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राजस्थानी भाषा के पुरोधा पद्मश्री अर्जुन सिंह शेखावत का निधन, साहित्य जगत में शोक की लहर

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पाली, 19 जुलाई (Udaipur Kiran) । राजस्थानी भाषा और साहित्य को समर्पित जीवन जीने वाले प्रख्यात साहित्यकार, शिक्षाविद और समाजसेवी पद्मश्री अर्जुन सिंह शेखावत का 91 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वे पिछले कुछ समय से अस्वस्थ चल रहे थे। शनिवार सुबह पाली स्थित पुराने हाउसिंग बोर्ड से उनकी अंतिम यात्रा निकाली जाएगी।

पाली के भादरलाऊ गांव में चार फरवरी 1934 को जन्मे अर्जुन सिंह शेखावत ने शिक्षक के रूप में अपने जीवन की शुरुआत की, लेकिन राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने के संघर्ष को ही अपना मिशन बना लिया। उनका पूरा जीवन साहित्यिक सेवा और भाषा के उत्थान को समर्पित रहा।

राजस्थानी भाषा के लिए संघर्ष का प्रतीक बने

भतीजे अरुण सिंह शेखावत के अनुसार उनकी अंतिम इच्छा थी कि राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता मिले। बेटे वीरेंद्र सिंह ने बताया कि हाल ही में कूल्हे की हड्डी टूटने के बाद वे बिस्तर पर थे। उन्होंने खाना-पीना छोड़ दिया था और शुक्रवार को उन्होंने अंतिम सांस ली। अर्जुन सिंह शेखावत की सबसे चर्चित कृति ‘भाखर रा भोमिया’ रही, जो आदिवासी जीवन, संस्कृति और रीति-रिवाजों पर आधारित है। इस पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद ‘The Tribal Culture of Garasiya’ को यूनेस्को द्वारा विशेष रूप से सराहा गया। इस पुस्तक पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा चार डॉक्युमेंट्री फिल्मों का निर्माण भी किया गया।

साहित्य जगत का गौरव

राजस्थानी साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए अर्जुन सिंह शेखावत को 2021 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया। उन्हें साहित्य सेबी (1959), आर्च ऑफ एक्सीलेंस अवार्ड (अमेरिका, 1994), यूनेस्को चेतना अवॉर्ड (2007), राजस्थान पत्रिका कर्णधार पुरस्कार (2009) सहित कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुए।

पहली रचना से शुरू हुआ सफर

उनकी पहली रचना वर्ष 1952 में ‘प्रजासेवक’ पत्रिका में छपी। 1957 में हिंदी में प्रकाशित संग्रह ‘बयार एक हल्की सी’ से लेखन में सक्रिय योगदान शुरू हुआ। राजस्थानी में ‘अणबोल्या बोल’ (1976), ‘राजस्थानी व्रत कथा’ (1999), ‘संस्कृति रा वडेरा’ (2002) जैसी रचनाएं प्रकाशित हुईं, जिनमें आदिवासी संस्कृति और परंपराओं को प्रमुखता दी गई।

शेखावत के निधन की खबर से साहित्य जगत शोक में डूब गया है। रावणा राजपूत समाज के अध्यक्ष उगम सिंह चौहान, श्री राष्ट्रीय चामुंडा सेना के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष रविंद्र सिंह भाटी सहित कई सामाजिक व साहित्यिक संगठनों ने गहरी संवेदना व्यक्त की। सभी ने इसे पाली और राजस्थानी साहित्य के लिए अपूरणीय क्षति बताया।

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(Udaipur Kiran) / रोहित

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