भारत का थार मरुस्थल — जिसे "ग्रेट इंडियन डेजर्ट" भी कहा जाता है — आज सुनहरी रेत की विशाल चादर की तरह फैला हुआ है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह इलाका कभी हरियाली से लहलहाता था? सदियों पहले थार का इलाका एक समृद्ध, हरा-भरा क्षेत्र था, जहां नदियाँ बहती थीं और सभ्यताएँ फली-फूली थीं। समय के थपेड़ों और प्राकृतिक बदलावों ने इसे रेत के समंदर में तब्दील कर दिया। आइए जानें थार डेजर्ट के अस्तित्व से जुड़े कुछ चौंकाने वाले रहस्य।
प्राचीन काल में था हरियाली का गढ़
थार डेजर्ट की भूमि एक समय पर घनी वनस्पतियों और बहती नदियों से भरी हुई थी। भूगर्भशास्त्रियों और पुरातत्वविदों के शोध बताते हैं कि लगभग 5,000 से 8,000 साल पहले यह क्षेत्र सिंधु घाटी सभ्यता का महत्वपूर्ण हिस्सा था। वैज्ञानिक प्रमाणों से पता चलता है कि इस क्षेत्र में घना जंगल और खेती योग्य भूमि थी, जहां मनुष्य बसते थे और संस्कृति विकसित हो रही थी।विशेष रूप से "सरस्वती नदी" के अस्तित्व की चर्चा होती है, जो अब लुप्त हो चुकी है। यह नदी थार क्षेत्र में जीवन का एक प्रमुख स्रोत थी। जैसे-जैसे समय बीता, जल स्रोत सूखने लगे और भूमि बंजर होती गई।
जलवायु परिवर्तन ने बदली तस्वीर
भूगर्भीय अध्ययनों के अनुसार, थार क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन ने भारी प्रभाव डाला। मानसून का पैटर्न बदलने से यहाँ वर्षा में भारी गिरावट आई। अनुमान लगाया जाता है कि लगभग 4,000 वर्ष पूर्व इस इलाके में भीषण सूखा पड़ा, जिससे नदियाँ सूख गईं और जमीन रेतीली बनने लगी।यही सूखे की घटनाएँ, जो लगातार कई वर्षों तक चलीं, अंततः इस क्षेत्र को मरुस्थलीकरण की ओर ले गईं। पर्यावरण में हुए इन परिवर्तनों ने न केवल भौगोलिक स्थिति बदली, बल्कि यहाँ की मानव बस्तियाँ भी उजड़ गईं।
थार के नीचे छिपे हैं प्राचीन शहर?
हालिया सैटेलाइट इमेजरी और भूगर्भीय सर्वेक्षणों से संकेत मिले हैं कि थार के रेत के नीचे कई प्राचीन बस्तियों और शहरों के अवशेष दबे हुए हो सकते हैं। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि सिंधु घाटी सभ्यता की कुछ शाखाएँ इसी क्षेत्र में फैली थीं, जो धीरे-धीरे प्राकृतिक आपदाओं और सूखे के चलते समाप्त हो गईं।यह भी कहा जाता है कि कई प्राचीन नदियाँ जैसे सरस्वती और घग्गर-हकरा इसी क्षेत्र में बहती थीं, जो आज पूरी तरह सूख चुकी हैं। इन सूखी नदियों के रास्तों का पता लगाने के लिए वैज्ञानिक लगातार रिसर्च कर रहे हैं।
थार में बहती थी अदृश्य नदी?
एक और रहस्य जो थार को लेकर चर्चा में रहा है, वह है "अदृश्य नदी" का सिद्धांत। वैज्ञानिकों ने रिमोट सेंसिंग तकनीक से जो अध्ययन किए हैं, उनमें थार के नीचे प्राचीन नदी प्रणालियों के संकेत मिले हैं। माना जाता है कि ये नदियाँ हजारों साल पहले सतह पर बहती थीं और थार क्षेत्र को जल संपन्न बनाती थीं। लेकिन आज वे पूरी तरह रेत में समा चुकी हैं।
थार आज भी बदल रहा है
थार मरुस्थल स्थिर नहीं है, यह निरंतर गतिशील है। हवाएं लगातार रेत के टीलों को बदलती रहती हैं, जिससे भू-आकृति में समय के साथ छोटे-छोटे बदलाव होते रहते हैं। इसके अलावा, मानवीय गतिविधियों जैसे खेती, चराई और शहरीकरण ने भी थार के पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित किया है।आज थार लगभग 200,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है और भारत के राजस्थान, गुजरात, हरियाणा और पंजाब राज्यों को छूता है। यहाँ की संस्कृति, वेशभूषा और जीवनशैली इस कठिन भू-प्राकृतिक परिस्थितियों के अनुकूल ढली हुई है।
क्या भविष्य में फिर से लौट सकती है हरियाली?
वैज्ञानिक प्रयास कर रहे हैं कि मरुस्थल को फिर से हरियाली में बदला जा सके। कई परियोजनाएं चल रही हैं जिनमें वृक्षारोपण, जल संचयन और पर्यावरण संरक्षण के प्रयास किए जा रहे हैं। हालांकि यह एक लंबी और चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया है, लेकिन अगर सतत प्रयास किए जाएं, तो थार का चेहरा एक दिन फिर से बदल सकता है।
निष्कर्ष
थार डेजर्ट महज रेत का मैदान नहीं, बल्कि एक जीवित इतिहास है, जो हमें प्रकृति के अप्रत्याशित बदलावों की याद दिलाता है। यह दिखाता है कि कैसे समय के साथ प्राकृतिक आपदाएं, जलवायु परिवर्तन और मानवीय हस्तक्षेप किसी क्षेत्र के स्वरूप को पूरी तरह बदल सकते हैं। थार का रहस्य आज भी वैज्ञानिकों, इतिहासकारों और यात्रियों को अपनी ओर आकर्षित करता है — और शायद भविष्य में इसके और भी गहरे राज उजागर होंगे।
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