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पौराणिक कथा: कैसे 'बैलग्राम' से 'पहलगाम' बना शिव का यह पवित्र क्षेत्र, जानें अमरनाथ यात्रा की रहस्यमयी कहानी

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पौराणिक कथा: कैसे ‘बैलग्राम’ से ‘पहलगाम’ बना शिव का यह पवित्र क्षेत्र, जानें अमरनाथ यात्रा की रहस्यमयी कहानी

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकी हमले से पूरा देश स्तब्ध और आक्रोशित है। लेकिन क्या आप जानते हैं, आतंकियों की इस नृशंस वारदात का गवाह बना यह इलाका पौराणिक काल से ही भगवान शिव का प्रिय क्षेत्र माना जाता रहा है? आज हम आपको उसी पहलगाम की पौराणिक कथा बताएंगे, जो कभी बैलग्राम यानी भगवान शिव की सवारी नंदी का गांव कहलाता था।

कैसे पड़ा पहलगाम का नाम ‘बैलग्राम’?

पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव जब देवी पार्वती को अमरकथा सुनाने के लिए अमरनाथ की यात्रा पर निकले, तब उन्होंने अपने प्रमुख संगियों को रास्ते में ही अलग-अलग स्थानों पर रोक दिया था। इस यात्रा का पहला पड़ाव बैलग्राम था, जहां शिवजी ने अपने सबसे प्रिय वाहन नंदी बैल को पहरेदार बनाकर छोड़ दिया, ताकि कोई भी उनकी अमर कथा सुनने के लिए आगे न जा सके।

बाद में, कश्मीरी भाषा के विकास और स्थानीय परंपराओं के प्रभाव से बैलग्राम का नाम पहलगाम पड़ा। कश्मीरी में “पुहेल” का अर्थ चरवाहा होता है, और “गाम” यानी गांव। चरवाहों का यह गांव अपने सुंदर घास के मैदानों के लिए विख्यात है, जहां आज भी चरवाहा समुदाय (बकरवाल) अपने पशुओं को चराते हैं।

भगवान शिव की अमरनाथ यात्रा का रहस्य

देवी पार्वती ने भगवान शिव से पूछा था, “आप अमर हैं, लेकिन मैं बार-बार जन्म क्यों लेती हूं?” इस सवाल का जवाब देने के लिए शिवजी ने पार्वती जी को एकांत में अमर कथा सुनाने का निश्चय किया। ऐसी कथा, जिसे सुनने वाला अमर हो जाए। इसलिए उन्होंने अमरनाथ की गुफा का चयन किया।

नंदी के बाद शेषनाग को छोड़ा था भगवान शिव ने

पहलगाम (बैलग्राम) में नंदी को छोड़ने के बाद भगवान शिव ने आगे बढ़ते हुए अपने दूसरे संगी शेषनाग को आज की शेषनाग झील के पास छोड़ दिया। शिवपुराण के मुताबिक, शेषनाग झील भगवान शिव के प्रिय नाग शेषनाग के विश्राम के लिए बनी थी। यह झील आज भी रहस्यमयी मानी जाती है, जहां स्थानीय लोगों को अक्सर शेषनाग जैसी आकृति दिखाई देती है।

पंचतरणी में उतरीं गंगा, गणेश टॉप पर छोड़े गए गणपति

शिवपुराण के अनुसार, भगवान शिव ने अमरनाथ गुफा तक पहुंचने से पहले अपने पांच प्रमुख संगियों को अलग-अलग जगह छोड़ा। इसीलिए इस यात्रा के आखिरी पड़ाव को पंचतरणी कहते हैं, जहां उन्होंने अपनी जटाओं से गंगा जी को उतारा। वहीं एक अन्य स्थान पर उन्होंने पुत्र गणेश को छोड़ दिया, जो आज गणेश टॉप के नाम से प्रसिद्ध है।

अमरनाथ की अमर कथा और कबूतरों की कहानी

अंततः शिव-पार्वती अमरनाथ की गुफा पहुंचे, जहां भगवान शिव ने देवी पार्वती को अमर कथा सुनाना शुरू किया। कथा सुनते-सुनते पार्वती सो गईं, लेकिन गुफा में मौजूद दो कबूतर यह कथा सुनकर अमर हो गए। शिवपुराण के अनुसार, आज भी अमरनाथ की गुफा में वे दोनों अमर कबूतर दिखाई देते हैं।

नागवंश की राजधानी: अनंतनाग का रहस्य

शिव क्षेत्र के इसी हिस्से में स्थित है अनंतनाग, जो प्राचीन काल में नागवंशी राजाओं की राजधानी थी। पुराणों में शेषनाग को अनंत कहा गया है, इसी कारण इस क्षेत्र का नाम अनंतनाग पड़ा। नागवंश के शासन की बात अथर्ववेद जैसे प्राचीन ग्रंथों में भी मिलती है। माना जाता है कि धरती पर नागवंश का आरंभ कश्मीर के इसी अनंतनाग क्षेत्र से हुआ था।

नागवंश और भगवान शिव का अटूट संबंध

भगवान शिव और नागवंश का संबंध बेहद पुराना और गहरा है। शिवजी ने समुद्र मंथन के दौरान निकले विष को अपने गले में धारण कर संसार को बचाया था। उस समय नागराज वासुकी को भी अपने गले में स्थान दिया, जिससे नागवंश के लोग शिव के परम भक्त बन गए।

इस तरह, आतंक के साये में आए पहलगाम की धरती, जो आज खून से रंगी है, कभी भगवान शिव के चरणों में समर्पित थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह भूमि देवों की भूमि है, जहां पवित्रता और आध्यात्मिकता का वास है। आज फिर इसी पावन क्षेत्र की रक्षा और शांति की प्रार्थना देश कर रहा है।

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