बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले चुनाव आयोग ने राज्य के वोटर आईडी कार्ड में सुधार के लिए विशेष जांच प्रक्रिया (Special Intensive Revision) की घोषणा की है। इस प्रक्रिया के तहत, चुनाव आयोग ने वोटर लिस्ट में जिन गलतियों का पता चला है, उन्हें सुधारने का प्रयास किया है।
नई प्रक्रिया का उद्देश्यचुनाव आयोग के इस फैसले के तहत, 2003 के बाद जो मतदाता सूची में शामिल नहीं हुए हैं, उन्हें अपनी पात्रता साबित करने के लिए नए दस्तावेज़ प्रस्तुत करने होंगे। इस प्रक्रिया का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वोटर लिस्ट पूरी तरह से सही और अपडेटेड हो, ताकि आगामी चुनाव में किसी प्रकार की धोखाधड़ी और गड़बड़ी से बचा जा सके।
विरोध की आवाज़चुनाव आयोग के इस निर्णय का आरजेडी सहित अन्य विपक्षी दलों ने विरोध करना शुरू कर दिया है। आरजेडी के सांसदों ने इस फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा है कि यह कदम बिहार विधानसभा चुनाव से महज कुछ महीने पहले उठाया गया है, जो शुचिता के नाम पर राजनीतिक धांधली का रास्ता खोल सकता है।
आरजेडी सांसद ने आरोप लगाया कि इस फैसले का उद्देश्य बिहार में मौजूदा सत्तारूढ़ दल बीजेपी और उसके सहयोगियों के लिए फायदा पहुंचाना हो सकता है। साथ ही, उन्होंने चुनाव आयोग से इस कदम पर पुनर्विचार करने की मांग की है। सांसद ने कहा, "चुनाव आयोग को इस तरह के फैसले चुनाव के नजदीक नहीं लेने चाहिए, क्योंकि इससे जनता में संशय और असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।"
चुनाव आयोग का पक्षचुनाव आयोग ने हालांकि इस निर्णय को लोकतंत्र की मजबूती और आंतरिक सुरक्षा के लिए जरूरी बताते हुए कहा है कि इसे सही तरीके से लागू किया जाएगा। आयोग का कहना है कि यह विशेष प्रक्रिया बिहार में मतदाता सूची को ताजगी देने के लिए जरूरी है, ताकि कोई भी अयोग्य व्यक्ति मतदान में भाग न ले सके।
आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि फर्जी वोटिंग और वोटों की चोरी को रोकने के लिए यह कदम उठाया गया है।