जबलपुर, 15 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) . Madhya Pradesh के दमोह जिले में ओबीसी युवक से पैर धुलवाकर पानी पिलाने की घटना पर मप्र उच्च न्यायालय ने स्वतः संज्ञान लेते हुए बुधवार को फिर सुनवाई की. इस सुनवाई में कई गंभीर प्रश्न उठाए गए. कोर्ट ने कहा दमोह पुलिस ने किस आधार पर एनएसए लगाया, जबकि 14 अक्टूबर का आदेश न तो उस समय हाईकोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड हुआ था और न ही उसकी प्रमाणित प्रति जारी हुई थी.
राज्य की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता जान्हवी पंडित ने बताया कि आदेश पारित करते समय दमोह के Superintendent of Police श्रुतकृति सोमवंशी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से उपस्थित थे, बाद में उन्होंने फोन पर आदेश की पुष्टि भी की. इसके बाद पुलिस ने उसी दिन शाम को ही पांच लोगों—अनुज उर्फ अंजू पांडे, कमलेश पांडे, बृजेश पांडे, राहुल पांडे और दीनदयाल पांडे पर एनएसए की धारा 3(2) के तहत कार्रवाई की सूचना भेज दी.
कोर्ट ने जाना कि यह कार्रवाई मौखिक आदेशों के आधार पर की गई थी, जबकि इस मामले की रिट याचिका 15 अक्टूबर को सुबह 11:39 बजे ही पंजीकृत हुई थी. अदालत ने कहा कि ऐसी स्थिति में यह जानना आवश्यक है कि क्या एसपी ने बिना प्रमाणित आदेश प्राप्त किए जो कार्रवाई की है वह क्या प्रशासनिक अनुशासन के अनुसार थी.
वरिष्ठ अधिवक्ता नमन नागरथ द्वारा कोर्ट में बताया कि 14 अक्टूबर को हाईकोर्ट की समन्वय पीठ ने सोशल मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर स्वतः संज्ञान लिया था, लेकिन वह संज्ञान अधूरी जानकारी पर आधारित था. उन्होंने कहा कि अदालत ने अपने आदेश में स्वयं स्वीकार किया था कि एनएसए लगाना कार्यपालिका का विवेकाधिकार है, फिर भी पुलिस को इसे लागू करने का निर्देश दिया गया जो न्याय की दृष्टि से उचित नहीं है. वरिष्ठ अधिवक्ता द्वारा 14 अक्टूबर के आदेश पर रोक लगाने का अनुरोध किया जिसे कोर्ट ने अस्वीकार कर दिया.
जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस अवनिन्द्र कुमार सिंह की डिविजनल बेंच ने यह स्पष्ट किया कि अदालत अब इस घटना के तथ्यों के साथ साथ एनएसए लगाने की जल्दबाज़ी और वैधानिक प्रक्रिया की जांच कर रही है. हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि दमोह के कलेक्टर और एसपी 16 अक्टूबर शाम 5:30 बजे तक हलफनामा दाखिल करें, जिसमें यह स्पष्ट किया जाये कि सभा बुलाने वाले ग्राम पंचायत के सरपंच और सचिव के खिलाफ क्या कार्रवाई हुई तथा एसपी को दिए गए साक्ष्य का आधार जिसके कारण एनएसए लागू किया गया. क्या आदेश की प्रमाणित प्रति प्राप्त किए बिना कार्रवाई करना सद्भावनापूर्ण था.
इसके साथ ही न्यायालय ने उन यूट्यूब चैनल सत्य हिंदी-MP , Punjab केसरी और लल्लनटॉप को भी नोटिस जारी किए हैं, जिनके वीडियो और रिपोर्ट्स के आधार पर यह स्वतः संज्ञान लिया गया था. अदालत ने इन प्लेटफॉर्म्स से पूछा है कि उन्होंने जो सामग्री प्रकाशित की, इनसे कहा गया है कि वे 16 अक्टूबर तक अपना जवाब ईमेल के माध्यम से दाखिल करें, और यदि चाहें तो 17 अक्टूबर को अदालत में उपस्थित होकर अपना पक्ष रख सकते हैं. यह सुनवाई 17 अक्टूबर दोपहर 2:30 बजे फिर से सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है.
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(Udaipur Kiran) / विलोक पाठक
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