– सामाजिक दृष्टि से नाट्य लेखन : संभावनाएं और चुनौतियां विषय पर हुआ संस्कार भारती की मासिक कला संगोष्ठी का आयाेजन
नई दिल्ली, 1 सितंबर (Udaipur Kiran) । लोक के साथ तनमय हुए बिना कोई कला सार्थक नहीं होती है। उन्होंने कहा कि समाज आज भी अपनी वास्तविकता को दर्शाने वाले लेखन को स्वीकार करने में असहज हो जाता है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के प्राध्यापक प्रो. रजनीश कुमार मिश्र ने संस्कार भारती के केंद्रीय कार्यालय ‘कला संकुल’ में रविवार को आयाेजित मासिक कला संगोष्ठी में कहा। प्रत्येक माह के अंतिम रविवार को होने वाली यह संगोष्ठी इस बार नाट्य लेखन : सामाजिक दृष्टि, संभावनाएं और चुनौतियां विषय पर केन्द्रित रही।
कार्यक्रम का शुभारम्भ युवा गायिका सुहानी कौशिक और वंशी वादक सुमित शर्मा की सुरमयी प्रस्तुति से हुई। इसके बाद संगोष्ठी का मुख्य सत्र प्रारम्भ हुआ।
दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के प्रोफेसर चंदन चौबे ने सामाजिक दृष्टि से नाट्य लेखन: संभावनाएं और चुनौतियां विषय पर अपना विचारपूर्ण वक्तव्य रखा। उन्होंने नाट्य साहित्य की परंपरा, उसकी सामाजिक उपयोगिता और बदलते समय में उसके नए आयामों पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्हाेंने बताया कि समाज में भक्ति को प्रदर्शनकारी कलाओं ने सर्वाधिक विस्तार देने का काम किया है। प्रदर्शनकारी कलाओं के माध्यम से लोगों के बीच संस्कृति को पहुंचाया गया है। उन्होंने बताया कि नाटक लिखना एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है क्योंकि किसी नाटककार का लेखन ऐतिहासिक-सांस्कृतिक पात्र के चरित्र निर्माण का प्रकल्प है।
पूरे सत्र का संचालन दिल्ली प्रान्त के मंचीय कला संयोजक राज उपाध्याय ने किया। संगोष्ठी में उपस्थित विद्वानों और कला साधकों ने वक्ताओं के विचारों को गहन रुचि के साथ सुना और संवाद में भाग लिया।
कार्यक्रम में मोहन वीणा के प्रसिद्ध कलाकार अजय कुमार, संस्कार भारती दिल्ली प्रान्त के मंत्री डॉ. प्रशांत उपाध्याय सहित दिल्ली विश्वविद्यालय के अनेक प्रोफेसर, शोधार्थी छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।
उल्लेखनीय है कि दिल्ली के कला केंद्र कहे जाने वाले संस्कार भारती – कला संकुल ने राजधानी के कला प्रेमियों के लिए एक प्रतिष्ठित सांस्कृतिक केंद्र के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। यहां आयोजित मासिक संगोष्ठियों में वैचारिक विमर्श के साथ-साथ नृत्य, संगीत, काव्य एवं अन्य सांस्कृतिक गतिविधियां भी नियमित रूप से होती हैं।
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(Udaipur Kiran) / माधवी त्रिपाठी
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