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Dolly Chaiwala Marketing Strategy: डॉली चायवाला खुद चलता-फिरता ब्रांड... मार्केटिंग के बड़े-बड़े सूरमा भी इम्प्रेस, क्या बात आई सबसे ज्यादा पसंद?

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नई दिल्‍ली: नागपुर के चाय विक्रेता सुनील पाटिल डॉली चायवाला के नाम से मशहूर हैं। इन दिनों वह सोशल मीडिया पर दोबारा छाए हुए हैं। अब डॉली चायवाला पूरे भारत में 'डॉली की टपरी' नाम से फ्रेंचाइजी खोलने के कारण सुर्खियों में आए हैं। बीते द‍िनों सिर्फ 48 घंटों में 1,609 लोगों ने उनकी फ्रेंचाइजी के लिए आवेदन किया। यह मॉडल 4.5 लाख रुपये से शुरू होता है। छोटे शहरों के उद्यमियों, निवेशकों और ब्रांड विशेषज्ञों को यह बहुत पसंद आया है। डॉली चायवाला की मार्केटिंग स्‍ट्रैटेजी ने बड़े-बड़े महारथियों को भी इम्‍प्रेस किया है।



सोशल मीडिया पर डॉली चायवाला की लोकप्रियता तब और ज्‍यादा बढ़ गई जब माइक्रोसॉफ्ट के सह-संस्थापक बिल गेट्स ने उनकी चाय पी थी। लेकिन, उनका बिजनेस करने का तरीका भी कमाल का है। 'डॉली की टपरी' के तहत वह अलग-अलग तरह की फ्रेंचाइजी दे रहे हैं। इसमें ठेले (4.5-6 लाख रुपये), दुकानें (20-22 लाख रुपये) और बड़े कैफे (39-43 लाख रुपये) शामिल हैं। फ्रेंचाइजी लेने वालों को डॉली के खास अंदाज में चाय बनाने की ट्रेनिंग दी जाएगी। साथ ही, उन्हें डिजिटल कंटेंट और चाय बनाने के लिए जरूरी चीजें भी मिलेंगी। हर हफ्ते दुकानों की जांच की जाएगी ताकि सब कुछ एक जैसा रहे। हर दुकान को हर हफ्ते कम से कम तीन वीडियो सोशल मीडिया पर डालने होंगे। यह बात ब्रांड विशेषज्ञों को बहुत पसंद आई है।



द‍िग्‍गज एक सुर में कर रहे तारीफ

द ब्लर के सह-संस्थापक और सीओओ गोपा मेनन के अनुसार, यहां सिर्फ चाय नहीं बेची जा रही है, बल्कि एक अनुभव बेचा जा रहा है। उनके अनुसार, डॉली ने अपने ब्रांड को एक ऐसी चीज के आसपास बनाया है जिसे लोग बार-बार खरीदते हैं। उन्होंने इसे कहानी कहने और तमाशे से और भी खास बना दिया है।



डॉली ने फ्रेंचाइजी की कीमत और मॉडल को अलग-अलग रखा है ताकि हर तरह के लोग इसे खरीद सकें। कम पैसे वाले छोटे शहरों के लोग ठेले वाली फ्रेंचाइजी ले सकते हैं। वहीं, ज्यादा पैसे वाले लोग बड़े कैफे खोल सकते हैं।



आजकल लोग दिखावे से ज्यादा असली चीजों को पसंद करते हैं। डॉली में आत्मविश्वास और आकर्षण है। वह अपनी चाय को एक खास अंदाज में पेश करते हैं। पल्प स्ट्रैटेजी की संस्थापक और मुख्य रणनीतिकार अंबिका शर्मा ने कहा कि लोग अब असली और भरोसेमंद चीजों की ओर आकर्षित हो रहे हैं। उनके अनुसार, डॉली को दिखावे की जरूरत नहीं है। वह असली हैं। उनकी याददाश्त और भावनाओं को जगाने की क्षमता ऐसी है जिसे पाने के लिए बड़े-बड़े ब्रांड करोड़ों रुपये खर्च करते हैं।



व्होप्पल की संस्थापक और सीईओ राम्या रामचंद्रन का कहना है कि फ्रेंचाइजी मॉडल इसलिए सफल होते हैं क्योंकि वे एक तय तरीके से चलते हैं। लेकिन, डॉली खुद ही एक फार्मूला हैं। वह स्थानीय हैं, लेकिन उनकी अपील पूरी दुनिया में है क्योंकि वह व्यक्तिगत लगते हैं। यही चुनौती और अवसर दोनों है।



डॉली चायवाला बना रहे अलग तरह का स‍िस्‍टम

कई बार ऐसा होता है कि कोई ब्रांड किसी एक व्यक्ति की वजह से चलता है। ऐसे में उसे आगे बढ़ाना मुश्किल होता है। इसका जवाब है कि उस व्यक्ति के खास अंदाज को एक सिस्टम में बदल दिया जाए। डॉली भी यही कर रहे हैं। वह एक ऐसा सिस्टम बना रहे हैं जो सिर्फ उन पर निर्भर न रहे। नए फ्रेंचाइजी को 'गोल्डन लैडल' पाने के लिए एक परीक्षा पास करनी होगी। उन्हें चाय बनाने की ट्रेनिंग दी जाएगी और नियमों का पालन करना होगा। वह डिजिटल टूल्स का भी इस्तेमाल करेंगे, जैसे कि क्यूआर-आधारित लॉयल्टी प्रोग्राम और क्लाउड-आधारित पीओएस सिस्टम जो अपने आप इंस्टाग्राम स्टोरीज पोस्ट करते हैं। इससे डॉली की कमी को पूरा करने की कोशिश की जाएगी।



डॉली खुद एक चलता-फिरता ब्रांडडॉली का अंदाज और लोगों तक पहुंच ब्रांड और विज्ञापन करने वालों को बहुत पसंद आ रही है। इंस्टाग्राम पर उनके 50 लाख से ज्यादा फॉलोअर्स हैं और यूट्यूब पर 20 लाख से ज्यादा सब्सक्राइबर्स हैं। मीडिया केयर ब्रांड सॉल्यूशंस के निदेशक यासिन हमीदानी के अनुसार, 'आजकल लोगों का ध्यान खींचना बहुत जरूरी है, भले ही लोग आपको पसंद न करें।' डॉली के साथ काम करना एक आसान तरीका है क्योंकि उनके पास पहले से ही बहुत सारे लोग हैं जो उन्हें जानते हैं।



अंबिका शर्मा ने कहा कि डॉली खुद ही एक चलता-फिरता ब्रांड हैं। उनकी दुकानों पर अपने आप ही भीड़ होगी। लेकिन, उन्होंने यह भी कहा कि इस पहचान को बनाए रखना बहुत जरूरी है।

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