नई दिल्ली : तेल निर्यातक देशों के संगठन (OPEC) ने बड़ी चेतावनी दी है। ओपेक ने कहा है कि अगर दुनिया ने उसकी चेतावनी को नजरअंदाज किया तो इसके नतीजे सबको भुगतने पड़ेंगे। ओपेक ने यह भी कहा है कि स्वच्छ ऊर्जा में बदलाव की जरूरत के साथ-साथ इसके लिए निवेश भी करना होगा। आइए-समझते हैं पूरी बात।
OPEC के महासचिव ने क्या की भविष्यवाणी
busenq.com पर छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, अपने साहसिक पूर्वानुमान में OPEC के महासचिव हैथम अल घैस ने सरकारों और इंडस्ट्री से 2050 तक तेल और गैस में 18.2 ट्रिलियन डॉलर का निवेश जुटाने की अपील की है। उनका तर्क है कि इस तरह के वित्तपोषण के बिना, स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन की महत्वाकांक्षाओं के बावजूद दुनिया को ऊर्जा की कमी का सामना करना पड़ सकता है।
2050 तक कुल एनर्जी में तेल का हिस्सा 30%
रिपोर्ट में अल घैस का मानना है कि ऊर्जा परिवर्तन में तेजी के बावजूद जीवाश्म ईंधन वैश्विक ऊर्जा मिश्रण के एक महत्वपूर्ण हिस्से पर कब्जा बनाए रखेंगे। उनके अनुमानों के अनुसार, 2050 तक तेल कुल ऊर्जा का लगभग 30% बना रहेगा और सदी के मध्य तक वैश्विक प्राथमिक ऊर्जा मांग में 23% की वृद्धि होगी।
पुराने तेल क्षेत्रों में घट रहा है प्रोडॅक्शन
ओपेक महासचिव अल घैस ने कहा कि वह डिमांड के पतन के पूर्वानुमानों को मजबूती से खारिज करते हैं और उन्हें अति आशावादी बताते हैं। उन्होंने कहा-यह जरूरी है कि ये निवेश हर जगह उपभोक्ताओं और उत्पादकों और समग्र रूप से वैश्विक अर्थव्यवस्था के प्रभावी संचालन के लिए किए जाएं। ओपेक के नजरिये से पुराने तेल क्षेत्रों से घटता उत्पादन और कम निवेश का जोखिम, उच्च-नवीकरणीय ऊर्जा वाली दुनिया में भी आपूर्ति के लिए स्पष्ट खतरा पैदा करता है।
OPEC के इस नजरिये का IAEA ने किया विरोध
ओपेक का बड़े पैमाने पर निवेश की अपील अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के बयान से बिल्कुल अलग है। जहां ओपेक मांग में लगातार वृद्धि को देखता है, वहीं आईईए के अनुमानों के अनुसार, विद्युतीकरण, दक्षता और नए ऊर्जा स्रोतों के कारण तेल की चरम मांग जल्दी ही आ जाएगी। कुछ विश्लेषकों का तर्क है कि ओपेक का दृष्टिकोण आपूर्ति जोखिमों और कम निवेश पर जोर देता है।
कितने निवेश का है अनुमान, क्या है जोखिम
ओपेक ने पेट्रोलियम इंडस्ट्री में 18.2 ट्रिलियन डॉलर के निवेश का अनुमान लगाया है। यह काफी ज्यादा है और नीतिगत अनिश्चितता, जलवायु दबाव और उभरते ऊर्जा बाजारों के बावजूद निरंतर पूंजी प्रवाह की अपेक्षा की गई है। वहीं, आने वाले दशकों में हर परियोजना आर्थिक या जलवायु के लिहाज से सार्थक नहीं होगी। निवेश को कार्बन मूल्य निर्धारण, नियामक बदलावों और बढ़ती जांच-पड़ताल से भी निपटना होगा। नए क्षेत्रों, गहरे पानी की परियोजनाओं या सीमांत बेसिनों का विस्तार करने में भूवैज्ञानिक जोखिम, बढ़ती लागत, रसद और परमिट संबंधी चुनौतियां शामिल हैं।
कौन से क्षेत्रों से निकल सकता है पेट्रोलियम
ओपेक के अनुसार, मध्य पूर्व, अमेरिकी शेल, अपतटीय अफ्रीका, आर्कटिक मार्जिन जैसे क्षेत्रों में ऑयल कंपनियां जीवाश्म क्षेत्रों में वृद्धि को निम्न-कार्बन प्रौद्योगिकियों में निवेश के साथ संतुलन बनाती हैं। वहीं, नीतिगत बदलाव या कार्बन ढांचे हाइड्रोकार्बन निवेश को बढ़ावा देते हैं या कम करते हैं।
OPEC के महासचिव ने क्या की भविष्यवाणी
busenq.com पर छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, अपने साहसिक पूर्वानुमान में OPEC के महासचिव हैथम अल घैस ने सरकारों और इंडस्ट्री से 2050 तक तेल और गैस में 18.2 ट्रिलियन डॉलर का निवेश जुटाने की अपील की है। उनका तर्क है कि इस तरह के वित्तपोषण के बिना, स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन की महत्वाकांक्षाओं के बावजूद दुनिया को ऊर्जा की कमी का सामना करना पड़ सकता है।
2050 तक कुल एनर्जी में तेल का हिस्सा 30%
रिपोर्ट में अल घैस का मानना है कि ऊर्जा परिवर्तन में तेजी के बावजूद जीवाश्म ईंधन वैश्विक ऊर्जा मिश्रण के एक महत्वपूर्ण हिस्से पर कब्जा बनाए रखेंगे। उनके अनुमानों के अनुसार, 2050 तक तेल कुल ऊर्जा का लगभग 30% बना रहेगा और सदी के मध्य तक वैश्विक प्राथमिक ऊर्जा मांग में 23% की वृद्धि होगी।
पुराने तेल क्षेत्रों में घट रहा है प्रोडॅक्शन
ओपेक महासचिव अल घैस ने कहा कि वह डिमांड के पतन के पूर्वानुमानों को मजबूती से खारिज करते हैं और उन्हें अति आशावादी बताते हैं। उन्होंने कहा-यह जरूरी है कि ये निवेश हर जगह उपभोक्ताओं और उत्पादकों और समग्र रूप से वैश्विक अर्थव्यवस्था के प्रभावी संचालन के लिए किए जाएं। ओपेक के नजरिये से पुराने तेल क्षेत्रों से घटता उत्पादन और कम निवेश का जोखिम, उच्च-नवीकरणीय ऊर्जा वाली दुनिया में भी आपूर्ति के लिए स्पष्ट खतरा पैदा करता है।
OPEC के इस नजरिये का IAEA ने किया विरोध
ओपेक का बड़े पैमाने पर निवेश की अपील अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के बयान से बिल्कुल अलग है। जहां ओपेक मांग में लगातार वृद्धि को देखता है, वहीं आईईए के अनुमानों के अनुसार, विद्युतीकरण, दक्षता और नए ऊर्जा स्रोतों के कारण तेल की चरम मांग जल्दी ही आ जाएगी। कुछ विश्लेषकों का तर्क है कि ओपेक का दृष्टिकोण आपूर्ति जोखिमों और कम निवेश पर जोर देता है।
कितने निवेश का है अनुमान, क्या है जोखिम
ओपेक ने पेट्रोलियम इंडस्ट्री में 18.2 ट्रिलियन डॉलर के निवेश का अनुमान लगाया है। यह काफी ज्यादा है और नीतिगत अनिश्चितता, जलवायु दबाव और उभरते ऊर्जा बाजारों के बावजूद निरंतर पूंजी प्रवाह की अपेक्षा की गई है। वहीं, आने वाले दशकों में हर परियोजना आर्थिक या जलवायु के लिहाज से सार्थक नहीं होगी। निवेश को कार्बन मूल्य निर्धारण, नियामक बदलावों और बढ़ती जांच-पड़ताल से भी निपटना होगा। नए क्षेत्रों, गहरे पानी की परियोजनाओं या सीमांत बेसिनों का विस्तार करने में भूवैज्ञानिक जोखिम, बढ़ती लागत, रसद और परमिट संबंधी चुनौतियां शामिल हैं।
कौन से क्षेत्रों से निकल सकता है पेट्रोलियम
ओपेक के अनुसार, मध्य पूर्व, अमेरिकी शेल, अपतटीय अफ्रीका, आर्कटिक मार्जिन जैसे क्षेत्रों में ऑयल कंपनियां जीवाश्म क्षेत्रों में वृद्धि को निम्न-कार्बन प्रौद्योगिकियों में निवेश के साथ संतुलन बनाती हैं। वहीं, नीतिगत बदलाव या कार्बन ढांचे हाइड्रोकार्बन निवेश को बढ़ावा देते हैं या कम करते हैं।
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