चली गयी। एक साल बाद नरेन्द्र मोदी कर्पूरी ठाकुर की जन्मभूमि पहुंच कर इन्ही स्मृतियों को ताजा कर चुनावी लाभ लेना चाहते हैं।
कर्पूरी ग्राम की यात्रा हो सकती है निर्णायक
यह रैली बिहार चुनाव के लिए निर्णायक साबित हो सकती है। नरेन्द्र मोदी यह रैली बहुत कुछ प्रतिध्वनित करेगी। नरेन्द्र मोदी यह संदेश देना चाहेंगे कि जो काम समाजवादी आधार वाली वीपी सिंह की सरकार नहीं कर पायी उसे भाजपा सरकार ने मुमकिन कर दिखाया। जो काम 1996 में लालू के समर्थन से चलने वाली केन्द्र सरकार नहीं कर पायी उसे मोदी सरकार ने कर दिखाया। मोदी इस रैली से यह भी कहना चाहेंगे कि जिस कांग्रेस ने जननायक कर्पूरी ठाकुर को हमेशा अपमानित किया उसी कांग्रेस का साथी बन कर आज लालू यादव विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न प्रदान किये जाने के बाद नरेन्द्र मोदी ने लालू यादव पर राजनीतिक बढ़त हासिल कर ली है। अब इसको चुनाव में भुनाने की तैयारी है। नरेन्द्र मोदी कर्पूरी ठाकुर को याद कर अति पिछड़ा वोटरों को अपने पाले में करेंगे।
जननायक कर्पूरी ठाकुर
जननायक कर्पूरी ठाकुर सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन के अग्रदूत थे। अति पिछड़ा वर्ग से आने वाले कर्पूरी ठाकुर ने बिहार की राजनीति में अमिट छाप छोड़ी। अपनी सादगी, ईमानदारी और जनप्रतिबद्धता के कारण वे एक व्यक्ति से संस्था बन गये। तभी तो आज सभी दलों में खुद को कर्पूरी ठाकुर का अनुयायी बताने की होड़ लगी हुई है। अति पिछड़ी जातियों के प्रेरणा पुरुष कर्पूरी ठाकुर का नाम मौजूदा राजनीति में जातीय समीकरण को साधने का जरिया बन गया है। जब कर्पूरी ठाकुर जीवित थे तब उनको न केवल कांग्रेस ने बल्कि अपने दल (समाजवादी) के लोगों ने भी अपमानित किया था।
क्या लालू यादव ने कर्पूरी ठाकुर का अपमान किया?
अक्सर यह कहा जाता है कि अगड़ी जातियों ने कर्पूर ठाकुर का बहुत विरोध किया। लेकिन कर्पूरी ठाकुर ने एक बार खुद अपनी पीड़ा बताते हुए कहा था, अगर मैं यादव परिवार में पैदा हुआ रहता तो मुझे इतना अपमान नहीं सहना पड़ता। कहा जाता है जब 1985 के चुनाव के बाद कर्पूरी ठाकुर विपक्ष का नेता बने थे तब उन्हें लालू यादव कपटी ठाकुर कहा करते थे। लालू यादव ऊपर से तो कर्पूरी ठाकुर का सम्मान करते थे लेकिन अंदर से उनके खिलाफ रहते थे। 1987 में सत्तारुढ़ कांग्रेस ने साजिश रच कर कर्पूरी ठाकुर को नेता प्रतिपक्ष पद से हटा दिया था। इस साजिश में उनके दल के ही कुछ प्रभावशाली पिछड़े नेता भी शामिल थे।
कर्पूरी ठाकुर ने अति पिछड़ों के अधिकार को संरक्षित किया
लालू यादव ने कर्पूरी ठाकुर का नीतिगत विरोध भी किया। कर्पूरी ठाकुर ने सबसे पहले अति पिछड़े वर्ग के अधिकार को संरक्षित रखने के लिए कानूनी पहल की थी। 1977 में मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने 26 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया था। इस आरक्षण में पिछड़े वर्ग और अति पिछड़े वर्ग को दो भागों में बांटा गया था। कानू, कुम्हार, कहार, बढ़ाई जैसे अति पिछड़े वर्ग को 12 फीसदी और पिछड़े वर्ग (यादव, कुर्मी, कोइरी) को 8 फीसदी का आरक्षण दिया गया था।
जब लालू ने कर्पूरी आरक्षण को बदलने की कोशिश की
कर्पूरी आरक्षण का मकसद यह था कि पिछड़े वर्ग की मजबूत जातियां (यादव कुर्मी ,कोइरी) अति पिछड़े वर्ग की कमजोर जातियों का हक न मार सकें। लेकिन जब लालू यादव मुख्यमंत्री बने तो वे अति पिछड़े वर्ग को अलग से दिया गया 12 फीसदी का आरक्षण खत्म करना चाहते थे। वे सभी पिछड़े वर्ग को लिए कुल आरक्षण 20 फीसदी करना चाहते थे। ऐसा होने से अति पिछड़े वर्ग की हकमारी होती। नीतीश कुमार ने इसी बात पर लालू का यादव का विरोध किया था। आखिरकार 1994 में नीतीश इसी आरक्षण विवाद के कारण लालू से अलग हो गये। आज नीतीश कुमार अति पिछड़े वर्ग की राजनीति का सबसे बड़े पैरोकार बन गये हैं। नीतीश कुमार अब नरेन्द्र मोदी के साथ मिल कर अति पिछड़ा वर्ग की राजनीति को परवान चढ़ा रहे हैं।
कर्पूरी ग्राम की यात्रा हो सकती है निर्णायक
यह रैली बिहार चुनाव के लिए निर्णायक साबित हो सकती है। नरेन्द्र मोदी यह रैली बहुत कुछ प्रतिध्वनित करेगी। नरेन्द्र मोदी यह संदेश देना चाहेंगे कि जो काम समाजवादी आधार वाली वीपी सिंह की सरकार नहीं कर पायी उसे भाजपा सरकार ने मुमकिन कर दिखाया। जो काम 1996 में लालू के समर्थन से चलने वाली केन्द्र सरकार नहीं कर पायी उसे मोदी सरकार ने कर दिखाया। मोदी इस रैली से यह भी कहना चाहेंगे कि जिस कांग्रेस ने जननायक कर्पूरी ठाकुर को हमेशा अपमानित किया उसी कांग्रेस का साथी बन कर आज लालू यादव विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न प्रदान किये जाने के बाद नरेन्द्र मोदी ने लालू यादव पर राजनीतिक बढ़त हासिल कर ली है। अब इसको चुनाव में भुनाने की तैयारी है। नरेन्द्र मोदी कर्पूरी ठाकुर को याद कर अति पिछड़ा वोटरों को अपने पाले में करेंगे।
जननायक कर्पूरी ठाकुर
जननायक कर्पूरी ठाकुर सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन के अग्रदूत थे। अति पिछड़ा वर्ग से आने वाले कर्पूरी ठाकुर ने बिहार की राजनीति में अमिट छाप छोड़ी। अपनी सादगी, ईमानदारी और जनप्रतिबद्धता के कारण वे एक व्यक्ति से संस्था बन गये। तभी तो आज सभी दलों में खुद को कर्पूरी ठाकुर का अनुयायी बताने की होड़ लगी हुई है। अति पिछड़ी जातियों के प्रेरणा पुरुष कर्पूरी ठाकुर का नाम मौजूदा राजनीति में जातीय समीकरण को साधने का जरिया बन गया है। जब कर्पूरी ठाकुर जीवित थे तब उनको न केवल कांग्रेस ने बल्कि अपने दल (समाजवादी) के लोगों ने भी अपमानित किया था।
क्या लालू यादव ने कर्पूरी ठाकुर का अपमान किया?
अक्सर यह कहा जाता है कि अगड़ी जातियों ने कर्पूर ठाकुर का बहुत विरोध किया। लेकिन कर्पूरी ठाकुर ने एक बार खुद अपनी पीड़ा बताते हुए कहा था, अगर मैं यादव परिवार में पैदा हुआ रहता तो मुझे इतना अपमान नहीं सहना पड़ता। कहा जाता है जब 1985 के चुनाव के बाद कर्पूरी ठाकुर विपक्ष का नेता बने थे तब उन्हें लालू यादव कपटी ठाकुर कहा करते थे। लालू यादव ऊपर से तो कर्पूरी ठाकुर का सम्मान करते थे लेकिन अंदर से उनके खिलाफ रहते थे। 1987 में सत्तारुढ़ कांग्रेस ने साजिश रच कर कर्पूरी ठाकुर को नेता प्रतिपक्ष पद से हटा दिया था। इस साजिश में उनके दल के ही कुछ प्रभावशाली पिछड़े नेता भी शामिल थे।
कर्पूरी ठाकुर ने अति पिछड़ों के अधिकार को संरक्षित किया
लालू यादव ने कर्पूरी ठाकुर का नीतिगत विरोध भी किया। कर्पूरी ठाकुर ने सबसे पहले अति पिछड़े वर्ग के अधिकार को संरक्षित रखने के लिए कानूनी पहल की थी। 1977 में मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने 26 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया था। इस आरक्षण में पिछड़े वर्ग और अति पिछड़े वर्ग को दो भागों में बांटा गया था। कानू, कुम्हार, कहार, बढ़ाई जैसे अति पिछड़े वर्ग को 12 फीसदी और पिछड़े वर्ग (यादव, कुर्मी, कोइरी) को 8 फीसदी का आरक्षण दिया गया था।
जब लालू ने कर्पूरी आरक्षण को बदलने की कोशिश की
कर्पूरी आरक्षण का मकसद यह था कि पिछड़े वर्ग की मजबूत जातियां (यादव कुर्मी ,कोइरी) अति पिछड़े वर्ग की कमजोर जातियों का हक न मार सकें। लेकिन जब लालू यादव मुख्यमंत्री बने तो वे अति पिछड़े वर्ग को अलग से दिया गया 12 फीसदी का आरक्षण खत्म करना चाहते थे। वे सभी पिछड़े वर्ग को लिए कुल आरक्षण 20 फीसदी करना चाहते थे। ऐसा होने से अति पिछड़े वर्ग की हकमारी होती। नीतीश कुमार ने इसी बात पर लालू का यादव का विरोध किया था। आखिरकार 1994 में नीतीश इसी आरक्षण विवाद के कारण लालू से अलग हो गये। आज नीतीश कुमार अति पिछड़े वर्ग की राजनीति का सबसे बड़े पैरोकार बन गये हैं। नीतीश कुमार अब नरेन्द्र मोदी के साथ मिल कर अति पिछड़ा वर्ग की राजनीति को परवान चढ़ा रहे हैं।
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