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Dream of Studying in America : भारतीयों के लिए आसान या चीनियों के लिए मुश्किल? सच्चाई आपको हैरान कर देगी

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News India Live, Digital Desk: Dream of Studying in America : अमेरिका में पढ़ने का सपना देखने वाले भारतीय और चीनी छात्रों की संख्या लाखों में है.ये दोनों ही देश अमेरिका में सबसे ज़्यादा अंतर्राष्ट्रीय छात्र भेजते हैं. लेकिन इस सपने के साथ एक कड़वी हकीकत भी जुड़ी है - और वो है वहां होने वाला भेदभाव और विरोध. ऐसे में एक बड़ा सवाल उठता है कि अमेरिका में भारतीय छात्रों को ज़्यादा मुश्किलों का सामना करना पड़ता है या चीनी छात्रों को?क्या कहते हैं आंकड़े?हाल के सर्वे और डेटा कुछ दिलचस्प बातें बताते हैं. प्यू रिसर्च (Pew Research) के एक सर्वे के अनुसार, 50% अमेरिकी चीन से आने वाले छात्रों की संख्या को सीमित करने के पक्ष में हैं, जबकि भारतीय छात्रों के लिए यह आंकड़ा 44% है. इसी तरह, 53% अमेरिकी भारतीय छात्रों की संख्या सीमित करने के विरोध में हैं, जबकि चीनी छात्रों के लिए सिर्फ 47% लोग ही ऐसा सोचते हैं. ये आंकड़े दिखाते हैं कि अमेरिकी जनता का झुकाव भारतीय छात्रों की तरफ थोड़ा ज़्यादा सकारात्मक है.चीनी छात्रों के प्रति क्यों बढ़ रहा है अविश्वास?चीनी छात्रों को अमेरिका में ज़्यादा संदेह की नज़र से देखा जाता है. इसकी सबसे बड़ी वजह अमेरिका और चीन के बीच बढ़ता भू-राजनीतिक तनाव है. अमेरिकी सरकार को लगता है कि चीन अपने छात्रों का इस्तेमाल टेक्नोलॉजी और संवेदनशील जानकारी हासिल करने के लिए कर सकता हैइसी शक के आधार पर कई अमेरिकी विश्वविद्यालयों से उनके चीनी छात्रों की जानकारी भी मांगी गई है, जिससे चीनी छात्रों और उनके परिवारों में सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ी है.चीन ने भी अपने छात्रों को अमेरिका में पढ़ाई से जुड़े जोखिमों के बारे में चेतावनी दी है.इन सब वजहों से पिछले कुछ सालों में अमेरिका में चीनी छात्रों की संख्या में कमी आई है.क्या भारतीय छात्र पूरी तरह सुरक्षित हैं?हालांकि अमेरिकी जनता का रवैया भारतीय छात्रों के प्रति थोड़ा नरम है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि उन्हें किसी तरह के भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ता. हाल के समय में अमेरिका में अप्रवासियों के खिलाफ और खासकर एशियाई लोगों के प्रति नफरत बढ़ी है. भारतीय छात्रों को भी नस्लीय टिप्पणियों और भेदभाव का सामना करना पड़ता है. इसके अलावा, हाल ही में H-1B वीज़ा नियमों में हुए बदलाव और बढ़ी हुई फीस ने भारतीय छात्रों के लिए पढ़ाई के बाद वहां रुककर नौकरी करना और मुश्किल बना दिया है.
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