राजस्थान की राजनीति में कुछ बयान ऐसे हैं जो समय के साथ नेताओं की पहचान से भी ज्यादा चर्चित हो जाते हैं। खासकर "नाथी का बाड़ा" और "खाला का बाड़ा" जैसे डायलॉग न सिर्फ सोशल मीडिया की सुर्खियां बने, बल्कि आम जनमानस की जुबां पर भी चढ़ गए। ये दोनों बयान शेखावाटी अंचल के दो प्रमुख नेताओं — कांग्रेस नेता गोविंद सिंह डोटासरा और भाजपा नेता राजेन्द्र राठौड़ — के हैं।
राजनीतिक पृष्ठभूमि में इन बयानों का जन्म और बाद में इनका वायरल होना इस बात का संकेत है कि आम बोलचाल की जुबान कैसे सियासी हथियार बन सकती है।
कैसे आया "नाथी का बाड़ा" चर्चा में?यह बयान तत्कालीन शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा ने उस समय दिया था जब कुछ शिक्षक अपने तबादले की मांग को लेकर उनके सीकर स्थित आवास पहुंचे थे। डोटासरा ने गुस्से में कहा,
“क्या समझ रखा है, नाथी का बाड़ा है जो जब चाहो चले आते हो?”
बस, यही बात कैमरे में कैद हो गई और देखते ही देखते सोशल मीडिया से लेकर न्यूज चैनलों तक पर छा गई।
इस बयान से राजनीतिक विरोधियों को बैठे-बिठाए एक मुद्दा मिल गया और डोटासरा को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। शिक्षकों में भी इस बयान को लेकर खासा रोष देखा गया।
"खाला का बाड़ा" से गरमाई राजनीतिकुछ दिनों बाद भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री राजेन्द्र राठौड़ ने चूरू में एक सभा के दौरान कहा,
"क्या समझ रखा है, कोई खाला का बाड़ा है जहां कोई भी आकर कुछ भी कर ले?"
राठौड़ का यह बयान सीधे-सीधे कांग्रेस पर कटाक्ष था और इसे लेकर भी खूब राजनीतिक बहस छिड़ी।
दोनों बयानों का एक कॉमन तत्व था — आम बोलचाल की भाषा और स्थानीय मुहावरों का राजनीतिक मंच से सार्वजनिक प्रयोग। यही कारण था कि ये डायलॉग जनता को सीधे जुड़ाव का अनुभव करवा गए।
इन बयानों का असली मतलब क्या है?पूर्व शिक्षा निदेशक सुभाष महलावत के अनुसार,
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"खाला का बाड़ा" एक हिंदी मुहावरा है। मुस्लिम संस्कृति में 'खाला' यानी मौसी के घर को एक ऐसे स्थान के रूप में देखा जाता है जहां कोई रोक-टोक नहीं होती, सिर्फ मौज-मस्ती और आराम होता है।
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वहीं, "नाथी का बाड़ा" एक राजस्थानी लोककथा से प्रेरित मुहावरा है। कथा के अनुसार, 'नाथी बाई' नाम की महिला का घर ऐसा स्थान था जहां कोई भी जरूरतमंद व्यक्ति बिना झिझक मदद ले सकता था—चाहे वह अनाज हो या पैसे। नाथी बाई न तो तौलती थीं, न गिनती थीं। वह दिल से देती थीं।
इन दोनों बयानों का आशय यह है कि कोई स्थान इतना भी खुला या स्वतंत्र नहीं होता कि कोई भी नियम-कायदे को नजरअंदाज करके वहां कुछ भी कर जाए।
स्थानीयता से जुड़ाव, राष्ट्रीय स्तर पर चर्चितशेखावाटी और मेवात जैसे इलाकों की राजनीति अपने बेबाक अंदाज और तीखी भाषा के लिए जानी जाती है। इन क्षेत्रों के नेता अपने मन की बात सीधे-सपाट शब्दों में कहने के लिए मशहूर हैं।
यही वजह है कि जब ऐसे क्षेत्रीय नेताओं के स्थानीय मुहावरे राजनीतिक मंच से बोले जाते हैं, तो वे आम जनता के दिल में उतर जाते हैं।
"नाथी का बाड़ा" और "खाला का बाड़ा" जैसे डायलॉग राजस्थान की राजनीति में सिर्फ बयान नहीं, बल्कि लोकसंवाद की शक्ति का प्रमाण हैं। ये साबित करते हैं कि जनता से जुड़ाव की भाषा वही है जो जमीन से निकली हो।
हालांकि, इन बयानों से नेताओं को विवाद भी झेलने पड़े, लेकिन एक बात तय है—राजस्थान की सियासी जुबान में अब ये डायलॉग इतिहास बन चुके हैं।
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