महाभारत के ग्रंथों में कई महान योद्धाओं और उनके हथियारों का वर्णन है। कौरवों और पांडवों के बीच यह युद्ध बहुत भयंकर था। अंततः पांडव विजयी हुए। सभी योद्धाओं के पास कुछ विशेष हथियार थे। इसी प्रकार अर्जुन के पास गांडीव नामक धनुष था, जिसमें अनेक विशेषताएं थीं।
ऐसी थीं विशेषताएंअर्जुन का गांडीव धनुष इतना शक्तिशाली था कि कोई भी अन्य हथियार उसे नष्ट नहीं कर सकता था। जब उनके धनुष की डोरी खींची जाती थी तो एक ध्वनि या गर्जना उत्पन्न होती थी जो पूरे युद्धक्षेत्र में गूंजती थी। गांडीव धनुष के साथ एक तरकश भी था जिसके बाण कभी ख़त्म नहीं होते थे, इसलिए इसे अक्षय तरकश भी कहा जाता था। गांडीव धनुष से छोड़ा गया एक बाण कई बाणों का सामना कर सकता था और एक साथ कई लक्ष्यों पर प्रहार कर सकता था। इतना ही नहीं अर्जुन का गांडीव पाशुपतास्त्र, नारायणास्त्र और ब्रह्मास्त्र जैसे हथियारों को भी नष्ट कर सकता है।
पौराणिक कथाकौरवों और पांडवों के बीच राज्य के बंटवारे को लेकर विवाद था। तब मामा शकुनि ने धृतराष्ट्र को सुझाव दिया कि उन्हें खांडवप्रस्थ पांडवों को सौंप देना चाहिए, जिससे वे शांत हो गये। खांडवप्रस्थ एक जंगल की तरह था। पांडवों के सामने इस जंगल को शहर में बदलने की बड़ी चुनौती थी। तब भगवान श्रीकृष्ण विश्वकर्मा से आग्रह करते हैं। विश्वकर्मा प्रकट होते हैं और भगवान कृष्ण को सुझाव देते हैं कि वे शहर की स्थापना के लिए मायासुर से सहायता ले सकते हैं। क्योंकि मायासुर भी यहां एक नगर बसाना चाहता था।
मयासुर प्रसन्न हुआजब मायासुर को पता चला कि पांडव खांडवप्रस्थ में एक नगर बसाना चाहते हैं तो वह बहुत प्रसन्न हुआ। वह कृष्ण, अर्जुन और विश्वकर्मा को एक खंडहर में ले जाता है और वहां उन्हें रथ दिखाना शुरू करता है। मायासुर ने श्री कृष्ण को बताया कि यह स्वर्ण रथ पहले महाराज सोम का था। इस रथ की विशेषता यह है कि यह व्यक्ति को उसके इच्छित स्थान तक ले जा सकता है। मायासुर ने उसे रथ में रखे हथियार भी दिखाए।
गांडीव की खोज कैसे हुई?रथ में एक गदा रखी हुई थी, जो कौमुद की गदा थी। भीमसेन के अलावा कोई भी इस गदा को नहीं उठा सकता था। इसके साथ ही मयासुर ने रथ में रखा गांडीव धनुष भी दिखाया और कहा कि यह दिव्य धनुष दैत्यराज वृषपर्वा ने भगवान शिव की आराधना करके प्राप्त किया था।
तब भगवान कृष्ण ने धनुष उठाया और अर्जुन को दे दिया। मायासुर ने अर्जुन को चावल का ऐसा भंडार दिया था जिसके बाण कभी समाप्त नहीं होते थे। इसके बाद भगवान विश्वकर्मा और मयासुर ने मिलकर इंद्रप्रस्थ नगर का निर्माण किया।
You may also like
IPl 2025: हार्दिक पांड्या और शुभमन गिल के बीच अनबन?
Jaipur Gold-Silver Price Today: सोने की कीमतों आया तगड़ा उछाल चांदी में 300 रूपए की गिरावट, जानिए क्या है आज के ताजा भाव
Offbeat: मरने के बाद कहाँ जाती है आत्माएं? जानें क्या कहता है विज्ञान और धर्म
प्रोस्टेट ग्लैंड से जुड़ी समस्याओं के संकेत और उपचार
COVID-19: राजधानी जयपुर बना कोरोना हॉटस्पॉट, देश के अन्य राज्यों में भी बढ़ रहे मामले, नया वेरियंट बढ़ा रहा....