इस्लामाबाद: पाकिस्तानी सेना खैबर पख्तूनख्वा में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के हमलों से बौखलाई हुई है। यह बौखलाहट इस कदर बढ़ गई है कि पाकिस्तानी सेना ने हाल ही में राजनीतिक दलों को निर्देश दिया है कि वे अपने भाषणों में खैबर पख्तूनख्वा को पाकिस्तान का आधिकारिक हिस्सा बताएं। सूत्रों के अनुसार, कुछ राजनीतिक दलों ने इस अनुरोध का पालन किया है। हालांकि, पश्तून तहफुज़ आंदोलन (पीटीएम) के जेल में बंद नेताओं ने भारी दबाव और बदले में जेल से रिहाई की पेशकश के बावजूद ऐसा करने से इनकार कर दिया है।
पीटीएम नेताओं के बैंक खाते फ्रीज
पाकिस्तानी सेना की मांग को अस्वीकार करने के बाद, कई पीटीएम सदस्यों के बैंक खाते फ्रीज कर दिए गए और उनके खिलाफ कई मामले दर्ज किए गए। पाकिस्तानी सेना को डर है कि कहीं खैबर पख्तूनख्वा सूबा उनके हाथ से निकल न जाए। दरअसल, तालिबान लंबे समय से खैबर पख्तूनख्वा पर दावा करता रहा है। वर्तमान में टीटीपी ने इस सूबे के बड़े हिस्से पर कब्जा जमा रखा है, जहां पाकिस्तानी सेना चाहकर भी नहीं जा सकती है।
डूरंड लाइन को नहीं मानता तालिबान
तालिबान लंबे समय से अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच स्थित डूरंड लाइन को मान्यता नहीं देता है। इमरान खान समेत पाकिस्तान के भी कई बड़े राजनेता डूरंड लाइन को काल्पनिक रेखा बता चुके हैं और उसे अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच मान्यता प्राप्त सीमा नहीं मानते हैं। खैबर पख्तूनख्वा विवादित काल्पनिक डूरंड रेखा पर स्थित है, जिसे 1893 में अफगानिस्तान के तत्कालीन राजा अमीर अब्दुर रहमान खान और औपनिवेशिक भारत में ब्रिटिश दूत सर मोर्टिमर डूरंड के बीच एक समझौते के तहत स्थापित किया गया था।
कतर ने भी डूरंड लाइन पर बयान दिया
हाल ही में, अफगानिस्तान के इस्लामी अमीरात के रक्षा मंत्री ने कतर में कहा कि काल्पनिक डूरंड रेखा का भाग्य सीमा के दोनों ओर रहने वाले लोगों द्वारा तय किया जाना चाहिए। काल्पनिक डूरंड रेखा चित्राल के पास बदख्शां और वाखान से बलूचिस्तान प्रांत तक 2,640 किलोमीटर तक फैली हुई है। यह कुनार और नूरिस्तान को खैबर पख्तूनख्वा से; नंगरहार, पक्तिया और पक्तिका को उत्तरी और दक्षिणी वजीरिस्तान से अलग करती है; और कुर्रम, बन्नू और क्वेटा से ज़ाबुल और कंधार, ऐसे विभाजन जिन्हें दोनों तरफ के लोगों द्वारा कभी भी पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया गया।
पीटीएम नेताओं के बैंक खाते फ्रीज
पाकिस्तानी सेना की मांग को अस्वीकार करने के बाद, कई पीटीएम सदस्यों के बैंक खाते फ्रीज कर दिए गए और उनके खिलाफ कई मामले दर्ज किए गए। पाकिस्तानी सेना को डर है कि कहीं खैबर पख्तूनख्वा सूबा उनके हाथ से निकल न जाए। दरअसल, तालिबान लंबे समय से खैबर पख्तूनख्वा पर दावा करता रहा है। वर्तमान में टीटीपी ने इस सूबे के बड़े हिस्से पर कब्जा जमा रखा है, जहां पाकिस्तानी सेना चाहकर भी नहीं जा सकती है।
डूरंड लाइन को नहीं मानता तालिबान
तालिबान लंबे समय से अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच स्थित डूरंड लाइन को मान्यता नहीं देता है। इमरान खान समेत पाकिस्तान के भी कई बड़े राजनेता डूरंड लाइन को काल्पनिक रेखा बता चुके हैं और उसे अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच मान्यता प्राप्त सीमा नहीं मानते हैं। खैबर पख्तूनख्वा विवादित काल्पनिक डूरंड रेखा पर स्थित है, जिसे 1893 में अफगानिस्तान के तत्कालीन राजा अमीर अब्दुर रहमान खान और औपनिवेशिक भारत में ब्रिटिश दूत सर मोर्टिमर डूरंड के बीच एक समझौते के तहत स्थापित किया गया था।
कतर ने भी डूरंड लाइन पर बयान दिया
हाल ही में, अफगानिस्तान के इस्लामी अमीरात के रक्षा मंत्री ने कतर में कहा कि काल्पनिक डूरंड रेखा का भाग्य सीमा के दोनों ओर रहने वाले लोगों द्वारा तय किया जाना चाहिए। काल्पनिक डूरंड रेखा चित्राल के पास बदख्शां और वाखान से बलूचिस्तान प्रांत तक 2,640 किलोमीटर तक फैली हुई है। यह कुनार और नूरिस्तान को खैबर पख्तूनख्वा से; नंगरहार, पक्तिया और पक्तिका को उत्तरी और दक्षिणी वजीरिस्तान से अलग करती है; और कुर्रम, बन्नू और क्वेटा से ज़ाबुल और कंधार, ऐसे विभाजन जिन्हें दोनों तरफ के लोगों द्वारा कभी भी पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया गया।
You may also like

मध्य प्रदेश में किसान हत्याकांड: 9 और आरोपी गिरफ्तार, 4 अभी भी फरार

क्या है फिल्म 'गुस्ताख इश्क' का नया गाना 'शहर तेरे'? जानें इसकी खासियतें!

पीएम मोदी के लिए अभद्र भाषा का इस्तेमाल राहुल गांधी का राजनीतिक दिवालियापन: रेखा गुप्ता

AUS vs IND 2025: 'किसी को भी उनसे प्रश्न करने की कोई आवश्यकता नहीं' पूर्व भारतीय क्रिकेटर ने किया शुभमन गिल का समर्थन

कर्नाटक में को-ऑपरेटिव बैंक की वाई-फाई ID बदलकर लिखा 'पाकिस्तान ज़िंदाबाद', पुलिस पता लगा रही कसूरवार कौन?




